ललिताः आप हमें नई दिल्ली के पते पर भी पत्र लिख सकते हैं, नोट कीजिए, नई दिल्ली में हमारे दो पते हैं। पहला पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पहली मंजिल, ए ब्लॉक छ बटा चार, वसंत विहार, नई दिल्ली, पोस्ट-110057।
राकेशः और दूसरा पता है, चीनी दूतावास, हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पचास डी, शांति पथ, चाणक्यपुरी, नई दिल्ली, पोस्ट-110021। यदि आप के पास इंटरनेट की सुविधा है तो आप हमारी वेबसाईट अवश्य देखें। हमारी वेबसाइट का पता है hindi.cri.cn। आप हमें ई-मेल से भी पत्र भेज सकते हैं। हमारा ई-मेल का पता हैः hindi@cri.cn। हमें आप के पत्रों का इंतजार रहेगा।
ललिताः ये दो श्रोता और हैं पहेली में पूछे गए सवाल का सही जवाब भेजने वाले, एशिया रेडियो लिस्नर्स क्लब, कोआथ बिहार से श्री राम चंद्र प्रसाद केसरी, लक्ष्मण प्रसाद केसरी।
राकेशः सही जवाब भेजने वाले सभी श्रोताओं को मुबारक। और इन में से कौन श्रोता भाग्यशाली होगा, जिसे सी. आर. आई. की ओर से एक पुरस्कार मिलेगा, उस का नाम ललिता जी आप बताएं।
ललिताः कार्यक्रम के अंत में बताएं तो कैसा रहेगा। इस से पहले कि हम श्रोताओं को एक और गीत सुनाएं। मैं यह एक पत्र पढ़ दूं जिसे भेजा है विश्व रेडियो लिस्नर्स क्लब, चौक रोड़ कोआथ बिहार से श्री सुनील केसरी जी ने। ये लिखते हैं कि हमारे गांव कोआथ में सैंकड़ों श्रोता जमा होकर एक साथ आप की पसंद कार्यक्रम सुनते हैं और सब को यह कार्यक्रम बहुत पसंद आता है।
राकेशः सुनील कुमार जी हमें खुशी है कि आप को और आप के साथियों को यह कार्यक्रम अच्छा लगता है। आएं सुनें यह एक और गीत।
गीत के बोल हैं
कहीं दूर जब दिन ढल जाए, सांज की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
मेरे खयालों के आंगन में, कोई सपनों के दिप जलाए
कभी यू ही जब हुयी बोझल सांसे
भर आयी बैठे बैठे जब यू ही आंखे
तभी मचल के, प्यार से चल के
छू ओ कोई मुझे पर नजर ना आए, नजर ना आए
कही तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कही पे निकल आए जनमों के नाते
है मिठी उलझन, बैरी अपना मन
अपना ही हो के सहे दर्द पराये, दर्द पराये
राकेशः मुकेश की आवाज़ में यह गीत था फिल्म "आनंद" से और इसे सुनना चाहा था कलेर बिहार से मो. आसिफ खान, बेगम निकहत प्रवीन, सदफ आरजू, अजरफ अकेला और तहमीना मशकर।
ललिताः यह पत्र है आर्य नगर हरियाणा रोहतक से भाई नरेश चावला जी का। ये लिखते हैं कि इन्हें आप की पसंद कार्यक्रम बहुत अच्छा लगता है और ये अपने साथियों के साथ नियमित रूप से इस कार्यक्रम को सुनते हैं। लेकिन इन की शिकायत है कि हम इन का कोई भी पत्र कार्यक्रम में शामिल नहीं करते हैं। इन्होंने अपनी पसंद का गीत सुनने की फरमाइश भी की है।
राकेशः भाई नरेश चावला जी, पत्र लिखने और कार्यक्रम को पसंद करने के लिए धन्यवाद। हम ने आप का पत्र कार्यक्रम में शामिल करके आप की शिकायत दूर कर दी है। लीजिए सुनिए अपनी पसंद का यह गीत।
गीत के बोल हैं
इन्सान किसी से दुनियां मे, एक बार मोहब्बत करता है
इस दर्द को ले कर जीता है, इस दर्द को ले कर मरता है
प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किया तो डरना क्या
प्यार किया कोई चोरी नहीं की, छूप छूप आहे भरना क्या
आज कहेंगे दिल का फसाना, जान भी ले ले चाहे जमाना
मौत वही जो दुनियां देखे, घूंट घूंट कर यू मरना क्या
उन की तमन्ना दिल में रहेगी, शम्मा इसी महफ़िल में रहेगी
इश्क में जीना, इश्क में मरना, और हमे अब करना क्या
छूप ना सकेगा इश्क हमारा, चारो तरफ हैं उनका नजारा
परदा नहीं जब कोई खुदा से, बंदो से परदा करना क्या
राकेशः यह गीत था फिल्म "मुगले आज़म" से और इसे गाया था लता मंगेशकर ने।
ललिताः यह पत्र है निजाम अंसारी जी का, मऊनाथ भंजन से और ये लिखते हैं कि हम हमेशा आप की पसंद कार्यक्रम बड़े शौक से सुनते हैं। और हम ने इन की पसंद के गीत सुनाए, इन्हें बहुत अच्छा लगा। इन का कहना है कि प्रतियोगिता में पूछे गए प्रश्न कुछ कठिन होते हैं, इसलिए कुछ आसान प्रश्न पूछना चाहिए। इन्होंने और इन के साथियों ने अपनी पसंद का गीत सुनने की फरमाइश भी की है।
राकेशः निजाम अंसारी जी पत्र लिखने के लिए शुक्रिया। और जहां तक प्रतियोगिता में पूछे गए सवाल की बात है, तो पिछली बार तो हम ने बहुत आसान सवाल पूछा था। हां उस से पहले पूछा गया सवाल सचमुच कुछ कठिन था।
ललिताः यह एक ई-मेल है हिमाचल प्रदेश के मैक्लयोड गंज, धर्मशाला, करेरी लॉज के श्री राम स्वरुप जी की। इन्होंने अपनी पसंद का गीत सुनने की इच्छा जाहिर की है।
राकेशः लीजिए राम जी पेश है आप की पसंद का यह गीत।
गीत के बोल हैं
मुझे दर्द-ए-दिल का पता ना था
मुझे आप किसलिए मिल गए
मैं अकेला यू ही मजे में था
मुझे आप किसलिए मिल गए
यू ही अपने अपने सफर में गुम
कही दूर मैं, कही दूर तुम
चले जा रहे थे जुदा, जुदा
मुझे आप किसलिए मिल गए
मैं गरीब हाथ बढ़ा तो दू
तुम्हें पा सकू के ना पा सकू
मेरी जां बहोत हैं ये फासला
मुझे आप किसलिए मिल गए
ना मैं चांद हू, किसी शाम का
ना चिराग हू, किसी बाम का
मैं तो रास्ते का हू एक दिया
मुझे आप किसलिए मिल गए
राकेशः रफी की आवाज़ में यह गीत था फिल्म "आकाश दीप" से और इसे लिखा था मजरुह सुलतानपुरी ने, और संगीत दिया था चित्रगुप्त ने। ललिता जी अब आप एक उस भाग्यशाली श्रोता का नाम निकालकर बताएं, जिसे सी. आर. आई. की ओर से पुरस्कार भेजा जाएगा।
ललिताः यह काम बहुत कठिन है, फिर भी... यह रहा एक पत्र, यह है गांव दत्त नगर जिला गोंडा यू. पी. से कुमारी पुष्पा श्री वास्तव जी का।
राकेशः कुमारी पुष्पा श्री वास्तव जी आप को बहुत बधाई। जल्द ही आप को सी. आर. आई. की ओर से एक पुरस्कार मिलेगा। इस के साथ ही हमें अगले कार्यक्रम तक के लिए आज्ञा दीजिए, नमस्कार।
ललिताः नमस्कार।