साहित्य के क्षेत्र में, मिङ छिङ काल अनेक श्रेष्ठ उपन्यासों की रचना के लिए प्रसिद्ध है, जिन में ल्वो क्वानचुङ द्वारा रचित तीन राज्यों की वीरगाथा, शि नाएआन द्वारा रचित कछार के विद्रोही, ऊ छङअन द्वारा रचित पश्चिम की तीर्थयात्रा और छाओ श्वेछिन द्वारा रचित लाल भवन का स्वप्न विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
इस उपन्यास में तीन मुख्य पात्रों च्या पाओय्वी, लिन ताएय्वी और श्वे पाओछाए के प्रेम और विवाह तथा उन की त्रासदी का वर्णन करते हुए चीन के एक तत्कालीन सामन्ती अभिजात परिवार के उत्थान व पतन को दर्शाया गया है और सामन्ती समाज की सड़ांध व भ्रष्टाचारिता को अनावृत किया गया है।
इनके अलावा फू सुङलिङ द्वारा रचित ल्याओचाए सदन की विचित्र कथाएं शीर्षक लघुकथा संग्रह और ऊ चिङचि द्वारा रचित विद्वान नामक व्यंग्यपूर्ण उपन्यास को भी अपनी साहित्यिक श्रेष्ठता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त हुई।
नाटकों में थाङ श्येनचू द्वारा रचित चंद्रपुष्प मण्डप, हुङ शङ द्वारा रचित शाश्वत यौवन का महल और खुङ शाङरन द्वारा रचित आड़ू के फूलों वाला पंखा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
स्वेइ, थाङ, सुङ और य्वान राजवंशों के जमाने में चीन ने विदेशों के साथ अपने संबंध स्थापित व विकसित करने में एक सक्रिय भूमिका अदा की थी। लेकिन मिङ छिङ काल में वह एक निष्क्रिय स्थिरति में पड़ गया।
जब मिङ राजवंश की जगह छिङ राजवंश ने ले ली थी और जब चीन सामन्ती अवस्था व जड़ता की स्थिति में पड़ा हुआ था, तब पश्चिम में पूंजीवाद का सक्रियता से विकास हो रहा था।
लेकिन चीन के तत्कालीन शासक बाहर की दुनिया के इस विकास से पूर्णतः अनभिज्ञ रहे।
16 वीं शताब्दी के प्रारम्भ से कुछ पश्चिमी देशों ने पूर्व में अपनी उपनिवेशवादी सरगर्मियां शुरू कर दीं और चीन की प्रादेशिक भूमि का अतिक्रमण किया। समय के साथ साथ चीन के संदर्भ में उन की कुआकांक्षाएं तीव्र से तीव्रतर होती गईं।
यह सच है किचीन ने मिङ राजवंश के शुरू में एशिया और अफरीका के अनेक देशों की यात्रा पर चङ हो और उस के बेड़े को भेजने में तथा छिङ राजवंश के शुरू में जारशाही रूस के आक्रमण के विरूद्ध जवाबी प्रहार करने में बहुत उत्साह व सक्रियता दिखाई थी।
तथापि, समग्र रूप से देखा जाए तो चीन की स्थिति उत्तरोत्तर अकर्मण्यता व निष्क्रियता की होती जा रही थी।