छिंगहाई-तिब्बत पठार से निकलने वाली पीली नदी चीन की मातृ नदी मानी गई है।इस नदी का मध्य व निचला भाग अनुकूल व सुहावना मौसम होने के कारण चीन के प्राचीन काल की सभ्यता का उत्पति-स्थान बना। ईं राजवंश के मकबरों का 24 वर्ग किलोमीटर की परिधि में पसरा समूह इस नदी के मध्य भाग में स्थित हनान प्रांत के आनयांग शहर के उपनगर श्यो-थुन गांव में है।
ईं राजवंश शांग राजवंश भी कहलाता है,जो 3000 साल पहले चीन का एक शक्तिशाली दास-व्यवस्था वाला राजवंश था।इस राजवंश के इस अवशेष समूह में श्यो-थुन गांव को केंद्र बनाकर छोटे-बड़े बीसेक गांव शामिल हैं।पिछली शताब्दी से अब तक चीनी पुरातत्ववेत्ताओं ने इस अवशेष की खुदाई में बहुत से भवनों और हज़ारों मकबरों का पता लगाया है,जिन में कछुओं के ऐसे ढेरों कवचों के साथ,जिन पर प्राचीन चीनी आकृतियों वाली लिपियां अंकित हैं,तांबे,जेड और चीनी मिट्टी की वस्तुएं भी बड़ी मात्रा में बरामद हुई हैं।श्री यांग शी-चांग इस अवशेष की खुदाई और अनुसंधान करने वाले पुरातत्ववेत्ताओं में से सब से उल्लेखनीय हैं।
पिछली सदी के छठे दशक में श्री यांग शी-चांग चीन के प्रसिद्ध पेइचिंग विश्वविद्यालय के पुरातत्वविज्ञान विभाग से स्नातक हुए थे।1958 में 22 साल की उम्र में वह चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी की पुरातत्व-विज्ञान अनुसंधान शाला में भर्ती हुए।यह चीन में सब से प्रतिष्ठित और ताकतवर पुरातत्व संस्था है,जिस के देश भर के सभी पुरातत्व-संबंधी खुदाई स्थलों पर केंद्र कायम हैं।श्री यांग शी-चांग को इस संस्था में आने के 4 साल बाद हनान प्रांत के आनयांग शहर में स्थित इस संस्था के केंद्र में ईं राजवंश के अवशेषों की खुदाई के लिए भेजा गया । उन्हों ने कभी नहीं सोचा था कि इस के बाद उन का जीवन 40 साल से भी अधिक समय तक पेइचिंग और आनयांग दो स्थानों में ही बंटकर बीतेगा ।पर सीधे-सादे स्वभाव के होने के कारण उन्हों ने इसे लेकर कभी शिकायत नहीं की ।उन्होंने कहाः
"हमारे नेता ने मुझे ईं राजवंश के अवशेषों की खुदाई का कार्य सौंपा ।मेरे विचार में यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण था।सो मैं ने ठान ली कि मैं ठोस रूप से अनुसंधान करूंगा,ताकि इन अवशेषों का मूल रूप लोगों के सामने आ सके।"
श्री यांग शी-चांग दक्षिणी चीन के रमणीक स्थल सूचो शहर में जन्मे और पले-बढे थे।वहां के खानपान औऱ रहन-सहन के रीति-रिवाज़ उत्तरी चीन के आनयांग शहर से बिल्कुल भिन्न हैं। श्री यांग के जीवन में ऐसी विपरीत स्थिति में रहना ही परीक्षा की घड़ी नहीं थी,बल्कि खुदाई की दूर-दराज़ की जगह की प्राकृतिक स्थिति भी बहुत खराब थी।ऐसे में भी श्री यांग कैसे पूरी लग्न से डट कर काम करते रहे ? इस की कल्पना आप कर सकते हैं।
श्री यांग शी-चांग की 1963 में सूचो शहर की एक सुन्दर युवती से शादी हुई । उन की पत्नी ने भी उन की ही तरह यह कभी नहीं सोचा था कि उन के पारिवारिक जीवन को एक दूसरे से अलग रह कर इस तरह के विलगाव का सामना करना पड़ेगा।यहां तक कि सेवा-निवृत्त होने के बाद भी श्री यांग खुदाई के स्थल पर व्यस्त रहे।और अपनी पत्नी से उन्हें कहना पड़ा कि उन्हें बहुत सी संबंधित सामग्री को सुव्यवस्थित करना है, बहुत से दस्तावेजों की शोध करनी है और ईं राजवंश के अवशेषों की खुदाई और अनुसंधान के बारे में पूरी रिपोर्ट देने के काम को उन्हें ही पूरा करना है।
1990 में श्री यांग के नेतृत्व में की गई खुदाई में 160 मकबरों का पता लगाया गया।ये सब के सब कुलीन लोगों के मकबरे हैं और पूरी तरह सुरक्षित हैं।इन में से 349 मूल्यवान सांस्कृतिक चीजें बरामद हुईं हैं। यह किसी भी पुरातत्ववेत्ता के लिए सौभाग्य की बात है।लेकिन श्री यांग ने प्राचीन आम लोगों के मकबरों की खुदाई के काम को भी भारी महत्व दिया।उन का मत है कि इन मकबरों में भी प्राचीन चीनी सभ्यता की समृद्ध सूचनाएं निहित हैं।उन का कहना हैः
"मैं ने अपने सहयोगियों के साथ आनयांग में प्राचीन आम लोगों के करीब हजार मकबरों के एक समूह का पता लगाया ।खुदाई में हम ने पाया कि ये मकबरे किसी एक विशेष व्यवस्था के तहत पंक्तिबद्ध ढंग से बनाए गए हैं।गहन अनुसंधान के बाद हम ने तत्कालीन आम लोगों की पारिवारिक संरचना के बारे में जानकारी प्राप्त की।यह चीन में ही नहीं,बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक बड़ी पुरातत्व-संबंधी उपलब्धि मानी गई है।"
श्री यांग शी-चांग ने अपनी हर बार की खुदाई पर अर्जित अनुभवों को निबंधों में लिपिबद्ध किया है,जिन का भारी अकादमिक महत्व है।《ईं राजवंश के अवशेषों की खुदाई में प्राप्त उपलब्धियां》,《ईं राजवंश की पारिवारिक संरचना》और《ईं राजवंश में तांबे की वस्तुओं का उत्पादन》आदि निबंध चीनी पुरातत्व संबधी पाठ्यपुस्तकों में शामिल किए गए हैं।अपने कार्य में बड़ी कामयाबियां हासिल करने के कारण श्री यांग को चीनी पुरातत्व जगत के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।उन्हों ने नम्रता से कहाः
"मैं ने अपने जीवन का अधिकांश भाग ईं राजवंश के अवशेषों की खुदाई और अनुसंधान के कार्य में लगाया है।जो योगदान मैं ने किया, वह सीमित है और वह सिर्फ सामूहिक परिश्रम का एक हिस्सा है।पर इस कार्य के जरिए मैं ने जीवन का मूल्य और आदर्श प्राप्त किया है।"