विदेशों के साथ चीन के संबंधों का विकास करने के उद्देश्य से मिङ राजवंश के सम्राट छङचू और उसके उत्तरवर्ती सम्राटों द्वारा चङ हो को एशिया व अफरीका के अनेक देशों की यात्रा व उन के साथ व्यापार करने के लिए भेजा गया।
चङ हो ने समुद्री मार्ग से सात बार हिन्दचीन , मलय द्वीपसमूह , भारत, ईरान और अरबिया की यात्रा की। वह सबसे दूर अफरीका के पूर्वी समुद्रतट तक गया। उस ने कुल मिलाकर 20 साल से अधिक समय में 30 से अधिक देशों की यात्राएं की थीं।
चङ हो की इन समुद्री यात्राओं ने चीन और बहुत से एशियाई अफरीकी देशों के बीच आर्थिक व सांस्कृतिक आदान प्रदान को आगे बढाया, साथ ही उन से चीनी जनता और इन देशों की जनता के बीच मैत्री में भी वृद्धि हुई। तब से अधिकाधिक चीनवासी स्वदेश से जाकर दक्षिणपूर्वी एशिया में स्थाई रूप से बसने लगे।
ये प्रवासी चीनी जहां जहां गये, अपने साथ कृषि कौशल तथा लोहे के औजार, कांसे के बरतन व पोर्सिलेन की ले गए। वे जिन देशों में जाकर बसे वहां के मूल निवासियों के साथ मिलकर उन्होंने उन की अर्थव्यवस्था व संस्कृति के विकास में भारी योगदान किया।
मिङ राजवंश के शुरू से लेकर दो सौ वर्षों तक जापानी समुद्री डाकू जब तब चीन के दक्षिणपूर्वी समुद्रतट पर धावा बोलकर वहां की जनता की हत्या व सम्पत्ति की लूटपाट जैसी गतिविधियां करते रहे।
वे कभी कभी तटवर्ती शहरों को भी अपना निशाना बनाकर उन पर कब्जा कर लेते थे और भारी तबाही मचाते थे।
लेकिन जब दक्षिण पूर्वी समुद्रतट की रक्षा का भार छी चीक्वाङ नामक सेनापति के कंधों पर आया, तो उस ने व्यापक जन समुदाय और स्थानीय अधिकारियों के समर्थन से चच्याङ, फूच्येन और क्वाङतुङ प्रान्तों में इन समुद्री ड़ाकुओं को 1561 और 1565 के बीच बारम्बार पराजित किया। इस प्रकार चीन की दक्षिणपूर्वी तटीय प्रतिरक्षा में सुधार हुआ।
मिङ राजवंश के अन्तिम और छिङ राजवंश के प्रारम्भिक काल में हालैण्ङ और स्पेन के उपनिवेशवादियों ने विभिन्न मौकों पर थाएवान पर हमले किए और उस के दक्षिणी व उत्तरी भाग पर कब्जा कर लिया।
बाद में इन उपनिवेशवादियों ने स्पेनी उपनिवेशवादियों को द्वीप से बाहर खदेड़ दिया और वहां की जनता का बड़ी क्रूरता व निर्दयता से उत्पीड़न किया। चीनी जनता ने उनका जोरदार प्रतिरोध किया।
1661 में छिङ विरोधी जनरल चङ छङकुङ और उस के सैनिक श्यामन व चिनमन से थाएवान की ओर रवाना हुए। उन्होंने थाएवान की जनता के समर्थन से डच उपनिवेशवादियों को द्वीप से बाहर भगा दिया और थाएवान में अपनी हुकूमत कायम की।
यह हुकूमत 1683 तक कायम रही, जबकि छिङ सेना ने उस पर हमला करके थाएवान का मुख्यभूमि से पुनः एकीकरण कर दिया।
छिङ सरकार ने इस द्वीप का प्रशासन चलाने के लिए थाएवान प्रिफेक्चर का दफ्तर कायम किया और प्रतिरक्षा के उद्देश्य से वहां अपनी सेना तैनात की। तब से मुख्यभूमि और थाएवान के बीच के आर्थिक व सांस्कृतिक संबंध और घनिष्ठ हो गए।