राकेशः राकेश का भी सभी श्रोताओं को प्यार भरा नमस्कार। आज हम फिर हाजिर हैं आप के पसंदीदा कायर्क्रम के साथ। आशा है आज भी आप इस कार्यक्रम का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे होंगे।
ललिताः श्रोताओ, आज के इस कार्यक्रम की शुरुआत हम करते हैं गजर गायक "गुलामअली" के इस एक पंजाबी गीत से।
गीत के बोलः पता लगा मैन्नु हुंदी कि जुदाई जदो दां मेरा माही रुसया
राकेशः इस गीत को सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने गांधी ग्राम राजकोट से प्रवीण सोनी, प्रवीण पुजारी, जगदीरा जौहरी, पूजा पायल और कलावंत सोनी और एयरफोर्स पालम, दिल्ली कैंट से कुमार जय शंकर।
ललिताः दोस्तो, अभी-अभी दीवाली का त्योहार आकर गया है। इसलिए मैं और राकेश जी देर से ही आप सभी श्रोताओं को दीवाली की शुभकामनाएं देना चाहते हैं और आशा करते हैं कि आप स्वस्थ रहें, खुशहाल रहें और आप का घर समृद्धि से भरपूर हो।
राकेशः ललिताजी आप शायद जानती ही हैं कि दीवाली भारत के सब से महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। चीन के वसंत त्योहार की तरह।
ललिताः जी हां, मैं जानती हूं और यह भी कि दीवाली के शुभ अवसर पर लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, घरों की सफाई करते हैं, नए कपड़े, गहने खरीदते हैं, मिठाईयां बनाते हैं और रात को पूरा घर दीपों से सजाया जाता है और लक्ष्मी पूजा के बाद पटाखे छोड़े जाते हैं।
राकेशः हां तुम्हारी जानकारी मुकम्मल ठीक है।
ललिताः श्रोताओ, दीवाली की खुशी के अवसर पर लीजिए सुनिए "दीवाली की रात" फिल्म से यह एक गीत।
गीत के बोलः
ये ख़ुशी का समाँ
ज़िन्दगी है जवाँ
आ निगाहें मिला के तो देख
कह रही है फ़िज़ा
दो घड़ी मुसकरा
दिल की दुनिया बसा के तो देख
मौसम नया आ गया
ले कर फ़साने नये
कहती है ये बेख़ुदी
गा ले तराने नये
आँहों से मस्ती लुटा
दिल को मचलना सिखा
दिल की ख़ुशी के लिये
दुनिया को तू भूल जा
ये ख़ुशी का समाँ
ज़िन्दगी है जवाँ
आ निगाहें मिला के तो देख
कह रही है फ़िज़ा
दो घड़ी मुसकरा
दिल की दुनिया बसा के तो देख
उलफ़त की राहों में आ
दामन को रंगीं बना
दिल के जहाँ को बदल
अपना मुक़द्दर जगा
ये ख़ुशी का समाँ
ज़िन्दगी है जवाँ
आ निगाहें मिला के तो देख
कह रही है फ़िज़ा
दो घड़ी मुसकरा
दिल की दुनिया बसा के तो देख
राकेशः इस गीत को सुनने की फरमाइश की थी आप सब ने जिला मुरादाबाद पटटीवाला से मोहम्मद दिलशाद, फईम राजा, नौशाद बाबू, नईम आजाद, मौ. नसीम और मौ. इरशाद। और चतुपुर कुंदरकी से एम मुनाजिर खान, इर्तजा अली खां, फिरासत फारुखी, निजाबुल हसन, जुम्मा हलवाई और मुस्लिम अनस।
ललिताः यह एक पत्र मेरे पास, जिसे भेजा है हमारे श्रोता गांधी ग्राम राजकोट गुजरात से कलावंत सोनी, प्रवीण पुजारी, जगदीश जौहरी, पूजा पायल और प्रवीण सोनी ने।
राकेशः क्या लिखते हैं ये?
ललिताः ये लिखते हैं कि आप को हमारे परिवार की ओर से नमस्ते। हम आप के सारे कार्यक्रम सुनते हैं और आप हमारी पसंद का कोई भी गीत सुनवा दें।
राकेशः कलावंत सोनी जी और आप के परिवार के सभी सदस्यों का पत्र लिखने के लिए और कार्यक्रम पसंद करने के लिए बहुत शुक्रिया और आप की पसंद का गीत हाजिर है। लीजिए सुनिए।
गीत के बोलः बेबसी दर्द का आलम, तुम मुझे दे दो अपने गय
ललिताः यह गीत था फिल्म "बाबुल" से।
राकेशः और इस गीत को हमारे इन श्रोताओं ने भी सुनने की फरमाइश की थी नया टोला कटिहार बिहार से हरेंद्र प्रसाद साहा, प्रभा रानी साहा, कुलदीप कुमार साहा, मन्नो कुमार साहा और कुंदन कुमार साहा और सैदापुर अमेठी सुलतानपुर से श्री अनिल कुमार द्विवेदी।