कोआथ बिहार के सुनील केशरी,डी डी साहिबा,संजय केशरी, सीताराम केशरी,खुशबू केशरी बवीता केशरी, प्रियांका केशरी, एस के जिंदादिल जानना चाहते हैं कि चीन ने पंचशिल समझौता किस के साथ कब किया?
दोस्तो,पंचशील यानी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत देशों के बीच संबंधों के निपटारे के मापदंड हैं,जो चीन,भारत और म्यामार द्वारा संयुक्त रूप से प्रवर्तित किए गए हैं.ध्यान रहे वह किसी देश द्वारा किसी दूसरे देश के साथ किया गया समझौता नहीं है.इसलिए चीन द्वारा किस के साथ यह समझौता करने का सवाल नहीं उठता है.
पंचशील सिद्धांत का विषय है देशों के बीच एक दूसरे की प्रभुसत्ता व प्रादेशिक अखंडता का सम्मान,एक दूसरे का अनाक्रमण,एक दूसरे के घरेलू मामलों में अहस्तक्षेप और आपसी लाभ तथा शांतिपूर्ण सहजीवन.पिछली आधी शताब्दी में वह चीन की स्वतत्र कूटनीति की नींव बनी रही है और दुनिया के अधिकांश देशों ने भी उसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मानकीकरण का प्रमुख सिद्धांत माना गया है.
दिसम्बर 1953 में चीन के पूर्व प्रधान मंत्री चो एन-लाई ने चीन की यात्रा पर आए भारतीय प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात के समय पंचशील का सिद्धांत प्रस्तुत किया था.उस समय पेइचिंग में चीनी प्रतिनिधि मंडल और भारतीय प्रतिनिधित मंडल के बीच तिब्बत के सवाल पर वार्ता चल रही थी.29 अप्रैल 1954 को चीन औऱ भारत ने एक संयुक्त विज्ञप्ति जारी कर चीन के तिब्बत और भारत के बीच व्यापार व यातायात के संचालन संबंधी समझौते हस्ताक्षर किए.
दोनों ने पंचशील के सिद्धांत को विज्ञप्ति में सम्मिलित करने को मंजूरी दे दी और उसे आपसी संबंधों से निपटने का मापदंड मानने का फैसला भी किया.उसी साल की जुलाई के अंत में प्रधान मंत्री चो एन-लाई ने क्रमश:भारत और म्यामार की यात्रा के दौरान भारतीय प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू और म्यामार के प्रधान मंत्री ऊनू के साथ अलग अलग तौर पर संयुक्त वक्तव्य जारी किए,जिन में भी पंचशील का सिद्धांत शामिक किया गया.
अप्रैल 1955 की 18 से 24 तारीख तक इंडोनेशिया के पांडुन शहर में 29 देशों व क्षेत्रों की उपस्थिति वाले अफ्रोशियाई सम्मेलन में विश्व की शांति एवं सहयोग बढाने संबंधी घोषणा-पत्र जारी किया गया,जिस में प्रस्तुत वैश्विक संबंधों के निपटारे से जुडे 10 सिद्धांतों में पंचशील के सिद्धांत के तमाम विषय शामिल हैं.1957 में चीन के राष्ट्राध्यक्ष मोओ त्जे-तुंग ने मास्को में पूरे संसार के सामने एलान किया कि चीन सभी देशों के पंचशील सिद्धांत का पालन करने के पक्ष पर डटा है.सन् 1963 के अंत से अगले साल के शुरू में चीनी प्रधान मंत्री चो एन-लाई ने एशिया,
अफ्रीका औऱ यूरोप के 14 देशों की यात्रा के दौरान चीन की ओर से आर्थिक सहायता संबंधी 8 सूत्री सिद्धांत प्रस्तावित किया.इस से पंचशील सिद्धांत को आर्थिक दायरे में बढाया गया.1974 में चीनी नेता तंग श्याओ-फिन ने संयुक्त राष्ट्र की विशेष महासभा में भाषण देते हुए फिर से इस बात पर जोर दिया कि देशों के बीच राजनीतिक व आर्थिक संबंधों को शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए.सन् 1988 में उन्हों ने और स्पष्ट रूप से पंचशील सिद्धांत के आधार पर नयी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना का प्रस्ताव पेश किया.
पंचशील सिद्धांत सर्वमान्य होते हुए विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों तथा दस्तावेजों में प्रतिबिंबित हुए हैं.1970 में 25वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित विभिन्न देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार मैत्रीपूर्ण संबध व सहयोग कायम किए जाने के बारे में घोषणा-पत्र और 1974 में विशेष संयुक्त राष्ट महासभा में पारित नयी अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र में भी पंचशील सिद्धांत शामिल किया गया.
दशकों से पंचशील सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय उतार-चढाव पर खरा उतरा है.अपनी प्रबल जीवनी शक्ति के सहारे वह विश्व की शांति व सहयोग में बड़ी भूमिका अदा करता रहा है.चीन न केवल पंचशील का एक प्रवर्तक है,बल्कि उस का एक ईमानदार पालक भी.पंचशील सिद्धांत के आधार पर चीन ने अनेक पड़ोसी देशों के साथ इतिहास से छूटे सीमा-विवाद सुलझाए हैं और दुनिया के अधिकाश देशों के साथ राजनयिक संबंध कायम किये हैं.
बालाघाट के हुलाश राम कटरे पूछते हैं कि चीन में बौद्धधर्म के चार प्रसिद्ध पहाड़ कौन कौन से हैं?
दोस्तो,चीन में ये चार प्रसिद्ध पहाड़ हैं फूथो,वूथाई,च्यूह्वा और अमेई पहाड़।
फूथो पहाड़ पूर्वी चीन के समुद्री जल क्षेत्र में फूथो द्वीप पर स्थित है।कहा जाता है कि बौधिस्त्व अवलोकितेश्वर ने इसी पहाड़ पर बौद्धसूत्रों का प्रवचन किया था।यहां स्थित मंदिरों में उन की पूजा की जाती है,पर उल्लेखनीय बात यह है कि अवलोकितेश्वर को चीन में नारी के रूप में वित्रित किया जाता है।
वूथाई पहाड़ उत्तरी चीन के शानशी प्रांत मे है।यहां बौधिसत्व मंजूश्री ने बौद्धसूत्रों का प्रवचन किया था।
च्यूह्वा पहाड़ पूर्वी चीन के आनह्वेई प्रांत में स्थित है।कहते हैं कि यहां बौधिसत्व क्षितिगर्भ ने बौद्धसूत्रों का प्रवचन किया था।बौद्ध मान्यता है कि क्षितिगर्भ शाक्यमुनि के महानिर्वाँण के बाद और मैत्रेय के जन्म से पूर्व के बीच की अवधि में इहलोक में हुए सभी प्राणियों का उद्धार करने को प्रतिबद्ध हैं।
अमई पर्वत दक्षिण पश्चिमी चीन के स्छ्वान प्रांत में खड़ा है।माना जाता है कि यहां बौधिसत्व सामंतभद्र ने बौद्धसूत्रों का प्रवचन किया था।