मुजफ़रपुर बिहार के रोयल लिसनर्स क्लब के जासीम अहमद का सवाल है कि चीनी लड़कियों को लोहे के जूते पहनाए जाते हैं ऐसा क्यों किया जाता है?
पता नहीं आप ने कहां से यह खबर सुनी है कि चीनी लड़कियां लोहे के जूते पहनती हैं.यह खबर मनगढंत लगती है.क्योंकि खुद हम चीनी तक भी इस बात से कतई वाकिफ़ नहीं है.हम समझते हैं कि दुनिया के किसी भी देश में लड़कियों के साथ ऐसा क्रूर बर्वात नहीं हो सकता है.आप सोचिए कि लोहे के जूते बनाने में कितनी लागत लगायी जानी चाहिए? इन जूतों को कैसे पहना जा सकता? और इस तरह के जूते बनाने की क्या जरूरत है? सभी लड़कियां सौंदर्य के पीछे भागती हैं.सुन्दर जूते लोहे से कैसे बन सकते हैं? वास्तव में भारतीय लड़कियां जिस तरह के जूते पहनती हैं,वहींजूते चीनी लड़कियां भी पहनती हैं.भारत की भांति चीन के बाजारों में भी लड़कियों के लिए लाल,गुवाबी और अन्य जीवंत रंगों में फूटवियर का कंलेक्शन पेश किया जाता है.इन फूटवियर में कढाई,बर्डवर्क और रंगीन पत्थरों का उपयोग होता है,जो सुन्दर दिखने के साथ आरामदेह का अहसास देते हैं.
मऊ नाथ उत्तर प्रदेश के फैयाज अहमद अंसारी, शमशाह अंसारी, मुहम्मद इर्शाद, विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश की सुश्री रहमतुन्निसा और कोआथ बिहार के सुनील केशरी, डी.डी साहिबा, संजय केशरी, सीताराम केशरी, खुशबू केशरी बवीता केशरी, प्रियांका केशरी, एस के जिंदादिल आदि श्रोता पूछते हैं कि चीन में किस धर्म के लोगों की संख्या अधिक है?चीनी मुसलमानों की संख्या कितनी है और तिब्बत स्वायत प्रदेश बौद्धमत के अनुयाइयों की संख्या क्या है?
चीन में बहुत से धर्म प्रचलित हैं, जिन में बौद्ध-मत, ताओ-मत, इसलाम, क्रीस्ट और कैथोलिक-धर्म प्रमुख हैं। इस समय चीन में विभिन्न धर्मों पर विश्वास करने वालों की कुल संख्या 10 करोड़ से अधिक है। देश भर में 85 हजार से ज्यादा पूजास्थल हैं, धर्म-संप्रदायों से जुड़े संगठनों की संख्या 3000 है, और धार्मिक कार्यकर्ता तैयार करने के लिए 74 शिक्षालय खुले हैं। देश के धार्मिक कार्यकर्ताओं की संख्या करीब 3 लाख है। बौद्ध मठों में दो लाख भिक्षु और भिक्षुणी रहते हैं, ताओमत के मठवासियों की संख्या 25 हजार हैं। मसजिदों के इमामों की गिनती 40 हजार के आसपास हैं, तो कैथोलिक व प्रोटेस्टेंट गिरजों में कोई 22 हजार पादरी हैं।
चीन में बौद्ध-मत का प्रचार कोई 2000 वर्ष पूर्व भारत से शुरू हुआ था। इस समय चीनी बौद्ध-मत चीनी भाषी, तिब्बती भाषी और पाली भाषी तीन व्यवस्थाओं में बंटा है। बौद्ध-मत चीन के भीतरी इलाकों में काफी प्रभावी है, लेकिन बौद्ध-मत पर विश्वास के स्पष्ट नियम नहीं हैं, इस लिए इस के अनुयाइयों की गणना थोड़ी मुश्किल है। चीन के तिब्बत, मंगोल, यू-कु,मन-पा और थू आदि अल्पजातियों में तिब्बती बौद्ध-मत प्रचलित है।। दक्षिण-पश्चिमी चीन की ताई,पूलांग,त-आंग और वा जातियों में पाली बौद्ध-मत प्रचलित है।इस समय पूरे चीन मे 10 करोड़ से अधिक बौद्ध हैं.
इस्लाम का प्रवेश चीन में आठवीं सदी के मध्य में अरब से हुआ था। चीन में इस का इतिहास कोई 1300 वर्ष पुराना है। चीनी मुस्लमान अधिकांशतः सुन्नी फ़िरक़े के हैं। चीन में ह्वई,वेइगुर, तातार, किरगिज. कजाख, उजबेक, तुंगश्यांग,साला और पाओ-आन आदि इसलाम समूह हैं, इन की कुल संख्या 1 करोड़ 70 लाख से अधिक है। इन जातियों के लोग मुख्य तौर पर सिंगच्यांग वेइगुर स्वायत प्रदेश, निंगश्यांग ह्वई स्वायत प्रदेश और कानसू,छिंगहाई और युननान प्रांतों में बसे हैं।चीन में इस्लाम धर्म के अनुयाइयों की संख्या सब से अधिक है.
ताओमत की उत्पत्ति चीन में ही हुई। इस का इतिहास 1800 साल पुराना है। इस धर्म पर विश्वास व्यक्त करने के नियम भी सख्त नहीं है, इस लिए इस के अनुयाइयों की गणना भी मुश्किल है।
सातवीं सदी में ही क्रीस्ट और कैथोलिक-धर्मों के प्रचार के लिए विदेशी धर्मदूत चीन आ गए थे। य्वान राजवंश का पतन होने के बाद चीन में क्रीस्ट-धर्म व कैथोलिक-धर्म का प्रचार भी बंद रहा। 16 वीं सदी के मध्य में और 18वीं सदी के शुरू में क्रीस्ट व कैथोलिक-धर्मों का प्रचार चीन में फिर से सक्रिय हो उठा। 19 वीं सदी के 40 वाले दशक में चीन-ब्रिटेन अफीम युद्ध के बाद चीन में इन का बड़ा विकास हुआ। पिछली सदी के पचास वाले दशक में चीन में कैथोलिक और क्रीस्ट-धर्मों के अनुयाई अलग अलग तौर पर 7 लाख गिने गए थे। और इस समय इनकी कैथोलिक अनुयाई 36 लाख और क्रीस्ट-धर्म के अनुयाई 60 लाख होंगे।
चीन के तिब्बत स्वायत प्रदेश में तिब्बती बौद्धमत प्रचलित हैं। तिब्बत स्वायत प्रदेश की जनसंख्या 26 लाख 15 हजार है, जिस का अधिकांश बौद्धमत का अनुयाई है। तिब्बती बौद्धमत चार संप्रदायों में बंटा है। तिब्बत स्वायत प्रदेश में कोई 2000 मुस्लिम और 600 कैथोलिक हैं। इस के अलावा वहां"बोनमत"भी प्रचलित है। यह तिब्बत का आदिम धर्म है। कहा जाता है कि इस का इतिहास 2100 वर्ष से 18 हजार वर्ष तक पुराना है। लेकिन प्रामाणीक ग्रंथों के अनुसार वोनमत की उत्पत्ति सातवीं सदी में उत्तरी तिब्बत के आली क्षेत्र में हुई थी। बाद में इस का प्रचार युननान प्रांत यहां तक कि भारत में भी हुआ। युनानान प्रांत के नाशी व भू-मी जातियों के लोग आज भी बोनमत पर विश्वास रखते हैं।