कोआथ रोहतास बिहार के डीडी साहिबा का लेख , शीर्षक है पेइचिंग ओलंपिक में स्वयं सेवकों का सहयोग ।
पेइचिंग ओलंपिक में स्वयं सेवकों का सहयोग एक उल्लेखनीय कार्य है, जिस को पूरा करने के लिए चीनी पुलिस को सहयोग देने के वास्ते एक सौ भाषा के स्वयं सेवक चीन में आएंगे तथा चीनी पुलिस को हर भाषा का अनुवाद कर ज्ञान का पाठ पठाएंगे। यातायात सुरक्षा व्यवस्था को और पुख्ता बनाने के लिए मदद करेंगे , ताकि ओलंपिक के समय विभिन्न देशों से चीन आए दर्शकों व खिलाड़ियों को कोई कठिनाई न उत्पन्न हो । इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए विदेशी स्वयं सेवकों की मदद भी ली जा रही है , ताकि हर भाषा के खिलाड़ियों से चीनी दर्शकों के साथ भाषा का आदान प्रदान हो सके । आपस में बातचीत सकारात्मक तरीके से कर सके और ओलंपिक सफल रूप से पूरा हो , इस का सुखद समापन हो , ताकि स्वयं सेवकों की मेहनत पेइचिंग ओलंपिक में रंग लाए और लोगों को हर पल हर तरह की परेशानी से निजात दिलाने में अपना बहुमूल्य रोल अदा कर सके तथा चीनी खेल कमेटी चैन की सांस तब तक नहीं ले सकती , जब तक 24 अगस्त को आखरी मैच न हो जाए । इस तरह पेइचिंग ओलंपिक को हर कठिनाई से दूर रख कर सकारात्मक कार्य करे , ताकि चीन का नाम विश्व में रौशन हो , इस के नाम का बिगुल बजे , विश्व के छत पर मशाल पांच सितारा ध्वज के साथ प्रज्ज्वलित हो जाए ।
यह लेख ढोली सकरा बिहार से दीपक कुमार दास द्वारा लिख कर भेजा गया है । शीर्षक है पेइचिंग ओलंपिक के लिए सी .आर.आई श्रोताओं के दिल की धड़कन ।
आज सारे विश्व में पेइचिंग ओलंपिक की खुसबू फैल गया है । चारों तरफ बिखरें इंद्रधनुषी रंगों , हजारों गुब्बारों और आसमान में उड़ते अमन के सूचक कबूतरों के बीच पेइचिंग ओलंपिक में ओलंपिक मशाल का बड़े प्यारे अंदाज से इस्तकबाल किया गया है , जो हम श्रोतागण सी .आर .आई के कार्यक्रम सामायिक में सुना और दिल गदगद हो उठा है । अब ओलंपिक मशाल 130 दिन की एक लाख 37 हजार किलोमीटर की सब से लंबी रिले की दौर हो गयी है । चीन के राष्ट्रपति हु चिनथाओ ने पेइचिंग में बड़े प्यारे अंदाज से इस ओलंपिक मशाल पुनः प्रज्ज्वलित किया और अधिकारिक रूप से शुरूआत की घोषणा की । यूनान देश से एक चार्टड विमान से सुबह नौ बजे चीन के पेइचिंग पहुंचने के बाद थ्येनआनमन चौक पर समारोह की शुरूआत बड़े धूमधाम से हुई । इस समारोह में राष्ट्रपति हु चिनथाओ ने मशाल ओलंपिक चैम्पियन ल्यू श्यांग के सुपुर्द कर दिया। हु चिनथाओ की घोषणा के बाद मशाल पहले कजाकस्तान जाते हुए विश्व के 135 शहरों में जाएगा । भारत के नई दिल्ली में 17 अप्रैल को बड़े शान से मशाल रिले की दौड़ हुई , जो काफी सुन्दर दिखाने में लगा । हम श्रोता काफी खुश है कि मशाल 8 अगस्त को 2008 ओलंपिक उद्घाटन समारोह के लिए पेइचिंग के नेशनल स्टेडियम पहुंचेगी । बड़ी खुशी की बात है कि मशाल रिले के इतिहास में सब से ज्यादा मशाल धारक इस में भाग ले रहे हैं । पेइचिंग ओलंपिक समिति समन्वय आयोग के अध्यक्ष जैकस रोगें का संदेश पढ़ते हुए कहा कि यह मशाल खेलों की शुरूआत ही नहीं , बल्कि दुनिया में शांति का संदेश भी फैला रही है ।
ओलंपिक में शुभंकर की भी अपनी महत्ता है । सब से पहले सन् 1968 में ओलंपिक के शुभंकर की शुरूआत हुई थी । इस बार पेइचिंग ओलंपिक में फुवा को शुभंकर बनाया गया है जो दुनिया भर के बच्चों को आकर्षित करेगा । मछली , पांडा , मशाल , मृग और अबाबील के डिजाइन को प्रदर्शित करने वाले पांच विभिन्न कार्टून चित्रों के नाम बेईबेई,चिंगचिंग, हुआनहुआन , यिंगयिंग और नीनी है । अगर इन नामों को इस तरह पढा जाए कि बेई चिंग हुआन यिंग नी , तो इस का चीनी भाषा में मतलब है कि पेइचिंग वेलकम यू । ओलंपिक में सब से बड़ी जिज्ञासा फर्राटा दौड़ को लेकर रहती है । सौ मीटर में मौजूदा रिकार्ड कनाडा के डोनोवन बैली के नाम है । उन्हों ने अटलांटा में 1996में हुए खेलों में 9.84 सैकंड का समय निकाला है।
पेइचिंग ओलंपिक का मशाल भी काफी सुन्दर दिखने में लगता है , मशाल की ऊंचाई 72 सेंटी मीटर और लौ की ऊंचाई 25 से 30 सेंटीमीटर है। इस की खासियत है कि 65 किलोमीटर प्रतिघंटे की तेज हवा एवं 50 किलोमीटर प्रतिघंटे की वर्षा में भी जलती रहेगी ।
पेइचिंग ओलंपिक स्टेडियम निर्माण कार्य दिसम्बर 2003 से शुरू हुआ था। पक्षी के घोंसले से प्रेरणा ले कर बना यह स्टेडियम अपने निर्धारित समय पर तैयार हुआ है । ओलंपिक खेलों का उद्घाटन , फुटबाल और एथलेटिक मुकाबले इस में आयोजित होंगे। काश है कि मैं भी इस में उपस्थित हो सकूं ।
ढोली सकरा बिहार के जसीम अहमद का एक लेख , शीर्षक है पेइचिंग ओलंपिक जिन्दाबाद , हम होंगे कामयाब ।
इस आलेख में श्री जसीम अहमद ने ओलंपिक के इतिहास की याद करते हुए ओलंपिक खेलों के विभिन्न महत्वों पर समीक्षा की है और ओलंपिक के बारे में कुछ अहम पॉइट लिख कर बताये , जो यहां सौजन के रूप में हमें याद कराने के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
ओलंपिक चार्टर---ओलंपिक चार्टर के अनुसार ओलंपिक अभियान का उद्देश्य इस प्रकार है कि खेल के लिए आवश्यक शारीरिक और नैतिक गुणों का विकास करना , विश्व को बेहतर और शांतिमय बनाने के लिए खेलों के माध्यम से युवाओं में आपसी सद्भाव और मित्रता बढाना , पूरे विश्व में ओलंपिक सिद्धांतों का प्रसार करके अन्तरराष्ट्रीय सद्भाव उत्पन्न करना , विश्व भर में खिलाड़ियों को हर चार वर्ष पश्चात विशाल खेल समारोह ओलंपिक खेल के लिए एक स्थान पर ला कर एकत्रित करना ।
ओलंपिक चिन्ह--- ओलंपिक चिन्ह पांच अलग अलग रंगों के छल्लें हैं , जो आपस में जुड़े हुए हैं । ये छल्लें पांच महाद्वीपों की एकता और आधुनिक ओलंपिक खेलों के जन्मदाता पियरे डी कुबर्तिन द्वारा प्रतिपादित आदर्शों के अनुरूप ओलंपिक खेलों की निष्पक्ष और मुक्त स्पर्धा के लिए पूरे विश्व के खिलाड़ियों के एकत्र होने का प्रतीक है । ये छल्ले—नीले , पीले , काले , हरे और लाल रंग के होते हैं ।
ओलंपिक आदर्श वाक्य ---और तेज , और ऊंचा और बलशाली । ओलंपिक ध्वज---पियरे डि कुबर्तिन ने सुझाव पर 1914 में बनाये गए ओलंपिक ध्वज को पहली बार 1920 में हुए एंटवर्प ओलंपिक में फहराया गया था । ओलंपिक ध्वज सिल्क का बना होता है इस पर आपस में जुड़े हुए नीला , पीला , काला ,हरा और लाल रंग के पांच छल्ले अंकित होते हैं।
ओलंपिक मशाल--- ओलंपिक मशाल ओलंपिक खेलों का अभिन्न अंग है । ओलंपिक मशाल ओलंपिक खेल प्रारंभ होने से कुछ दिन पूर्व यूनान के ओलंपिया गांव के जियस के मंदिर से लायी जाती है । वहां इसे सुर्य की किरणों से प्रज्ज्वलित किया जाता है । बर्लिन ओलंपिक 1936 में ओलंपिक मशाल जलाने की प्रथा को पुर्जीवित किया गया ।
ओलंपिक पदक--- ओलंपिक खेलों में प्रथम प्राप्तकर्ता को स्वर्ण पदक , द्वितीय स्थान प्राप्त कर्ता को रजत पदक और तृतीय स्थान प्राप्त कर्ता को कांस्य पदक पुरस्कार स्वरूप प्रदान किया जाता है। साथ में उन्हें डिप्लामा भी दिया जाता है । चौथे से आठवें स्थान पाने वाले प्रतियोगिताओं को केवल डिप्लोमा से सम्मानित किया जाता है । प्रत्येक पदक का व्यास कमस से कम 60 मिलीमीटर तथा मोटाई तीन मिलीमीटर रखी जाती है । स्वर्ण व रजत पदक 925से 1000प्रतिशत शुद्ध चांदी का होना चाहिए , स्वर्ण पदक में कम से कम 6 ग्राम सोने की परत चढ़ी होनी चाहिए और कांस्य पदक कांसे का बना होता है ।
ओलंपिक गान--- ओलंपिक गान की रचना यूनान के संगीतकार स्पिरॉस सामारास और कोस्तिम पाला मास ने 19वीं शताब्दी में की । 1958 में अन्तरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने इसे मान्यता प्रदान की । यही गान ओलंपिक खेल के उद्घाटन व समापन समारोह में प्रस्तुति किया जाता है ।