राकेशः राकेश का भी सभी श्रोताओं को प्यार भरा नमस्कार। आएं, आज के कार्यक्रम की शुरुआत करें हम इस एक गीत से।
गीत के बोलः
ओ कन्हैया
कन्हैया
ओ कन्हैया आज पनघट पे है तेरी राधा अकेली खड़ी
ओ कन्हैया
मन ये कहता है अब ना पुकारूँ तुझे
प्यार कहता है कैसे बिसारूँ तुझे
प्रीत की रीत कैसे बदल दूँ भला
नैन कहते हैं हरदम निहारूँ तुझे
आ भी जा साँवरे, फिर छेड़ दे, रे वही बाँसुरी
ओ कन्हैया
मन के मंदिर में मैने बिठाया तुझे
अपना सब कुछ ही मैने बनाया तुझे
तेरी पूजा में मैं तो रही रे मगन
और भगवान बनना न आया तुझे
आ भी जा साँवरे, फिर छेड़ दे, रे वही बाँसुरी
ओ कन्हैया
राकेशः यह गीत था फिल्म "हमसाया" से। इसे गाया था आशा भौंसले ने और सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने कुरसेला तिनधरिया से ललन कुमार सिंह, श्रीमती प्रभा देवी, कुमार केतु, मनीष कुमार मोनु, गौतम कुमार, स्नेह कुमारी, दिलावर हुसैन दिलकश, अशोक प्रसाद मंडल और एस. के. सिंह।
ललिताः श्रोताओ, जैसा कि आप जानते हैं पेइचिंग समर ऑलंपिक 24 अगस्त को सफलतापूर्वक समाप्त हो गया है। लेकिन इस की बहुत सी प्रभावशाली कहानियां हमेशा हमें याद रहेंगी।
राकेशः जी हां। पेइचिंग ऑलंपिक में सबसे ज्यादा रिकार्ड टूटे और पेइचिंग ऑलंपिक सचमुच ऑलंपिक इतिहास में सबसे महा ऑलंपिक के रूप में याद किया जाएगा। अब पैरा-ऑलंपिक उद्धाटित हुआ है और पेइचिंग पैरा ऑलंपिक अवश्य ही पेइचिंग समर ऑलंपिक की ही तरह शानदार और श्रेष्ठ होगा।
ललिताः राकेश जी, क्या आप को मालूम है कि पेइचिंग ऑलंपिक में दो विकलांग महिला खिलाड़ियों ने भी आम खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा की और अच्छा परिणाम प्राप्त किया है। वे हैं पोलैंड की टेबल टेनिस की खिलाड़ी पाटिका और दक्षिण अफ्रीका की खिलाड़ी नटली टुथइट। उन्होंने अपनी क्षमता से पेइचिंग ऑलंपिक में भाग लेने की हैसियत प्राप्त की है। और वे सिर्फ दो ऐसी खिलाड़ी हैं, जो पेइचिंग समर ऑलंपिक और पैरा-ऑलंपिक दोनों में भाग ले रही हैं।
राकेशः निश्चय ही वे दोनों बहुत महान हैं। उन के बारे में अपने श्रोताओं को कुछ बताएं।
ललिताः जरूर क्यों नहीं। लेकिन उससे पहले श्रोताओं के लिए यह गीत पेश करें।
गीत के बोलः
यही वो जगह है, यही वो फ़िज़ा है
यहीं पर कभी आप हमसे मिले थे
इन्हें हम भला किस तरह भूल जायें
यहीं पर कभी आप हमसे मिले थे
यहि वो जगह है
यहीं पर मेरा हाथ, हाथों में लेकर
कभी ना बिछड़ने का, वादा किया था
सदा के लिये हो गए हम तुम्हारे
गले से लगा कर हमें ये कहा था
कभी कम ना होंगी हमारी वफ़ाएं
यहीं पर कभी आप हमसे मिले थे
यहि वो जगह है
यहीं पर वफ़ा का, नया रंग भर के
बनाई थी चाहत की, तसवीर तुमने
यहीं की बहारों से, फूलों को चुन कर
संवारी थी उलफ़त की, तक़दीर तुमने
वो दिल आपको याद कैसे दिलाये
यहीं पर कभी आप हमसे मिले थे
यहि वो जगह है
राकेशः यह गीत था फिल्म "यह रात फिर न आएगी" से और इसे गाया था आशा ने और सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने गणेशपुर, गंजडुंडवारा, यू. पी. से एम फारुक शेख, शेख शमा परवीन, भुवन प्रकाश, सरिता गौतम, सायमा फारुक, सर फिरोज शेख और बेबी मुस्कान। और मनकारा मन्दिर बी. डी. ए. कालौनी करगैना बरेली से पन्नी लाल सागर, बेनीसिंह, धर्मवीर मनमौजी, आशीष कुमार सागर, कु. रूबी भारती, कु. एकता भारती, कु. दिव्या भारती, श्रीमती ओमवती भारती और बहिन रामकली देवी।
ललिताः श्रोताओ, पोलैंड की टेबल टेनिस की खिलाड़ी पाटिका, जब पैदा हुईं, तब उन का केवल एक हाथ ही था। लेकिन एक हाथ होने के बावजूद जब वे 7 वर्ष की हुईं, तब उन्होंने अपनी बहन से टेबल टेनिस सीखना शुरू किया। पाटिका ने बहुत मेहनत से प्रशिक्षण किया और बहुत सी उपलब्धियां हासिल कीं। वर्ष 2004 एथेन्स पैरा-ऑलंपिक में 15 वर्षीय पाटिका ने महिला टेबल टेनिस की चैंपियनशिप जीती और अपनी क्षमता दुनिया के सामने साबित की। पेइचिंग ऑलंपिक में उन्होंने पोलैंड के महिला टेबल टेनिस दल की ओर से प्रतियोगिता में भाग लिया। अब वे पेइचिंग पैरा-ऑलंपिक में भी भाग ले रही हैं और अपने खिताब की रक्षा करने की कोशिश करेंगी।
राकेशः उन के जीवन की कहानी तो सचमुच बहुत प्रभावशाली है। आशा है कि वे पेइचिंग पैरा-ऑलंपिक में अच्छा परिणाम प्राप्त करें और अपना स्वर्ण-पदक जीतने का सपना साकार कर सकें। तो श्रोताओ आएं सुनें कार्यक्रम का अगला गीत। यह गीत है फिल्म "बादल" से और इसे गाया है मुकेश ने और सुनने की फरमाइश की है हमारे इन श्रोताओं ने ग्राम रट्टे नगला अलीगंज, एटा से दीपक कुमार शाक्य, ज्योति कुमारी शाक्य, अंकित कुमार शाक्य, अशोक, विनोद, अजय और दीपक शाक्य फरुखावादी। और मकरपुरा रोड, बड़ौदा से अशोक लाधे, संगीता लाधे, कोमल, शीतल, सागर, मनोज और समस्त लाधे परिवार।
गीत के बोलः
मैं राही भटकने वाला हूँ
कोई क्या जाने मतवाला हूँ
ये मस्त घटा मेरी चादर है
ये धरती मेरा बिस्तर है
मैं रात में दिन का उजाला हूँ
कोई क्या जाने
ये बिजली रात दिखाती है
मंज़िल पे मुझे पहुँचाती है
मैं तूफ़ानों का पाला हूँ
कोई क्या जाने
मैं मचलूँ तो इक आग भी हूँ
मैं झूमूँ तो इक राग भी हूँ
दुनिया से दूर निराला हूँ
कोई क्या जाने