पचास साल पहले दक्षिण पश्चिमी चीन स्थित तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास व्यवस्था लागू थी । तिब्बत की विभिन्न जातियों की जनता को सामंती भूदासों का क्रूर शोषण सहना पड़ता था । वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किया गया और सामंती भूदास व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया, तिब्बती भूदास अपने खुद के मालिक बन गए और सुखी जीवन बिताने लगे।
पचास वर्ष पूर्व तिब्बत यानि वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किए जाने से पहले तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास व्यवस्था लागू थी । उस समय तिब्बती समाज में बौद्ध भिक्षु और कुलीन वर्ग की तानाशाही थी, वह एक बहुत अंधेरा समाज था, जो मध्य युग में पश्चिमी युरोप की भूदास प्रणाली से भी बदतर था।
पुराने जमाने में तिब्बत में सभी जमीनें सरकारी अधिकारियों, कुलीन वर्ग और मठों के उच्च स्तरीय भिक्षुओं के हाथों में थीं । उन की संख्या पुराने तिब्बत की कुल जन संख्या के पांच प्रतिशत से भी कम थी, लेकिन वे तिब्बत की सारी खेती योग्य भूमि, घास मैदान, वन, पहाड़ और अधिकांश पशु पर काबिज थे । भूदासों की संख्या पुराने तिब्बत की कुल जन संख्या के 90 प्रतिशत से ज्यादा थी । लेकिन उन के पास कोई भूमि नहीं, शारीरिक स्वतंत्रता भी नहीं थी । भू-दास जागीरदार मालिकों की जागीर में जिन्दगी भर दासों का जीवन बिताते थे। इस के अलावा, अन्य पांच प्रतिशत गुलाम जागीदारों के पारिवारिक दास भी थे । उन के पास कोई उत्पादन सामग्री नहीं थी, न ही कोई शारीरिक स्वतंत्रता । पुराने तिब्बत में जागीरदार भूदासों को अपनी निजी संपत्ति मानते थे । भूदासों की जागीरदारों द्वारा मनमाने ढंग से खरीद-फरोख्त की जाती थी, उपहार के रूप में उन्हें एक दूसरे को को भेंट किया जाता था और कर्ज के लिए गिरवी रखा जाता था । यहां तक कि भूदासों की जान का फैसला भी जागीरदारों द्वारा अपनी इच्छानुसार किया जाता था ।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाज़े प्रिफैक्चर की च्यांगज़ी कांउटी में आज तक एक सामंती जागीरदार उद्यान यानी फाला जागीर सुरक्षित है, जहां तत्कालीन इतिहास अंकित है और लोगों को पुराने तिब्बत में भूदासों और कुलीन लोगों के बीच जमीन आसमान जैसा फर्क दिखाई पड़ता है। फाला उद्यान के गाईड श्री फूबू त्सेरिन ने जानकारी देते हुए कहा:
"फाला परिवार का इतिहास कोई 300 वर्ष से अधिक पुराना है, पुराने तिब्बत में वह बहुत प्रभावशाली था । तिब्बत की च्यांगज़ी काउंटी, ल्हासा,, बाईलांग कांउटी, यातुंग कांउटी और लोका प्रिफैक्चर में फाला परिवार की कुल 37 जागीरें, 12 चरागाह क्षेत्र, 2 हज़ार हैक्टर भूमि और तीन हज़ार से अधिक भूदास थे । इस तीन मंजिला फाला उद्यान का क्षेत्रफल पांच हज़ार वर्गमीटर है, जिस में 82 कमरे हैं ।"
तिब्बत की च्यांग जी कांउटी के बान ज्यू लुन बू गांव में स्थित फाला जागीर के मालिक के पास सौ से ज्यादा भूदास थे । जागीर के मकान लकड़ी से निर्मित हैं, जो बहुत विशाल और आलीशान लगते हैं । यहां कुल 82 मकान हैं और उन का कुल क्षेत्रफल कोई 5357.5 वर्ग मीटर है । निवास स्थान में तीन प्रांगण हैं । भिन्न-भिन्न कमरे भिन्न-भिन्न प्रयोग के लिए बंटे हुए थे, जिन में धार्मिक पूजा भवन, डाइनिंग रूम, बैठक, और मनोरंजन कमरे आदि शामिल थे । हर कमरे के स्तंभों व दीवारों पर सुन्दर चित्र अलंकृत हैं , जो बहुत सुन्दर और कुलीन नज़र आते हैं । फाला निवास स्थान का पूजा भवन विशेष शैली में डिज़ाइन किया गया है, इस में तिब्बती बौद्ध धर्म की बुद्ध मूर्तियां रखी हुई हैं, शयन कक्ष में सोने, चांदी तथा जेड के विविध डिज़ाइन वाले पात्रों में तत्कालिक कीमती खाद्यान्न, विदेशी मदिरा, आयातित सिरका तथा मूल्यवान जानवरों के चमड़ों से बने वस्त्र आदि रखे हुए हैं । फाला के बान ज्यु लुन बू उद्यान में एक विशेष कमरा है, जिस में सर्दियों के दिनों में उद्यान के मालिक सूर्य की धूप सेंकते थे।
फाला जागीर के लांघ शङ आंगन में विशेष तौर पर मालिकों की सेवा करने वाले भूदास रहते थे । वर्ष 1959 में तिब्बत के लोकतांत्रिक सुधार से पूर्व फाला बान ज्यू लुन बू जागीर के लांग शङ आंगन में कुल 14 परिवारों के 60 से ज्यादा भूदास रहते थे, लांग शङ आंगन के भूदास आम तौर पर कालीन बनाने, घोड़ों की देखभाल करने, शराब बनाने, कपड़ों की बुनाई-सिलाई करने और रक्षा आदि कठोर कामों के लिए जिम्मेदार थे। काम ज्यादा कठोर होने पर भी उन की आमदनी बहुत कम थी । जागीर में सब से ज्यादा सालाना आमदनी वाला भूदास एक साल में सिर्फ़ 192 किलो खाद्यान्न पाता था, अन्य भूदासों की सालाना आमदनी सिर्फ़ 156 किलो खाद्यान्न होती थी, यहां तक कि कुछ भूदासों को हर दिन सिर्फ़ एक चमच्च का जानबा नामक आटा मिलता था । इतनी कम आमदनी में एक भूदास को अपने सारे परिवार के सदस्यों को खिलाना पड़ता था । इस लिए फाला जागीर के लांग शङ आंगन के भूदासों का जीवन बहुत दूभर था । इस के साथ ही उन के रहने की स्थिति भी अत्यन्त खराब थी । लांग शङ आंगन का कुल क्षेत्रफल 150.66 वर्गमीटर था, 14 परिवारों के 60 से ज्यादा भूदास इस प्रकार के छोटे आंगन में रहते थे, जिस से हरेक व्यक्ति के लिए औसत क्षेत्रफल 2.5 वर्गमीटर से भी कम था । इन 14 परिवारों में सब से बड़े कमरे का क्षेत्रफल 14.58 वर्गमीटर था और सब से छोटा कमरा सिर्फ़ 4.05 वर्गमीटर का था । फाला जागीर के भूदास पीढ़ी दर पीढ़ी लांग शङ आंगन के तंग, और खस्ते कमरों में रहते थे। 75 वर्षीय मीमा तुनचु फाला जागीर का लांगशङ यानी भूदास था , पुराने तिब्बत में अपने कठोर जीवन की याद करते हुए बूढ़े ने कहा:
"13 वर्ष की उम्र में मैं फाला जागीर का लांगशङ बन गया था और कपड़ों की बुनाई-सिलाई का काम करता था । हर रोज़ सुबह आठ बजे से रात को सात बजे तक काम करना पड़ता था और दोपहर के समय आराम नहीं कर सकता था। हर दिन का काम पूरा करने के बाद महीने के अंत में मुझे 28 किलो जाम्बा मिल सकता था । यह परिवार के सभी सदस्यों को खिलाने वाली चीज़ है । पहले मैं फाला जागीर के लांगशङ आंगन में सब से छोटे कमरे में रहता था और मेरे पास कोई शारीरिक अधिकार नहीं था ।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(श्याओ थांग)