2009-05-20 15:07:54

हम न न खत हैं न गुल हैं, जो महकते गए

ललिताः हिन्दी विभाग की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आजमगढ़ के सनराईज रेडियो लिस्नर्स क्लब के हमारे श्रोता शाहिद आजमी जी ने हमें एक ई-मेल भेजी है। इन्होंने लिखा है कि हिन्दी सेवा की 50वीं वर्षगांठ की रिपोर्टें, वीडियो और फोटो देखकर दिल खुशी से झूम उठा। सभी रिपोर्टों को पढ़ा और वीडियो देखा सुना। तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। चीनी कलाकारों के द्वारा गाया गीत मेरी भाषा हिन्दी भाषा और कजरा रे कजरा बार-बार सुन रहा हूं। कृप्या इन गीतों को आप की पसंद कार्यक्रम में भी सुनाएं। कामयाब आयोजन के लिए हार्दिक बधाई।

राकेशः शाहिद आजमी जी, ई-मेल भेजने के लिए और हमारा कार्यक्रम ऑन लाईन देखने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। जहां तक इन गीतों को आप की पसंद कार्यक्रम में शामिल करने का सवाल है, हमने पहले ये गीत शामिल किए हैं और बाद में भी शामिल करेंगे। लीजिए सुनिए नूरजहां की आवाज में यह एक लोकप्रिय ग़ज़ल।

ललिताः श्रोताओ, हर वर्ष मई माह की एक तारीख को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता है। और आप जानते ही होंगे कि चीनी राष्ट्र और समाज में श्रम को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। श्रम से हम न सिर्फ़ अपना पेट पाल सकते हैं, बल्कि अपने देश के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

राकेशः हां श्रोताओ, यह बात सच है। चीनी लोगों को श्रम बहुत पसंद है। सारा साल वे जम कर काम करते हैं। और दो-तीन बार जब छुट्ट्यां मिलती हैं, तब छुट्टियों का आनंद भी उठाते हैं। और मई दिवस पर उन्हें तीन दिन की छुट्टी मिलती है और इन तीन दिन की छुट्टियों में वे बाहर घूमने जाते हैं, घर में आराम करते हैं और इस दौरान चीन के मशहूर पर्यटन स्थलों में बहुत भीड़ रहती है।

ललिताः अच्छा, अब सुनिए एक और ग़ज़ल। इस लोकप्रिय ग़ज़ल को गाया है मशहूर ग़ज़ल गायक मेहंदी हसन ने। लीजिए लुत्फ उठाइए इस ग़ज़ल का।

गीत के बोलः

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिये आ

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ

पहले से मरासिम ना सही फिर भी कभी तो

रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिये आ

माना के मुहब्बत का छुपाना है मुहब्बत

चुपके से किसी रोज़ जताने के लिये आ

कुछ तो मेरे पिंदार-ए-मुहब्बत का भरम रख

तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिये आ

जैसे तुझे आते हैं, न आने के बहाने

ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिये आ

अब तक दिल-ए-ख़ुशफ़हम को हैं तुझ से उम्मीदें

ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिये आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम

ऐ राहत-ए-जाँ मुझको रुलाने के लिये आ

राकेशः इस ग़ज़ल को सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने के. पी. रोड, गया से शबीना खातून, जरीना खातून, मोकिमन खातून और शबाना सईद और मो. जमाल खान मिस्त्री,, गोरा प्रसाद, मो. परवेज खान, मो. शरफू खान और सइफू खान।

ललिताः लीजिए पेश है कार्यक्रम के अंत में एक और ग़ज़ल। इस ग़ज़ल को गाया है मशहूर ग़ज़ल गायिका नैय्यरा नूर ने।

राकेशः और इस को सुनने की फरमाइश की है हमारे इन श्रोताओं ने मस्जिद रोड कोवात से सैयद अली सईद, शबाना सईद, मो. हुसैन दिवाना और ऐलोन्सर। और नया गोदाम, गया से धनेश्वरी देवी, प्रीति कुमारी और गुलनाज खानम, बच्चन मिस्त्री, धनेश्वरी देवी, मो. परवेज खान, सिकन्दर और प्रीति कुमारी। नारनौल हरियाणा से उमेश कुमार शर्मा, राजेश कुमार गुप्ता, विजय शर्मा, सुजाता हिमांशु और नवनीत।

ललिताः अब लीजिए सुनिए यह ग़ज़ल।

राकेशः इस के साथ ही हमारा आज का कार्यक्रम समाप्त होता है। अगली बार तक के लिए आज्ञा दें, फिर मिलेंगे, नमस्कार।

ललिताः नमस्कार।