2008-09-24 15:55:13

शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा

ललिताः यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। आप की पसंद कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को ललिता का प्यार भरा नमस्कार।

राकेशः राकेश का भी सभी श्रोताओं को प्यार भरा नमस्कार। आएं, आज के कार्यक्रम की शुरुआत करें हम इस एक गीत से।

गीत के बोलः

शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा

अब हमें आप के क़दमों ही में रहना होगा

आप से रूठ के हम जितना जिये ख़ाक जिये

कई इल्ज़ाम लिये और कई इल्ज़ाम दिये

आज के बाद मगर कुछ भी न कहना होगा

आप के प्यार का बीमार हमारा दिल है

आप के ग़म का खरीदार हमारा दिल है

आप को अपना कोई दर्द न सहना होगा

राकेशः यह गीत था फिल्म "पड़ोसन" से, लता की आवाज में और इसे संगीत दिया था आर जी बर्मन ने और सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने शिवाजी चौक, कटनी से अनिल ताम्रकार, अमर ताम्रकार, संतोष शर्मा, रज्जन रजक, राजू ताम्रकार, दिलीप वर्मा और प्रकाश पेंटर। और नारनौल हरियाणा से उमेश कुमार शर्मा, राजेश गुप्ता, विजय शर्मा, शैलेंद्र शर्मा, रमेश यादव, देशराम, हुकुम सैनी, बंटी और बिटटू।

ललिताः श्रोताओ, 17 सितंबर की रात को पेइचिंग पैरा ऑलंपिक खेल समारोह संतोषजनक रूप से संपन्न हो गया। 11 दिनों में 147 देशों व क्षेत्रों से आए चार हजार से अधिक विकलांग खिलाड़ियों ने स्व निर्भर रह कर अडिग रूप से संघर्ष करने, जीवन से प्यार करने और अपने आप को चुनौती देने की मानसिक सूरत प्रदर्शित की है और खेलकूद से उत्पन्न भावना और प्रसन्नता का आनन्द उठाया है।

राकेशः 11 दिनों में विकलांग खिलाड़ियों ने 20 इवेंटों की प्रतियोगिताओं में भाग लिया और कुल 471 स्वर्ण-पदक हासिल किए। उन्होंने अपनी ठोस कार्यवाहियों के जरिए पेइचिंग पैरा ऑलंपिक की श्रेष्ठता, मेलमिलाप और सह उपभोग की धारणा को मूर्त रूप दिया है। और साथ ही स्वस्थ व्यक्तियों की मनोगत भावना को प्रोत्साहन दिया है, जिस से सभी लोगों को जीवन की मर्यादा और मानवता की शोभा महसूस हो रही है।

ललिताः भावना खेलकूद से निकलती है, यह अन्तर्राष्ट्रीय पैरा ऑलंपिक खेल का आदर्श वाक्य है। पैरा ऑलंपिक में हिस्सेदारी के जरिए विभिन्न देशों व क्षेत्रों के खिलाड़ी आत्म सम्मान, आत्म विश्वास और आत्म निर्भरता दिखाते हैं और प्रसन्नता, खुशी, सपना, सफलता का एहसास करते हैं तथा अपने आप को चुनौती देने और प्राण मूल्य प्राप्त करने का लक्ष्य साकार करते हैं।

राकेशः अन्तर्राष्ट्रीय पैरा ऑलंपिक खेल विकलांगों व स्वस्थ लोगों को विश्व महा परिवार में आपस में मिलकर सामाजिक अधिकारों का समान रूप से उपभोग करने और सामंजस्यपूर्ण दुनिया के निर्माण की समान कोशिश करने के लिए प्रेरित करता है।

ललिताः आएं सुनें एक और गीत। यह गीत है फिल्म "नया दौर" से और इसे गाया है रफी और आशा ने और सुनने की फरमाइश की है हमारे इन श्रोताओं ने नैनीताल, उत्तरांचल से रमेश सिंह नेगी, किशोर सिंह नेगी, भुवन, ज्योति, पवन और कमला।

गीत के बोलः

माँग के साथ तुम्हारा मैंने, मांग लिया संसार

माँग के साथ तुम्हारा मैंने, मांग लिया संसार

माँग के साथ तुम्हारा

दिल कहे दिलदार मिला, हम कहें हमें प्यार मिला

प्यार मिला हमें यार मिला, एक नया संसार मिला

आ आस मिली अरमान मिला

ओ जीने का सामान मिला

मिल गया एक सहारा, ओ ओ ओ ओ

माँग के साथ तुम्हारा

दिल जवां और रुत हंसीं, चल यूँही चल दें कहीं

तू चाहे ले चल कहीं, तुझ पे है मुझको यकीं

ओ जान भी तू है दिल भी तू ही

आ राह भी तू मंज़िल भी तू ही

और तू ही आस का तारा, ओ ओ ओ ओ

माँग के साथ तुम्हारा

ललिताः सात साल पूर्व पेइचिंग ने विश्व को वचन दिया था कि दो ऑलंपिक एक साथ तैयार किए जाएंगे और दोनों को समान रूप से श्रेष्ठ बनाया जाएगा। सात साल बाद पेइचिंग ने अपनी वास्तविक गतिविधियों के जरिए इस वचन को मूर्त रूप दिया है।

राकेशः पैरा ऑलंपिक के सफल आयोजन के लिए पेइचिंग ने बुनियादी संस्थापनों के निर्माण और बाधा रहित यातायात के क्षेत्रों में बहुत कोशिश की है। मसलन पेइचिंग के भूमिगत रेलवे स्टेशन में लिफ्ट का निर्माण किया, जिस में बाधा रहित मार्ग बनाया गया। निश्चित अस्पतालों व होटलों में बाधा रहित संस्थापनों का निर्माण किया गया और विभिन्न बड़े पर्यटन स्थलों में विकलांगों के लिए खरीदारी व यात्रा के लिए रास्ते और चढ़ने व उतरने वाली मशीनें भी बनाई गई हैं।

ललिताः जी हां। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 के बाद से अब तक पेइचिंग ने कुल 14 हजार बाधा रहित संस्थापनों के सुधार वाली परियोजनाओं को लागू किया, बाधा रहित संस्थापनों की संख्या पिछले 20 वर्षों की कुल मात्रा के बराबर है।

राकेशः यह तो विकलांग दोस्तों के लिए सचमुच एक बहुत अच्छी बात है। तो श्रोताओ, आएं सुनें एक और गीत। यह गीत है "दूर का राही" फिल्म से और इसे गाया है किशोर कुमार ने और सुनने की फरमाइश की है हमारे इन श्रोताओं ने मौहल्ला भूड़ा, कस्बा सैफनी से, मौ. आरिफ, मौ. यूनुस और शहनाजपखीन। मस्जिद रोड़, कोआथ बिहार से मों अली बदर, तलत परवीन, फरहत परवीन, हेना परवीन, सदफ, रुबी और जूबी।

गीत के बोलः

पंथी हूँ मैं उस पथ का

अंत नहीं जिसका

आस मेरी है जिसकी दिशा

आधार मेरे मन का

संगी साथी मेरे

अंधियारे उजियारे

मुझको राह दिखायें

पलछिन के फुलझारे

पथिक मेरे पथ के सब तारे

और नीला आकाश

पंथी

इस पथ पर देखे कितने

सुख दुख के मेले

फूल चुने कभी खुशियों के

कभी काटों से खेले

जाने कब तक चलना है

मुझे इस जीवन के साथ

पंथी