कोआथ बिहार केसुनील केशरी, डी.डीसाहिबा,संजय केशरी,सीताराम केशरी,खुशबू केशरी बवीता केशरी,प्रियांका केशरी,एस.के.जिंदादिल का सवाल है कि महान नेता तंग श्याओ-पिंग कौन थे और उन्हों ने चीन के लिए क्या क्या किदोस्तो,श्री तंग श्याओ फिंग चीन के महान मार्क्सवादी,सर्वहारा क्रांतिकारी,राजनीतिज्ञ, युद्धविशेषज्ञ व राजनयिक थे.चीनी कम्युनिस्ट पार्टी, चीनी जन मुक्ति सेना व चीन लोक गणराज्य के वे प्रमुख नेता रहे.उन्होंने चीन में समाजवादी सुधार व खुलेपन और आधुनिकीकरण का आरम्भ किया और इस संबंध में अहम सिद्धांत रचा.
22 अगस्त 1904 को उन का जन्म दक्षिण-पश्चिमी चीन के सच्वान प्रांत के क्वांगआन जिले में हुआ.वे हान जाति के थे।वर्ष 1920 में वे अध्ययन के लिए फ्रांस गए.इस बीच वे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के युवा संगठन के सदस्य बने और 1924 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य.वर्ष 1926 के शुरू में वे आगे अध्ययन के लिए सोवियत संघ गए.1927 में वे स्वदेश लौटे.1928 व 1929 के बीच वे पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के महासचिव रहे. इस दौरान उन्होंने पार्टी के आदेश पर कोमिंतांग प्रतिक्रांतिकारियों के खिलाफ विद्रोह छेड़ा और पार्टी की सेना की स्थापना की.
अक्टूबर 1934 में वे लाल सेना के कठोर लम्बे अभियान में शामिल हुए.जनवरी 1935 के चुनई सम्मेलन में माउ त्सेतुंग पार्टी की नई नेतृत्वकारी संस्था के सर्वोच्च नेता बने.श्री तंग दढृता के साथ माउ के पक्षधर रहे।जापानी आक्रमण विरोधी युद्धकाल में वे पार्टी की आठ राह सेना के राजनीतिक विभाग के उप निदेशक बने और फिर इस सेना के मुख्यालय के निदेशक भी.
चीनी जनता के मुक्ति युद्ध काल में कोमिंतांग की सत्ता उलटने में उनका भारी योगदान रहा
नए चीन की स्थापना के बाद उन्हें केन्द्र जन सरकार का सदस्य नियुक्त किया गया.बाद में उन्होंने तिब्बत समेत दक्षिण-पश्चिमी चीन के मुक्ति कार्य में भारी योगदान किया.
जून 1952 में उन्हें केन्द्र सरकार का उप प्रधान व वित्तमंत्री नियुक्त किया गया.1954 में वे पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के महासचिव बने.इस के बाद वे पार्टी की केन्द्रीय कमेटी के पोलित ब्यूरो के सदस्य और महासचिव बने। इस दौरान उन्हें पार्टी अध्यक्ष का प्रभावशाली सहायक माना गया।
वर्ष 1966 में सांस्कृतिक क्रांति शुरू हुई तो श्री तंग को पदच्युत कर दिया गया.मार्च 1973 में उन्हें उप प्रधान पद पर नियुक्त किया गया.अप्रैल 1974 में वे चीन सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र महा सभा की छठी विशेष सभा में शरीक हुए.इस के बाद उन्हें केन्द्रीय सैन्य आयोग का उपाध्यक्ष और जन मुक्ति सेना का जनरल चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ नियुक्त किया गया.अप्रैल 1976 में उन्हें फिर पदच्युत होना पड़ा.
अक्टूबर 1976 में सांस्कृतिक क्रांति समाप्त हुई.इस के बाद उन्हें फिर से सरकार व सेना के पद पर नियुक्ति मिला.अगस्त 1978 में पार्टी की 11 वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में वे पार्टी के उपाध्यक्ष चुने गए.मार्च 1978 में पांचवें चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में वे राष्ट्रीय कमेटी के अध्यक्ष चुने गए। उन्होंने पार्टी के कार्य के केन्द्र को आर्थिक निर्माण में बदला.
दिसंबर 1978 में आयोजित पार्टी की 11 वीं केन्द्रीय कमेटी के तीसरे पूर्णाधिवेशन में चीन के समाजवादी आधुनिकीकरण के लिए सुधार व खुलेपन की नीति पेश की गई.इस में उनका भारी योगदान था.श्री तंग ने चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद के निर्माण का सिद्धांत रचा। इस सिद्धांत के बूते पार्टी की 13 वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में सुधार व खुलेपन की नीति तैयार की गई.
उन्होंने 1980 के दशक से 21 वीं सदी के मध्य तक के चीन के आधुनिकीकरण को साकार करने का रणनीतिक लक्ष्य तैयार किया.उन्होंने ग्रामीण व शहरी सुधार को गति दी और चीन जैसे समाजवादी देश को लिए बाजार अर्थतंत्र का सिद्धांत पेश किया.उन के समर्थन से चीन के पहले चार विशेष आर्थिक क्षेत्र आरम्भ हुए,साथ ही 14 समुद्रतटीय शहरों के द्वार विदेशों के लिए खोले गए.पूर्वी चीन के शंघाई में भी एक विशेष आर्थिक क्षेत्र की स्थापना की गई.
हांगकांग, मकाओ और थाइवान सवाल के समाधान और देश के शांतिपूर्ण पुनरेकीकरण के लिए उन्होंने एक देश,दो व्यवस्थाओं का विचार पेश किया.इस ढांचे के अंतर्गत वर्ष 1997 और 1999 में हांगकांग व मकाओ चीन में वापस लौट आए.
उन्होंने स्वावलंबी व स्वतंत्र शांतिपूर्ण विदेश नीति पेश की.इस नीति के तहत शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों को नई अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था का मापदंड बनाया गया.
श्री तंग के नेतृत्व में चीन ने अमेरिका के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये, जापान के साथ शांतिपू व मैत्री की संधि की, सोवियत संघ की पार्टी के साथ संबंध बहाल किये और पड़ोसी देशों व तीसरी दुनिया के देशों के साथ रिश्तों को विस्तार दिया.
वृद्धावस्था की वजह से उन्होंने अंततः सरकार व सेना के उच्चतम पदों से इस्तीफा दे दिया.चीन के सुधार व खुलेपन के विस्तार को प्रेरणा देने के लिए 1992 में श्री तंग ने दक्षिणी चीन का दौरा किया.इस दौरान उन्होंने चीन के सुधार व खुलेपन के अनुभवों का निचोड़ निकाला.उन के इस निरीक्षण-दौरे का लाभ उठा कर चीन ने सुधार, खुलेपन व आधुनिकीकरण के नये अध्याय का आरम्भ किया।
19 फरवरी 1997 को श्री तंग श्याओ-फिंग का गंभीर रोग के चलते पेइचिंग में निधन हो गया.