ललिताः और खेलों के द्वारा जनता, विशेष कर बच्चों को युवाओं को ऑलंपिक आंदोलन और ऑलंपिक भावना से परिचित करवाने के लिए देश भर के लगभग पांच लाख स्कूलों के लगभग चार करोड़ युवाओं को आलंपिक खेल शुरू होने से पहले आज तक ऑलंपिक के बारे में विशेष शिक्षा दी चा चुकी है।
राकेशः जी हां, ऑलंपिक खेलों का लक्ष्य केवल खेलना और पदक जीतना ही नहीं है, बल्कि ऑलंपिक की भाईचारे की, एकता की, प्रेम की, स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना का प्रचार प्रसार करना भी है, विशेषकर बच्चों में।
ललिताः इस के लिए स्कूलों ने तरह-तरह की गतिविधियों का लगातार आयोजन किया है। ऑलंपिक खेलों की तर्ज पर स्कूलों में खेल आयोजित किए गए हैं।
राकेशः श्रोताओ, पेइचिंग ऑलंपिक के बारे में आप की क्या अपेक्षाएं है, आप भी हमें बता सकते हैं। लीजिए, आप की अपनी पसंद का अब यह गीत सुनिए।
गीत के बोलः
वो हँस के मिले हम से हम प्यार समझ बैठे
बेकार ही उल्फ़त का इज़हार समझ बैठे
वो हँस के मिले
ऐसी तो न थी क़िस्मत अपना भी कोई होता
अपना भी कोई होता
क्यूँ ख़ुद को मुहब्बत का हक़दार समझ बैठे
वो हँस के मिले
रोएँ तो भला कैसे खोलें तो ज़ुबाँ क्यूँ कर
खोलें तो ज़ुबाँ क्यूँ कर
डरते हैं कि जाने क्या संसार समझ बैठे
बेकार ही उल्फ़त का
राकेशः आशा की आवाज़ में यह गीत था फिल्म "बहारें फिर भी आएंगी" से और इसे सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने पुराना तालाब डुमरांव से वलीउल्लाह अंसारी, आसमा नाज अंसारी, वसीम अकरम, अजीम वकार, समी उल्लाह अंसारी, प्यारी बिटिया सोनम।
ललिताः लीजिए सुनिए कार्यक्रम का अगला गीत।
गीत के बोलः
रातों को चोरी-चोरी बोले मोरा कंगना
अबके जो बरखा आई आएँगे सजना
रातों को चोरी
कैसी अनोखी प्यारी होंगी वो रातें
जबके पिया से होंगी मनवा की बातें
दो चाँद चमकेंगे मोरी अटरिया
इक तो गगन में होगा दूजा मोरे अँगना
रातों को चोरी
राकेशः आशा की आवाज़ में एस. एच. बिहारी का लिखा हुआ और ओ. पी. नैय्यर का संगीतबद्ध किया हुआ यह गीत था फिल्म "मुहब्बत ज़िंदगी" से। और इस गीत को सुनना चा हा था आप सब ने, ग्राम रट्टे नगला अलीगंज, एटा से दीपक कुमार शाक्य, ज्योति कुमारी शाक्य, अंकित कुमार शाक्य, अशोक, विनोद, अजय, दीपक शाक्य फरुखावादी।
ललिताः पेइचिंग ऑलंपिक की यह भी एक विशेषता है कि ऑलंपिक की पवित्र मशाल दौड़ की जो गतिविधि हुई, वह आज तक के सारे ऑलंपिक खेलों में सब से लम्बी दूरी वाली और धरती पर सब से ऊंची जगह पहुंचने वाली रही है। ऑलंपिक के इतिहास में पहली बार ऑलंपिक की पवित्र मशाल हिमालय की चोटी पर पहुंची है।
राकेशः और अभी तक के सारे ऑलंपिक खेलों में पेइचिंग ऑलंपिक मशाल रिले में सब से अधिक लोगों ने 130 दिनों तक चलने वाली मशाल दौड़ में भाग लिया है। श्रोताओ आप को यह भी मालूम होगा कि स्छवान में 12 मई को भयानक भूंकप आने के बाद मशाल दौड़ हर शहर में कुछ कम दूरी वाली की गई और मशाल दौड़ शुरू होने से पहले स्छवान भूकंप में मृत लोगों के प्रति 2 मिनट का मौन रखने की गतिविधि शामिल की गई। और भूंकप पीड़ितों के लिए मशाल दौड़ के दौरान चंदा भी इक्कठा किया गया। आएं कार्यक्रम का अगला गीत सुनें। यह गीत है फिल्म "तुम सा नहीं देखा" से, मजरुह के लिखे हुए, ओ. पी. नैय्यर के संगीतबद्ध किए गए इस गीत को गाया है रफी और आशा ने और सुनना चाहा है आप सब ने, हिसार, सेक्टर 15, हाउसिंग बोर्ड हरियाणा से, चंद्र भान ढिंढोरिया, श्रीमति सुनीता ढिंढोरिया, प्रीति ढिंढोरिया और गुंजन ढिंढोरिया।
गीत के बोलः
देखो क़सम से क़सम से
कहते हैं तुमसे हाँ
तुम भी जलोगे हाथ मलोगे
रुठ के हमसे हाँ
रात है दीवानी
मस्त है फ़िज़ाएं
चांदनी सुहानी
सर्द है हवाएं
तुम भी अकेले हम भी अकेले
कहते हैं तुमसे हाँ
तुम भी जलोगे हाथ मलोगे
रुठ के हमसे हाँ
क्या लगाई तुमने
ये क़सम क़सम से
लो ठहर गये हम
कुछ कहो भी हम से
तनके न चलिये बनके न चलिये
कहते हैं तुमसे हाँ
तुम भी जलोगे हाथ मलोगे
रुठ के हमसे हाँ
हाय
राकेशः इस के साथ ही हमारा आज का कार्यक्रम समाप्त होता है। अगली बार तक के लिए आज्ञा दें, फिर मिलेंगे, नमस्कार।
ललिताः नमस्कार।