जैसा कि हम जानते हैं कि समुद्री घासफूस मकान एक विशेष ढंग वाले साधारण निवास मकान तो है ही , वह विविधतापूर्ण संस्कृतियों की निचोड़ भी है और उस में सांस्कृतिक मानव जाति शास्त्र , लोकाचार शास्त्र और वास्तु निर्माण शास्त्र जैसे सांस्कृतिक विज्ञान निहित हैं । श्री ल्यू ची कांग ने कहा कि क्योंकि यह मकान प्रकृति से उत्पन्न हुआ है , इसलिये वह एक प्रकार की आदिम पारिस्थितिकि संस्कृति ही है। पूर्वी चीन के समुद्री घासफूस मकान उत्तर पश्चिमी चीन के गुफा की हर तरह स्थानीय भू सूरत और रीति रिवाजों से घनिष्ट रूप से जुडे हुए हैं और वे शानतुंग प्रायद्वीप के मछुवाओं का महान आविष्कार भी हैं , साथ ही वे मानव जाति व प्रकृति के बीच एक दूसरे का आत्मसात करने की शानदार आदर्श मिसाल भी हैं । इसी प्रकार वाले मकानों की अनुठी विशेषता यह है कि गर्मियों में उस में ज्यादा गर्मी नहीं होती है और सर्दियों में ज्यादा ठंड भी नहीं है और टीकाऊ भी है । सुना जाता है कि इसी प्रकार वाले मकान तीन सौ वर्षों से अधिक समय तक रहने लायक हैं।
दोस्तो , पहले इसी कार्यक्रम में हम समुद्री घासफूस मकान के बारे में कुछ जानकारी पा चुके हैं । जैसा कि हम जानते हैं कि समुद्री घासफूस मकान एक विशेष ढंग वाले साधारण निवास मकान तो है ही , वह विविधतापूर्ण संस्कृतियों की निचोड़ भी है और उस में सांस्कृतिक मानव जाति शास्त्र , लोकाचार शास्त्र और वास्तु निर्माण शास्त्र जैसे सांस्कृतिक विज्ञान निहित हैं । श्री ल्यू ची कांग ने कहा कि क्योंकि यह मकान प्रकृति से उत्पन्न हुआ है , इसलिये वह एक प्रकार की आदिम पारिस्थितिकि संस्कृति ही है।
उस की सभी सामग्री स्थानीय प्राकृतिक सनसाधनों से आयी है। समुद्री घास फूस को उदाहरण ले लीजिये , वह समुद्र में अपने आप उगी हुई है , फिर भयंकर हवाओं व लहरों के बहाव से वह समुद्रतट पर इकट्ठी हो गयी , बाद में समुद्री लहरों का उतार चढ़ाव हटने पर स्थानीय मछुवाओं ने समुद्री घास फूस को धुप में सुखा दिया और इस का विशेष वास्तु कला से प्रोसेसिंग कर मकान बनाने में प्रयोग किया । साथ ही मकान की खिड़कियों , दरवाजों व खंभों को बनाने में जिन लकड़ियों का प्रयोग किया गया है , वह भी स्थानीय पहाड़ों पर उगे पेड़ों से है । जहां तक मकान के पत्थर आधार का ताल्लुक है , वह भी स्थानीय पहाडों के पत्थरों से निर्मित है।
पूर्वी चीन के समुद्री घासफूस मकान उत्तर पश्चिमी चीन के गुफा की हर तरह स्थानीय भू सूरत और रीति रिवाजों से घनिष्ट रूप से जुडे हुए हैं और वे शानतुंग प्रायद्वीप के मछुवाओं का महान आविष्कार भी हैं , साथ ही वे मानव जाति व प्रकृति के बीच एक दूसरे का आत्मसात करने की शानदार आदर्श मिसाल भी हैं । इसी प्रकार वाले मकानों की अनुठी विशेषता यह है कि गर्मियों में उस में ज्यादा गर्मी नहीं होती है और सर्दियों में ज्यादा ठंड भी नहीं है और टीकाऊ भी है । सुना जाता है कि इसी प्रकार वाले मकान तीन सौ वर्षों से अधिक समय तक रहने लायक हैं।
21वीं शताब्दी में प्रवेश होने के साथ साथ समुद्रतटीय क्षेत्रों में मछुवाओं के रहन सहन में बड़ा बदलाव आया है , समुद्री घासफूस मकान जितना महत्वपूर्ण नहीं रहे हैं , वर्तमान में स्थानीय वासियों ने पुराने मकानों को हटाकर नये पक्के मकान बनवा दिये हैं । इतना ही नहीं , इधर सालों में छिछले समुद्र में जल पदार्थ पालन के विस्तार से समुद्री घासों पर बड़ा कुप्रभाव पड़ गया है , इस से मूल रूप से समुद्री घास फूस मकान बनवाने की जड़ कट गयी है।
स्थानीय विशेषता वाले परम्परागत समुद्री घास फूस मकानों के संरक्षण के लिये अब रुंग छंग व छांग ताओ आदि क्षेत्रों की स्थानीय सरकारों ने कुछ पर्यटन स्थलों के पुनर्निर्माण में जोर पकड़ लिया है , ताकि इसी प्रकार वाले समुद्री घास फूस मकान नागरिक निवास पर्यटन संस्कृति के रूप में संरक्षित किये जा सके । फोटोकार श्री ल्यू ची कांग ने कहा मेरा ख्याल है कि समुद्री घासफूस मकानों का बहुपक्षीय महत्व है । सर्वप्रथम वह वैश्विक भौतिक सांस्कृतिक विरासत और गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया जायेगा । क्योंकि गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत इस बात की अभिव्यक्ति करती है कि समुद्री घासफूस मकानों वाले ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पन्न विशेष क्षेत्रीय संस्कृति स्थानीय दुर्लभ लोकाचार संस्कृति का परिचायक ही है और इसी प्रकार वाली क्षेत्रीय परम्परागत लोकाचार संस्कृति सम्भवतः मानव जाति के लिये एक अहम नयी प्रेरणा देगी ।