मीरजापुर उत्तर प्रदेश के प्रदीप कुमार प्रेमी,श्रीमती पूजा,उपेन्द्र शर्मा और राम सागर ने चीन के त्वानऊ पर्व,पूर्वज श्रद्धांजलि पर्व,मध्यशरद पर्व और कैंटिट पर्व की जानकारी देने का अनुरोध किया है।
चीनी परंपरागत पंचाग के अनुसार हर साल के पांचवें माह के पांचवें दिन त्वानऊ पर्व मनता है।इस की परंपरा 2000 साल से अधिक समय पुराना है।चीन में इस पर्व को मनाने का सब से प्रमुख महत्व यह है कि लगभग 2500 साल पहले के महान राजनीतिक्ष औऱ देशभक्तिपूर्ण कवि छ्वु-य्वान का स्मरण किया जाता है।छ्वु-य्वान जीवन भर देश के एकीकरण में प्रयारस रहे।पर तत्काल के बहतु से राष्ट्रीय हितों से ज्यादा अपने ही हितों की चिंता करने वाले दरबारी अफ़सर उन का विरोध करते थे।अंतत:उन्हें निराश होकर नदी में कूदकर जान अर्पित करने का रास्ता चुनना पड़ा,ताकि देश के एकीकरण के प्रति व्यापाक लोग जागृत हो सके।
लोककथा के अनुसार उस साल पांचवें महीने के पांचवें दिन जब देश के एकीकरण के समर्थक जन-समुदाय ने छ्व-य्वान के नदी में कूदने की खबर सुनी,तो वे फौरन चिपचिपे चावल से बनी खाद्य चीजें साथ लेकर डैगन के आकार वाली नौकाओं से घटना-स्थल पर पहुंचे और नदी में इन खाद्य चीजों को छोड़ने लगे,ताकि मछलियां ये चीजें खाकर छ्व-य्वान को न छूएं।
आज भी इस पर्व के मौके पर चिपचिपे चावल से बने खाद्य पदार्थ बनाना और डैगन-नौका-दौड़ की प्रतियोगिता आयोजित करना चीनी जन समुदाय में प्रचलित है।
चीन में पूर्वज श्रद्धांजलि पर्व वर्तमान विश्व में प्रचलित पंचाग के अनुसर अप्रैल महीने की 4 या 5 तारीख को मनता है।इस का इतिहास भी 2000 साल से अधिक समय पुराना है।
चीन में अप्रैल माह वसंत काल है,तब मौसम सुहावना है और प्रकृति के देन पेड़-पौधे हरे-भरे होने लगते हैं तथा तरह तरह के फूल खिलने लगते हैं।यह सुरम्य प्रकृति लोगों को अपनी गोद में आकर्षित करती है।लोग बाहर सैर-सपाटे के दौरान लगे हाथ अपने पूर्वजों के मकबरों पर जमी धूल को झाड़ते हैं और कुछ खाने की चीजें बलि के रूप में चढ़ाते हैं,ताकि पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके।
मध्यशरत पर्व भी चीन का एक बहुत पुराना परंपरागत त्यौहार है।चीनी पंचांग के अनुसार हर साल 8वें माह के 15वें दिन यह पर्व मनाया जाता है।उल्लेखनीय है कि यह दिन पूर्णमासी है,इसलिए चीन में उसे पूर्णमासी दिवस भी कहलाता है।
मध्यशरत पर्व की एक परंपरा परिवार के सभी लोगों का मिलन होना है।उस दिन की रात चांद पूर्ण होता है और चांदनी निखरी रहती है।इसलिए परिवार के सभी लोग एकत्र होकर इतने शांत व पवित्र माहौल में सुन्दर चांद देखने का मजा लेते हैं और साथ ही "मून-केक"नामक एक किस्म की गोलाकार मोटी रोटियां खाते हैं,जिन में मिठाइयां और तरह तरह के मेवे भरे हुए हैं।आकाश में चांद गोलाकार है और नीचे भोजन की मेज पर रोटियां भी गोलाकार हैं।यह दश्य लोगों की नजर में मिलन का प्रतीक है।संयोग से मिलन का चीनी में उच्चारण गोलाकार के उच्चारण से मिलता-जुलता है।
कैंटिट पर्व वास्तव में चीन के सब से बड़े परंपरागत वसन्तोत्सव का एक अंग है,जो वसन्तोत्सव के अंतिम दिन मनता है।यह दिन चीनी पंचांग के अनुसार हर साल पहले महीने का 15वां दिन है और पूर्णिमा भी।पूर्णिमा होने के कारण रात में चांद पूर्ण होता है।लोग इसे परिवारवालों के मिलन का वक्त मानते हैं।इसलिए वे अपने अपने घर लौटकर परिजनों के साथ इस पर्व को मनाते हैं।इस पर्व के मौके पर आप के कहे कैंटिट पर चीनी में "य्वान-श्याओ"नामक गोले के रूप में एक प्रकार की मीठी चीजें खाते हैं।यह खाद्य पदार्थ परिजनों के मिलन और सुख का द्योतक माना जाता है।इस पर्व का दूसरा नाम है लालटेन-त्यौहार।क्योंकि लालटेनों को प्रदर्शित करना इस पर्व की एक अनिवार्य गतिविधि है।यह परंपरा हान राजवंश में शुरू हुई है।हान राजवंश के बाद थांग और सुंग राजवंशों के काल में यह परंपरा परवान चढी।उस समय यह त्यौहार 5 दिनों तक चलता था औऱ बड़े पैमाने पर लालटेनों का मेला आयोजित किया जाता था।आज यह परंपरा जारी है,पर पहले जितनी धूमधाम से नहीं मनती है।