राकेशः राकेश का भी सभी श्रोताओं को प्यार भरा नमस्कार। आएं, कार्यक्रम की शुरुआत करें इस गीत से।
गीत के बोलः
धीरे धीरे मचल ऐ दिल-ए-बेक़रार
कोई आता है
यूँ तड़पके न तड़पा मुझे बालमा
कोई आता है
धीरे धीरे
उसके दामन की ख़ुशबू हवाओं में है
उसके कदमों की आहट फ़ज़ाओं में है
मुझको करने दे, करने दे सोलह श्रिंगार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल
रूठकर पहले जी भर सताऊँगी मैं
जब मनाएंगे वो, मान जाऊँगी हैं
मुझको करने दे, करने दे सोलह श्रिन्गार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल
मुझको छुने लगिं उसकी पर्छाइयाँ
दिलके नज़्दीक बजती हैं शहनाइयाँ
मेरे सपनों के आँगन में गाता है प्यार
कोई आता है
धीरे धीरे मचल
राकेशः यह गीत था फिल्म "अनुपमा" से। इसे गाया था लता ने और सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने मदरसा रोड़ कोआथ बिहार से हाशिम आजाद, आसिफ खान, अकरम हुसैन, बैगम शहनाज, रौशन आरा, अजमेरी रातुन और बाबू साजिद। शाहीन रेडियो श्रोता संघ मऊनाथ भंजन यू. पी. से इरशाद अहमद अंसारी, शकीला खातून, यासमीन बानो, आफताब बानो, महताब आलम, अब्दुल वासे, शहनाज बानो और इशतियाक अहमद।
ललिताः राकेश जी, क्या आप ने टी. वी. पर 11 अगस्त को आयोजित ऑलंपिक पुरुष 10 मीटर एयर राइफल का फाइनल देखा? भारतीय खिलाड़ी अभिनव बिन्द्रा ने पेइचिंग शूटिंग स्टेडियम में भारत के इतिहास में व्यक्तिगत इवेंट का प्रथम ऑलंपिक स्वर्ण-पदक जीता। यह पिछले 28 सालों में ऑलंपिक में भारत द्वारा प्राप्त पहला स्वर्ण-पदक भी है।
राकेशः 11 अगस्त को सच्चे माइने में भारत के लिए एक यादगार दिन था। पुरुषों की 10 मीटर एयर राइफल के फाइनल में पहली तीन पारियों के बाद ही अभिनव बिन्द्रा शानदार प्रदर्शन कर योग्यता मैच में उस समय दूसरे स्थान पर रहे मशहूर चीनी खिलाड़ी चु छीनान को पार कर आगे निकल चुके थे। जब कि सातवीं बार की शूटिंग के बाद बिन्द्रा का स्थान पहले नम्बर पर आ गया और योग्यता मैच में प्रथम स्थान प्राप्त फिनलैंड के खिलाड़ी हेंरी हाकिनेन को भी पछाड़ कर बिंद्रा फिर पहली पायदान पर पहुंच गए। हालांकि हाकिनेन और चु छीनान ने उसे पार करने की भरसक कोशिश की, फिर भी अंत में बिन्द्रा ने 700.5 कुलांक से उन दोनों शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों को परास्त कर मूल्यवान स्वर्ण-पदक को अपनी गोदी में डाल लिया।
ललिताः यह तो सचमुच धूमधाम से खुशी मनाने काबिल बात है। भारतीय मित्र की इस असाधारण सफलता पर चीनी लोगों ने जोशीली बधाई दी और फाइनल में उन के अद्भुत प्रदर्शन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। पुरस्कार रस्म के समय स्टेडियम में उपस्थित चीनी दर्शकों ने जोश से तालियां बजाते हुए हर्षोल्लास के साथ भारतीय मित्र की विजय पर हार्दिक बधाई दी।
राकेशः तो आएं इस खुशी मनाने काबिल बात के लिए सुनें यह गीत।
गीत के बोलः
कोई सागर दिल को बहलाता नहीं
बेखुदी में भी क़रार आता नहीं, कोई सागर
मैं कोई पत्थर नहीं इनसान हूँ
कैसे कह दूँ ग़म से घबराता नहीं
कोई सागर
कल तो सब थे कारवाँ के साथ साथ
आज कोई राह दिखलाता नहीं
कोई सागर
ज़िंदगी के आइने को तोड़ दो
इसमें अब कुछ भी नज़र आता नहीं
कोई सागर
ललिताः यह गीत था फिल्म "दिल दिया दर्द लाया" से और इसे गाया है रफी ने और सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने सिरिसा औरंगाबाद, बिहार से अफजल हुसैन, शहनाज परवीन, आसिफ हुसैन, हेना परवीन, आरिफ हुसैन और मन्नी।
राकेशः ललिता जी, क्या आप को मालूम है कि भारत के लिए इस ऐतिहासिक महत्व रखने वाली चैम्पियनशिप हासिल करने के लिए अभिनव बिन्द्रा ने असाधारण रास्ता तय किया है।
ललिताः हां, आजकल मैंने बिन्द्रा के बारे में बहुत सी रिपोर्टें देखीं। 2000 के सिडनी ऑलंपियाड में 18 साल के बिन्द्रा शूटिंग फाइनल में सभी खिलाड़ियों में सब से नौजवान थे। चार साल पहले एथेन्स ऑलंपियाड में कुलांक की दृष्टि से वे तीसरे स्थान पर पहुंचे थे, किन्तु तकनीकी कारण से वे सिर्फ सातवां स्थान ही प्राप्त कर पाए।
राकेशः यह तो सच है। बिन्द्रा ने अपने प्रयासों और उन के परिवारजनों के भरपूर समर्थन से सारी कठिनाइयों को दूर करने में सफलता पाई है। उस के परिवार ने उस के निशानेबाजी खेल में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बहुत से काम किए। पिछले साल उन की पीठ को गंभीर चोट लगी, लेकिन वे ठीक हो गए और सेहतमंद होने के बाद उन्होंने यह चैम्पियनशिप हासिल की। अभिनव बिन्द्रा ने अपने ठंडे दिमाग और अद्भुत प्रदर्शन का परिचय देकर भारत के लिए ऑलंपिक के खेलों में एक नए युग का आरंभ किया है।
ललिताः आएं सुनें एक और गीत। यह गीत है फिल्म "मिट्टी में सोना" से और इसे गाया है आशा ने और सुनने की फरमाइश की है हमारे इन श्रोताओं ने कोहेनुर रेडियो श्रोता संघ, के. पी. रोड गया से, मो. जमाल खां मिस्त्री, मो. शबिना स्वातुन, गोरा प्रसाद, इब्राहिम प्यासी, मुरली क्षेत्री खांन और गनौडी खान करैला।
गीत के बोलः
पूछो न हमें हम उनके लिये
क्या क्या नज़राने लाये हैं
देने को मुबारकबाद उन्हें
आँखों में ये आँसू आये हैं
जीवन की सुहानी राहों में उनको एक जीवन मीत मिला
और हँसती हुई इस महफ़िल से हमको बिरहा का गीत मिला
कलियों की तरह
मुसकाये थे हम
कलियों की तरह मुसकाये थे हम
फूलों की तरह मुरझाये हैं
पूछो न हमें हम उनके लिये
तूफ़ान हज़ारों साथ लिए जीवन की धारा बहती है
और देखके उसकी मौजों को तक़दीर यह हँसकर कहती है
साहिल के लिए जो
तड़पे थे
साहिल के लिए जो तड़पे थे
वह आज भँवर में आए हैं
पूछो न हमें हम उनके लिये