2009-03-11 14:58:06

तुम ने किसी की जान को जाते हुए देखा है

ललिताः कार्यक्रम का अगला गीत है सन् 1964 में बनी फिल्म "राजकुमार" से। हाल ही में मुझे यह फिल्म देखने का मौका मिला। इस गीत को भी मौहम्मद रफी ने गाया है और फिल्म में यह गीत दक्षिण भारत के मंदिरों की खूबसूरत लोकेशन पर शम्मी कपूर पर फिल्माया गया है।

गीत के बोलः

तुम ने किसी की जान को जाते हुए देखा है

वो देखो मुझसे रूठकर, मेरी जान जा रही है

क्या जाने किस क़ुसूर की, दी हैं मुझे सज़ाएं

दीवाना कर रही हैं, तौबा शिकन अदाएं

ज़ुल्फ़ों में मुँ छुपाकर, मुझको लुभा रही है

घबरा रही है ख़ुद भी, बेचैन हो रही है

अपने ही ख़ून-ए-दिल में दामन डुबो रही है

बेजान रह गए हम, वो मुस्करा रही है

मस्ती भरी हवाओं अब जाके रोक लो तुम

तुमको मेरी क़सम है समझा के रोक लो तुम

उसकी जुदाई दिल पर, नश्तर चला रही है

ललिताः इस गीत को सुनने के लिए हमें लिखा है न्यू सब्जी मार्किट, गढ़ नौका बिहार से भाई मुनिल कुमार साहू, आरती गुप्ता, संजय कुमार चंद्रवंश और धर्मराज चौरसिया। और आलम श्रोता संघ के आएशा बानो, साजिदा बानो, शगुफ्ता नाज़, आलिया नाज़, राजा कौसर, अल्का, गुड़िया, रानी और नीलम।

राकेशः अब जो गीत हम आप को सुनाने जा रहे हैं वह सन् 1969 में बनी पंजाबी फिल्म "नानक नाम जहाज" से है। भारत में आम तौर पर प्रादेशिक भाषा में बनने वाली फिल्में प्रादशिक सीमाओं में ही बंध कर रह जाती हैं। बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं जो अपनी सीमाओं के इस बंधन को तोड़ पाती हैं। "नानक नाम जहाज" एक ऐसी ही फिल्म है जो पंजाबी में बनी होने के बावजूद सारे भारत में लोकप्रिय हुई और हिंदी पट्टी में वैसी ही सफल हुई जैसी पंजाब में। इस फिल्म में सारे भारत में फैले गुरुद्वारों को देखा जा सकता है और यह फिल्म बड़े मानवीय, सामाजिक तरीके से सिक्ख धर्म का दार्शिनक इतिहास हमारे सामने रख देती है।

राकेशः इस गीत को पसंद किया था हमारे इन श्रोताओं ने गढ़नौलखा लालगंज बिहार से राज किशोर चौहान, धीरज कुमार चौहान, पूनम कुमारी चौहान और बड़क चौहान। और मंसूरी रेडियो श्रोता संघ राम चबूतरा, कालपी, जिला जालौन यू. पी. से मों जाकिर मंसूरी, कमरुन निशा, बेबी शबिस्ता, मों साकिर, मों जाविद, मों सईद, मो शरीफ, मों अनीश, मुकेश कुमार, सोनू, गोलू, राज, लकी एवं यश मंसूरी।

ललिताः कार्यक्रम का अंतिम गीत सुनिए, इसे गाया है अल्का यागनिक और राठौर ने।

गीत के बोलः

लः दिन सारा गुज़ारा तोरे अँगना

अब जाने दे मुझे मोरे सजना

मेरे यार शब-ब-ख़ैर

ओ मेरे यार शब-ब-ख़ैर

रः आसान है जाना महफ़िल से

ओ कैसे जाओगे निकल कर दिल से

मेरे यार शब-ब-ख़ैर

ओ दिलबर दिल तो कहे तेरी राहों को रोक लूँ मैं

आई बिरहा की रात अब बतला दे क्या करूँ मैं

याद आएँगी ये बातें तुम्हारी

तड़पेगी मोहब्बत हमारी

मेरे यार शब-ब-ख़ैर

लः मैं धरती तू आसमाँ मेरी हस्ती पे छा गया तू

सीने के सुर्ख़ बाग़ में दिल बनके आ गया तू

अब रहने दे निगाहों में मस्ती

ओ बसा ली मैने ख़्वाबों की बस्ती

मेरे यार शब-ब-ख़ैर

रः ये चंचल ये हसीन रात हाय काश आज ना जाती

हर दिन के बाद रात है इक दिन तो ठहर जाती

कोईइ हमसे बिछड़ के न जाता

जीते का मज़ा आ जाता

मेरे यार शब-ब-ख़ैर

राकेशः इस गीत को पसंद किया था आप सब ने भिलाई नगर से आकाशदीप रेडियो श्रोता संघ के अशोक श्याम कुंवर, प्रदीप कुमार शाह, किशनदास महंत, मनसा राम प्रेमी, दिनेश कुमार वर्मा, ईश्वरी प्रसाद साहू, नंद किशोर यादव, सुरेन्द्र सिंह नवदीप और संघ के अन्य सदस्य। और नया बाजार, नरपतगंज बिहार के मिस्टर शिबाकंचन, अशोक कुमार साह, किन्तु मंडल, उद्दीत नारायण सदा, वीणादेवी, छोटू, किटू, सुरज, निक्कु और श्रीमति नीलमकंचन।

ललिताः इस के साथ ही हमारा आज का यह कार्यक्रम समाप्त होता है। अगले कार्यक्रम तक के लिए आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

राकेशः नमस्कार।