तिब्बत पठार पर स्थित तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन के पांच अल्पसंख्यक जातीय स्वशासन प्रदेशों में से एक है, जहां आबाद अधिकांश लोग तिब्बती हैं । तिब्बती लोग तिब्बती बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं। अतीत में बाह्य दुनिया से दूर अलग होने के कारण तिब्बती बौद्ध मठ लम्बे अरसे तक एक रहस्यमान सथल बने रहे। बहुत से लोग इस में जिज्ञासा रखते हैं कि तिब्बती मठ में भिक्षु भिक्षुनी कौन सा जीवन बिताते हैं? तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी जानना चाहते हैं कि तिब्बती मठ मंदिर में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अवशेषों के संरक्षण की हालत कैसी है?
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के शिकाजे शहर के पश्चिमी उपनगर में अवस्थित जाशिलुंबो मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलूग संप्रदाय के चार प्रमुख मठों में से एक है और चौथे पंचनलामा से वह विभिन्न पीढि के पंचनलामा का आवासी मठ रहा है । जाशिलुंबो मठ का निर्माण सन् 1477 में शुरू हुआ, 12 साल बाद 1489में पूरा हो गया। वर्तमान में 70 वर्षीय लामा सालुंग प्यांगला जाशिलुंबो मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान हैं, श्री सालुंग प्यांगला 1951 में बौद्ध धर्म में दीक्षित हुआ। मठ में तब और अब के भारी परिवर्तन उन्हों ने खुद आंखों से देखा। उन्होंने कहाः
"पुराने तिब्बत में मठ मंदिर पर तत्कालीन तिब्बती स्थानीय सरकार ---गाक्साग सरकार का आधिपत्य था। भिक्षु और भिक्षुनियों की कोई भी स्वतंत्रता और अधिकार नहीं था। वे भूदास की भांति उत्पीड़ित और दलित रहते थे। 1959में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार चलाया गया, तभी से तिब्बत का कायापलट हो गया। भिक्षु और भिक्षुनी सच्चे मायने में मठ मंदिर के स्वामी बन गए और उन का जीवन सुधर गया और सामाजिक स्थान भी बहुत उन्नत हो गया।"
पिछली शताब्दी के मध्य तक पुराना तिब्बत एक राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास समाज था। तिब्बत की जन संख्या के केवल 5 प्रतिशत के जागीरदार यानी कुलीन वर्ग, स्थानीय सरकार और उच्च वर्गीय भिक्षु तिब्बत के 95 प्रतिशत की भूमि और उत्पादन संसाधन पर काबिज थे, जबकि जनसंख्या के 95 प्रतिशत के व्यापक जन साधारण भूदास और दास थे। उस जमाने में भूदास और दास पूरी तरह स्वतंत्रता से वंचित रहते थे, उन्हें जागीरदार की भूमि पर खून पसीना बहाना पड़ता था । पुराने तिब्बत में धार्मिक शक्ति चंद कुछ उच्च वर्गीय भिक्षुओं और भिक्षु के छद्म रूप कुलीन वर्ग के हाथ में थी, अधिकांश साधारण भिक्षुओं की स्थिति भूदास के बराबर थी। मठ के सभी अधिकार जीवित बुद्ध व उच्च वर्गीय भिक्षुओं के हाथ में थे । साधारण भिक्षुओं को बोलने का कोई अधिकार नहीं था। सन् 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार के चलते पुरानी सामंती भूदास व्यवस्था खत्म कर दी गयी। व्यापक भूदास अपने भाग्य का आप स्वामी बने। इस के साथ ही साथ मठ मंदिर के आम भिक्षुओं की हालत भी पलट गयी । उन का जीवन सुधरा और राजनीतिक व प्रशासिक मामले में भाग लेने का अधिकार प्राप्त हुआ। मठ में लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी स्थापित हुई, कमेटी के सदस्य तमाम भिक्षु भिक्षुनियों द्वारा मतदान से चुने जाते हैं । यदि कमेटी के किसी सदस्य ने स्वास्थ्य के कारण सदस्यता छोड़ी, तो उस की जगह तमाम भिक्षुओं में मतदान से नया सदस्य चुना जाता है। मठ के तमाम मामले पर फैसला लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी द्वारा लिया जाता है । श्री सालुंग.प्यांगला जाशिलुंबो लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान हैं, वे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की कमेटी के उपाध्यक्ष भी हैं। अपना अनुभव बताते हुए उन्हों ने कहाः
"लोकतांत्रिक सुधार से पहले, तिब्बती बौद्ध धर्म के मठ में आम भिक्षुओं को सरकारी कार्य में हिस्सा लेने का कोई हक नहीं था। लेकिन अब भिक्षु भिक्षुनियों को सरकारी मामले पर बोलने और राय देने का पूरा अधिकार है। मैं ही तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की कमेटी के उपाध्यक्ष और जाशुलुंबो मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के प्रधान हूं । मठ मंदिर के भिक्षुओं को देश के विकास और मठ के प्रबंध के काम में भाग लेने का अधिकार पाने से वे सच्चे माइने में मठ का स्वामी बन गए हैं।"
वर्तमान तिब्बत में सभी मठों के भिक्षु भिक्षुनियों को लोकतांत्रिक सुधार से आए भारी परिवर्तन का अनुभव हुआ है। ल्हासा के पश्चिमी उपनगर में स्थित दर्पोंग मठ गेलूग संप्रदाय के छै प्रमुख मठों में से एक है और ल्हासा में स्थित तीन मुख्य मठों में से एक भी। लोकतांत्रिक सुधार के बाद मठ के भिक्षुओं ने पानी के लिए पहाड़ पर चढ़ने तथा गर्मी के लिए गोबर जलाने के पुराने ढंग के जीवन को अलविदा कर दिया । मठ की लोकतांत्रिक प्रबंध कमेटी के उप प्रधान आवांगछ्वुन्जङ ने कहाः
"लोकतांत्रिक सुधार के बाद सब से बड़ा परिवर्तम मठ के जीवन में आया। अतीत में भिक्षु गोबर और चूल्हा जलाते थे। अब हम प्राकृतिक गैस जलाते हैं, वह बहुत साफ सुथरा और समय की किफायत भी है। सरकार ने पूंजी डाल कर सड़कें बनायीं और पेय जल के नल और लाइटिंग की व्यवस्था लगायी। अब पानी लेने के लिए हमें बाल्टी उठा कर पहाड़ पर जाने की जरूरत नहीं रह गयी, हर आंगन में जल पाइप लगाया गया है। हमारा जीवन एकदम सुधर गया है।"
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओ थांग)