2009-04-20 11:48:55

पासांग और उस के दोस्त

चीन की राजधानी पेइचिंग में अनेक तिब्बती बंधु रहते हैं, वे भीतरी इलाके के अन्य जातियों के व्यक्तियों के साथ राजधानी में रहते हैं, उन के प्रतिनिधित्व वाली तिब्बती संस्कृति और अन्य जातियों की संस्कृतियां भूमंडलीकरण परीक्षा का सामना कर रही है । आधुनिक शहर में वे कैसे अपनी सांस्कृतिक विशेषता को बनाए रखेंगे?उन की जीवन स्थिति कैसी है?और पेइचिंग में उन के अनुभव क्या हैं?तो इस कार्यक्रम में आप मेरे साथ पेइचिंग में अपना सपना खोजने वाले तिब्बती बंधु के साथ संपर्क करेंगे, और मैं आप को दूंगी माक्ये आमे नामक संगीत दल के सदस्य पासांग दावा और उन के दोस्त का परिचय ।

गीत---

गीत के बोल है:

ल्हासा कहां पर स्थित है?

वह समुद्र पर स्थित है?

शांगरिला कहां पर स्थित है?

वह समुद्र के पास स्थित है ।

पेइचिंग में एक माक्ये आमे तिब्बती रेस्तरां है, जिस में पांसांग दावा और उस के दोस्त गाते नाचते अभिनय कर रहे हैं । इस रेस्तरां में प्रवेश करके आप को महसूस नहीं होगा कि आप पेइचिंग में है, तिब्बती शैली की लालटेनों में कोमल रोशनी दिखाई पड़ती है, शुद्ध तिब्बती पकवान और घी की खुशबू हवा में फैली हुई है, नाचते हुए तिब्बती युवा आनंद के साथ मदिरा गीत गा रहे हैं और मेहमानों को सफेद हादा प्रदान कर रहे हैं , मानो आप मेहमाननवाजी तिब्बती बंधु के घर में आए हों ।

वास्तव में पासांग और उन के दोस्तों के लिए यह घर के बराबर है । वर्तमान में तिब्बत की यात्रा करने के दौरान पर्यटक तिब्बती बंधु के घर जाकर नाचगान देखते हैं और तिब्बती पकवान खाते हैं । तत्काल पासांग भी पर्यटकों के लिए मदिरा गीत गाता था । दस साल पूर्व पासांग घर से अपने सपने की खोज में पेइचिंग आया । उस ने कहा:

"शुरू में मैंने एक दोस्त के साथ गाना नाचना सीखा । उस ने मुझ से कहा कि मुझे पर्याप्त संस्कृतियों वाले स्थल पर जाकर सीखना चाहिए, ताकि और ज्यादा जानकारी पा सकूं ।"

तिब्बतियों में एक ऐसी कहावत है कि जन्म होने के बाद तिब्बती लोग गा सकते हैं, चलना आता है, तो नाच सकते हैं । पासांग के गाने की आवाज़ अच्छी है । दोस्त की सलाह सुनकर वह कुछ और सीखने के लिए पेइचिंग आया और चीनी केंद्रीय संगीत कालेज के अध्यापक हू से सांस लेना सीखा। उस ने कहा:

"पहले मुझे मालूम नहीं था कि गाते समय कैसे सांस ली जाती है । अध्यापक हू ने मुझे सिखाया । इस के बाद गाते समय मुझे पहले से ज्यादा हल्का लगता है ।"

वर्तमान में पासांग माक्ये आमे रेस्तरां में कार्यरत है । शुरू में पेइचिंग में उस का जीवन आसान नहीं था । उस समय पेइचिंग में उस का कोई मित्र भी नहीं था, यहां तक कि रहने का कोई स्थल भी नहीं था । शुरू में पासांग ने एक छोटे से रेस्तरां में तीन महीने तक बर्तन धोने का काम किया , इस के बाद इन्टरनेट के जरिए मोसो जातीय रेस्तरां में चार महीने तक नाच गान किया । अंत में वह माक्ये आमे रेस्तरां आया और अपने जन्मस्थान शांगरिला वासी गेरोंग से मिला, जो तिब्बती वाद्य यंत्र श्वानज़ी बजाता है । गेरोंग की उम्र ज्यादा नहीं होने के बावजूद श्वानज़ी बजाने का दस से अधिक साल का उसे अनुभव है । उस ने कहा कि जन्मस्थान में उस ने तिब्बती बूढ़ों से श्वानज़ी बजाना सीखा था, उस का वाद्ययंत्र श्वानज़ी पिता ने उस के लिए बनाया था। तिब्बती बंधु गेरोंग ने कहा:

"पहले मैं जन्मस्थान में बूढ़ों द्वारा बजाई गई श्वानज़ी सुनता था, बाद में मेरे पिता ने मेरे लिए श्वान ज़ी वाद्य यंत्र बनाया । उन्होंने पहाड़ से एक मोटी बांसुरी लाकर सुखायी, और बाद में गाय व भेड़ के चमड़े से बांसुरी को बांधा, श्वानज़ी वाद्ययंत्र की स्ट्रिंग घोड़े की पूंछ से बनी हुई है ।"

गेरोंग अच्छी तरह चीनी हान भाषा नहीं बोल सकता, इस तरह वह कम बातचीत करता है । लेकिन अपने पसंदीदा वाद्य यंत्र श्वानज़ी की चर्चा में वह काफी बोल रहा है । उस ने बताया कि श्यानज़ी दो प्रकार के हैं । पाथांग श्वानज़ी और देहछिंग श्वानज़ी । पाथांग श्वानज़ी की गति धीमी है और आवाज़ नीची है । जबकि देहछिंग श्वानज़ी की गति तेज़ है और आवाज़ ऊंची । गेरोंग ने कहा कि तिब्बती लोगों को समुद्री सतह से तीन चार हज़ार मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी गीत गाना पसंद है ।

पेइचिंग बहुसंस्कृतियों वाला स्थल है, जो तिब्बती क्षेत्र से बिलकुल अलग है । पेइचिंग में जीवन की गति तेज़ है और उन्हें तरह-तरह के व्यक्तियों के साथ संपर्क करना पड़ता है । तिब्बती बंधु गेरोंग ने कहा कि पेइचिंग मआने के शुरू में संस्कृति और जीवन तरीके के फ़र्क के कारण उन्हें कुछ सवालों का सामना करना पड़ता था । गेरोंग ने कहा:

"तिब्बती लोग सीधे सादे हैं । भीतरी इलाके के लोगों को मज़ाक करना पसंद है । पहले हमें आदत नहीं थी और कभी-कभार हमारे बीच गलतफ़हमी पैदा हो जाती थी । अगर अपने तिब्बती दोस्तों के साथ दूसरे रेस्तरां में खाना खा रहे हैं,तो एक साथ गाते हैं, तो बहुत अच्छा लगता है । लेकिन दूसरे लोगों के साथ रहने की आदत नहीं पड़ी ।"