राकेशः राकेश का भी सभी श्रोताओं को प्यार भरा नमस्कार। आइए, कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं इस एक गीत से।
गीत के बोलः
आँखों ही आँखों में इशारा हो गया
बैठे बैठे जीने का सहारा हो गया
आँखों ही आँखों में
गाते हो गीत क्यूँ, दिल पे क्यूँ हाथ है
खोए हो किस लिये, ऐसी क्या बात है
ये हाल कब से तुम्हारा हो गया
आँखों ही
चलते हो झूम के, बदली है चाल भी
नैंनों में रंग है, बिखरे हैं बाल भी
किस दिलरुबा का नज़ारा हो गया
आँखों ही
अब ना वो ज़ोर है, अब ना वो शोर है
हमको है सब पता, दिल में क्या चोर है
ये चोर कब से गवारा हो गया
आँखों ही
कैसा ये प्यार है, कैसा ये नाज़ है
हम भी तो कुछ सुनें, हमसे क्या राज़ है
अच्छा तो ये दिल हमारा हो गया
आँखों ही
राकेशः यह गीत था फिल्म "सी. आई. डी." से, इसे गाया था रफी और गीता दत्त ने और सुनने की फरमाइश की थी हमारे इन श्रोताओं ने मंदार श्रोता संघ, बांका, बिहार से कुमौद ना सिंह, बाबू, काकू, सनातन, मो. शमशाद और मो. आशिक।
ललिताः और लवकुश रेड़ियो श्रोता संघ, बहादुरपुर, बरियारपुर, मुंगेर, बिहार से कुमार रामदेब पटेल, राधारानी खण्डेलवाल, पुष्पा श्रीवास्तव, अंजुझेती, सुनिता पटेल और अमित पटेल।
राकेशः श्रोताओ आप को मालूम ही है कि पेइचिंग ऑलंपिक को अब बस कुछ ही दिन बाकी बचे हैं। यहां पेइचिंग में चारों ओर खुशी और पेइचिंग ऑलंपिक की बेसबरी से प्रतीक्षा का माहौल है। आशा है आप भी हमारी तरह दुनिया के इस सब से बड़े खेल समारोह के शुरू होने का इतंज़ार कर रहे होंगे। ललिता जी पिछली बार आप ने पेइचिंग ऑलंपिक से ज़ुड़ी बहुत सी मनोरजक और जानकारी वाली सूचनाएं हमारे श्रोताओं को दी थीं। क्या आज भी आप पेइचिंग ऑलंपिक के बारे में श्रोताओं को कुछ और बताना चाहती हैं?
ललिताः श्रोताओ जैसाकि पिछली बार भी हम ने बताया था कि पेइचिंग ऑलंपिक के लिए बहुत सारी तैयारियां हो रही हैं और सारी दुनिया से आने वाले खिलाड़ियों और दर्शकों को किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई न आए, इस के लिए बहुत सारे इंतजाम किए गए हैं और पेइचिंग शहर बिलकुल नए शहर की तरह दिखाई पड़ने लगा है।
राकेशः ललिता जी क्या आप ने ऑलंपिक खेल देखने के लिए कोई टिकट खरीदी है?
ललिताः नहीं। मैं भी अपने श्रोताओं और आप की तरह टी. वी. पर ही सारे खेल देखूंगी। लेकिन चीन सरकार ने चार लाख टिकट केवल पेइचिंग और अन्य शहरों के स्कूली बच्चों के लिए अलग से रखे हैं, जिन्हें जल्द ही बच्चों को दे दिया जाएगा। और इन की कीमत भी बहुत कम है पांच से दस य्वान तक।
राकेशः यह तो बहुत अच्छी बात है। बच्चों को तो विशेष शौक होता है खेल देखने का। बातचीत तो जारी रहेगी, उस से पहले आएं अपने श्रोताओं के साथ सुनें यह गीत।
गीत के बोलः
प्यार पर बस तो नहीं है मेरा, लेकिन फिर भी
तू बता दे के तुझे प्यार करूँ या ना करूँ
मेरे ख़्वाबों के झरोखों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है के नहीं
पूछ कर अपनी निगाहों से बता दे मुझको
मेरी रातों के मुक़द्दर में सहर है के नहीं
प्यार पर बस तो नहीं है
कहीं ऐसा न हो पाओं मेरे थर्रा जाएं
और तेरी मरमरी बाहों का सहारा न मिले
अश्क बहते रहे खमोश सियाह रातों में
और तेरे रेशमी आंचल का किनारा न मिले
प्यार पर बस तो नहीं है
राकेशः तलत महमूद और आशा की आवाज़ में यह गीत था फिल्म "सोने की चिड़िया" से और इसे सुनने की फरमाइश की थी कोहेनुर रेडियो श्रोता संघ, के. पी. रोड गया से, मो. जमाल खां मिस्त्री, मो. शबिना स्वातुन, गोरा प्रसाद, इब्राहिम प्यासी, मुरली क्षेत्री खांन, गनौडी खान करैला।
ललिताः और आबगीला गया से मो. जावेद खां, बाबू, लड्डु, मो. जमीर खां, मो. सरवर, अहमद प्रेमी, उसमान शेख, इसलाम खां और नरगिस बानो।
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।