2008-09-23 15:38:13

मैं और ओलंपिक शीर्षक लेखन प्रतियोगिता के लिए श्रोताओं की रचनाएं

कालाहांडी उड़ीसा के सुरेस अग्रवाल का लेख।

ओलंपिक से मेरा रिश्ता 1980 मास्को ओलंपिक से जुड़ा तब हमारे यहां आज की तरह आयोजन की जीवंत तस्वीरें नहीं देखी जा सकती थीं। बस, रेडियो पर विभिन्न स्पर्धाओं का आंखों देखा हाल सुन कर खेलों की तमाम सरगर्मियों को महसूस किया जा सकता था । कालांतर में दूर संचार में आयी क्रांति ने मानो ओलंपिक खेलों को घर के आंगन अथवा ट्राइंगरूम तक पहुंचा दिया।

मेरी राय में ओलंपिक विश्व के मशहूर एवं श्रेष्ठतम खिलाड़ियों की ताकत और दमखम को आजमाने का अखाड़ा ही नहीं , अन्तरराष्ट्रीय खेलोंका वह महाकुंभ है , जहां न केवल प्रमुख खेल एवं खेल-हस्तियों का मिलन होता है , बल्कि विश्व भर की तमाम संस्कृतियों का वह संगम है ,जिस में अवगाहन करने वाले हर शख्स का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

यूं तो ओलंपिक आयोजन हेतु हर देश वह तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराता है , जो कि अन्तरराष्ट्रीय मानकों पर खरी उतरती हो , परन्तु कहीं न कहीं कुछ कमी रह जाना स्वाभाविक है । वास्तव में खेलों का मूल मकसद तो ओलंपिक के बहाने देशों के बीच शांति एवं सौहार्द के जरिए अच्छे संबंध कायम करना है । अफसोस की बात यह है कि मूल भावना के विपरीत अब कुछ देश ओलंपिक खेलों को राजनीतिक अखाड़ा बनाने की कुत्सित चालें चलने लगे हैं ।

1980 के बाद से मैं ने जितने भी ओलंपिक आयोजनों को देखा और समझा –पेइचिंग ओलंपिक का आयोजन सब से भव्य है । चीन ने न केवल अन्तरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयारियों को अंजाम दिया , अपितु ओलंपिक भावना के अनुरूप ही देशों , खिलाड़ियों तथा आयोजन से जुड़े तमाम लोगों को सर्वोच्च वरीयता प्रदान कर श्रेष्ठतम होने की मिसाल कायम की है । परन्तु अफसोस कि इस पर पीठ थपथपना तो दूर , चीन विरोधी कुछ शक्तियां आयोजन में राजनैतिक अड़ंगा डालने की नाकाम कोशिशें कर रही हैं । तिब्बत की स्वतंत्रता के नाम पर ओलंपिक मशाल को अनेक स्थानों पर रोकने का प्रयास किया गया तथा हिंसा फैलायी गयी। प्रशंसा करनी होगी चीन की कि इन तमाम झंझावतों को संयम एवं धैर्य के साथ झेलते हुए अपने विरोधियों को उन के मकसद में कामयाब नहीं होने दिया । चीन के संयम एवं धैर्य का परिणाम यह देखने को मिला कि विश्व की जो शक्तियां एवं नेता पेइचिंग ओलंपिक को विफल करने तथा उन का बहिष्कार करने की चेतावनी दे रहे थे , अब वे ही स्वयं ओलंपिक समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने बेताब हैं ।

पेइचिंग ओलंपिक केवल खेलों का अखाड़ा नहीं , बल्कि विगत वर्षों में चीनी आर्थिक उदारीकरण की नीति के चलते देश में आयी औद्योगिक क्रांति की झलक करीब से पाने का विश्व को एक अवसर भी प्रदान करता है । इस के अलावा विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक चीन की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर एवं उस के ऐतिहासिक स्थलों को निहारने का भी एक अच्छा मौका कहा जा सकता है ।

ओलंपिक पर मेरा अनुभव यह रहा है कि इस पर पाश्चात्य प्रभाव हमेशा हावी रहा है। पश्चिमी देश कभी साम्यवाद के नाम पर तो कभी राजनैतिक कारणों के बहाने अपनी धौंस जमाते रहे हैं । खेलों में अच्छे प्रदर्शन के नाम पर नशीले पदार्थों का सेवन भी सर्वप्रथम इन्हीं देशों के खिलाड़ियों द्वारा किया गया । अब समय आ गया है कि समानता के आधार पर एशिया , अफ्रीका सहित तमाम विश्व के लोगों को ओलंपिक को भेदभाव रहित एक ऐसे मंच के रूप में विकसित करने प्रयास करने चाहिए, जिनका उद्देश्य खेलों के जरिए अन्तरराष्ट्रीय सौहार्द एव भाइचारे को बढ़ावा देना हो । चीन और जापान का नाम एशिया क्षेत्र की उभरती हुई शक्तियों में लिया जाता है , ऐसे में इन का कर्तन्य बन जाता है कि अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन करते हुए मूल भावना के साथ ओलंपिक के अस्तित्व को बढ़ावा दें ।