बिहार के हाशिम आजाद,खैरून निसा,रजिया खाकसार अहमद,विजय,ऊषा देवी और अतुल विपुल विवेक का सवाल है कि चीन में सब से बड़ी नदी का नाम क्या है? आरा बिहार के राम कुमार नीरज ने भी इस से मिलता-जुलता सवाल पूछा है।
चीन में सब से बड़ी नदी का नाम है यांत्जी नदी या छांगच्यांग नदी।इस नदी का उद्गम-स्थान उत्तर पश्चिमी चीन के के छिंगहाई प्रांत के थांगकुला पर्वतमाला के गलातानतुंग हिमचोटी में है।यह नदी तिब्बत स्वायत्त प्रदेश,स्छवान,युननान,हुपई,हुनान,च्यांगशी,आनह्वेई और च्यांगसु आदि प्रांतों से गुजरकर शांघाई के मुहाने से पूर्वी समुद्र में जा मिलती है।
यांगत्सी नदी की कुल लम्बाई 6300 किमोमीटर है और कुल क्षेत्रफल 18 लाख वर्गकिलोमीटर है।इस नदी की दसेक शाखाएं और दो बड़ी झीलें होती हैं।इस नदी के समृद्ध जल संसाधन से उस के आसपास क्षेत्रों में परिवहन तथा पन बिजली उत्पादन व्यवसाय औऱ सिंचाई प्रणाली बहुल विकसित है।इधर वर्षों में इस नदी के ऊपरी भाग में विश्वविख्यात त्रिघाटी जल संरक्षण परियोजना जोरों पर है।इस परियोजना के तहत भिमकाय जलाशय और पन-बिजली घर बनाए जाएंगे,जिस से स्थानीय लोगों को बड़ा फायदा मिलेगा।
बांका बिहार के कुमोद सिंह और सीतामढ़ी बिहार के मोहम्मद जहांगीर ने अलग अलग रूप से पूछा कि चीन में हर साल कितने लड़के लड़कियों की शादी होती हैं?क्या विदेशी चीन में शादी कर सकता है?
दोस्तों,चीन में हर साल औसतन 700 जोड़ों के लड़के और लड़कियां शादी के बंधन में बंध जाते हैं.पिछले 5 वर्षों में शादी दर्ज करने वाले लड़के और लड़कियों की संख्या साल ब साल घटती गई है.इस का कारण है कि चीन में ज्यादातर शहरी युवा लोग अपने कैरियर को जिन्दगी से अधिक महत्व देते हैं और निजी जिन्दगी की स्वतंत्रता को अपेक्षाकृत लम्बे समय तक बरकरार रखना चाहते हैं.उन की यह आम धारणा है कि पहले कैरियर बनाना चाहिए,फिर शादी की सोच करनी चाहिए.30 साल की आयु पारकर शादी करना वर्तमान चीनी युवा लोगों में सामान्य बात हो गयी है.
हां,कोई भी विदेशी चीन में शादी कर सकता है.उसे चीनी परंपरा या अपने देश की परंपरा के अनुसार शादी की रस्म को पूरा करने की पूरी स्वतंत्रता है.
बिलासपुर छत्तीसगढ के चुन्नीलाल कैवर्त का सवाल है कि चीन में मृत व्यक्तियों को जलाया जाता है या जमीन के अन्दर दफनाया जाता है?
चीन में शहरी इलाके और विकसित देहाती क्षेत्रों में इंसान को मृत्यु के बाद जलाकर उस की अस्थियां बोक्स में रखी जाती है,फिर बोक्स को किसी स्मृतिगृह में सुरक्षित रखा जाता है या जमीन में दफनाया जाता है.गरीब व पिछड़े गांवों में तो लोगों को मौत के बाद जमीन में दफनाया जाता है.चीन सरकार अपने पूरे समाज से मृतकों को जलाने का तरीका अख्तियार करने की अपील करती रही है,ताकि जमीन की बचत हो सके और जीवित लोग उस से फायदा मिल सके.बेशक मुसलमानों में इस तरीके के प्रयोग की कोई मांग नहीं है.वे सम्मानित रूप से इस्लामी धर्म के अनुसार किस की अंत्यष्टि पूरी करने को आजाद हैं.
कुछ समय पहले हम ने किसी पत्रिका में यह खबर पढ़ी कि संसार के प्राचीन काल में मृत्य के बाद इंसान को दफनाने के मुख्य तीन तरीके हुआ करते थे.एक तो मृत्यु की आगोश में जाने के बाद सीधे सीधे जमीन में दफना देना.दूसरा था मृत्यु के बाद इंसान के शव को खुले में पक्षियों और जानवरों के लिए छोड़ देना ताकि वह शव का मांस खाकर अपनी भूख शांत कर सके.जब केवल हड्डियां बचती थी,तो उन्हें शव के रूप में दफना दिया जाता था.तीसरा तरीका यह था कि यदि किसी नगर के लोग व्यापार करने के लिए दूसरे मुल्क या नगर जाने पर किसी कारणवश वहां पर उन की मौत हो गयी और शव भी नहीं मिला,तो उन इंसानों जैसी छोटी मानवाकृतियां बनाकर कब्र में दफनी दी गई.आज पूरी दुनिया में मृतकों से निपटने के लिए मुख्यत:जलाने व जमीन में दफना देने के दो तरीके अपनाए जाते हैं.