2008-12-18 15:17:27

बुद्ध का थांगका ताथागाता मठ की धरोहर माना जाता है

ताथागाता मठ जैसे तिब्बती वास्तु शैली से निर्मित मंदिर दो भागों में बटा हुआ है , जिस का एक भाग ताथागाता मठ के सोछेन भवन जितना आलीशान व भव्यदार नजर आता है , जब कि दूसरे भाग में रिहायशी मकान खड़े हुए दिखाई देते हैं , जहां पर मुख्यतः भिक्षु रहते हैं । पर्वतों से सटे हुए ये मकान पत्थरों से निर्मित हुए हैं और उन की दीवारों का रंग सफेद है ।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि तिब्बत में सब से बड़ा किचन इसी ताथागाता मठ के सोछेन भवन के बगल में अवस्थित है । क्योंकि एक समय में ताथागाता मठ में कोई दस हजार से अधिक भिक्षु रहते थे , इतने ज्यादा व्यक्तिय़ों को खाना खिलाने के लिये कितने विशाल किचन की जरूरत पड़ती थी , इस की कल्पना की जा सकती है ।

प्रिय दोस्तो , आज हम फिर तिब्बत की ताथागाता मठ के दौरे पर जा रहे हैं । ताथागाता मठ जैसे तिब्बती वास्तु शैली से निर्मित मंदिर दो भागों में बटा हुआ है , जिस का एक भाग ताथागाता मठ के सोछेन भवन जितना आलीशान व भव्यदार नजर आता है , जब कि दूसरे भाग में रिहायशी मकान खड़े हुए दिखाई देते हैं , जहां पर मुख्यतः भिक्षु रहते हैं । पर्वतों से सटे हुए ये मकान पत्थरों से निर्मित हुए हैं और उन की दीवारों का रंग सफेद है ।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि तिब्बत में सब से बड़ा किचन इसी ताथागाता मठ के सोछेन भवन के बगल में अवस्थित है । क्योंकि एक समय में ताथागाता मठ में कोई दस हजार से अधिक भिक्षु रहते थे , इतने ज्यादा व्यक्तिय़ों को खाना खिलाने के लिये कितने विशाल किचन की जरूरत पड़ती थी , इस की कल्पना की जा सकती है ।

हमारे गाइड च्यांगयुंगपातेन ने एक बड़े आकार वाले लकड़ी बोर्ड की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह इस मठ में विशेष तौर पर भिक्षुओं के लिये खाना पकाने वाला बोर्ड है , वह विशाल ही नहीं , बहुत भारी भी है , उसे उठाने में चार पांच व्यक्तियों की जरूरत पड़ती है । और उधर देखिये , यह भीमकाय वर्तन तत्कालीन ताथागाता मठ के दस हजार पांच सौ भिक्षुओं को खाना खिलाने के लिये विशेष तौर पर तैयार हुआ है , यहां पर कुल पांच इतने बड़े बर्तन अभी भी हू ब हू सुरक्षित हुए हैं । एक बर्तन में एक हजार पांच सौ किलोग्राम चावल रखा जा सकता है , एक बार पांच सौ किलोग्राम चावल पकाया जा सकता है ।

पश्चिम ताथागाता मठ की पत्थर सीढ़ियों से ऊपर जाकर एक गेट खड़ा हुआ है , इस गेट के पीछे एक तंगी पगडंडी का अनुसरण करते हुए एक छोटा पहाड़ी मैदान है , इस मैदान पर खड़ा होकर पहाड़ों के नीचे घाटियों का मनोहर प्राकृतिक सौंदर्य देखा जा सकता है । फिर आगे चलकर पहाड़ की सीधी खड़ी चट्टान पर बुद्ध की विशाल मूर्ति तराशी गयी है । इस मूर्ति के पीछे जो लौहा ढांचा खड़ा हुआ है , वह श्वे तुन उत्सव के उपलक्ष में बुद्ध का थांगका लटकाने के लिये विशेष तौर पर तैयार हुआ है ।

श्वे तुन उत्सव के उपलक्ष में बुद्ध का थांगका धुप में लटकाना एक प्रमुख गतिविधि ही है । श्वे तुन उत्सव की सुबह ताथागाता मठ के भिक्षु पास के पहाड़ पर स्थापित उस लौहे ढांचे पर बुद्ध शाक्यमुनि की एक भीमकाय तस्वीर लटकायी जाती है , ताकि आसपास के लामा बौद्ध धार्मिक अनुयायी बुद्ध के दर्शन कर सके । गाइड च्यांगयुंगपातेन ने कहा शाक्यमुनि बुद्ध का थांगका कोई 20 मीटर लम्बा है , आम दिनों में वह रोल बनाकर एक बड़ी अल्मारी में सुरक्षित रखा हुआ है । समूचे तिब्बत में सब से बड़ा थांगका इसी ताथागाता मठ में सुरक्षित है और वह इस ताथागाता मठ की धरोहर मानी जाती है ।

आज बुद्ध शाक्यमुनि की यह बेमिसाल विशाल कसीदा तस्वीर बड़ी सावधानी से ताथागाता मठ में सुरक्षित हुई है । हर वर्ष में केवल श्वेतुन उत्सव के उपलक्ष में लोग अपनी आंखों से बुद्ध के इस भीमकाय थांगका के दर्शन कर सकते हैं । ताथागाता मठ में बुद्ध के मूल्यवान थांगका को छोड़कर हजारों ऐतिहासिक व सांस्कृतिक अवशेष व पुरानी बेमूल्य वस्तुएं भी पायी जाती हैं । ये सांस्कृतिक अवशेष तिब्बत के इतिहास , धर्म और कला आदि विषयों का अध्ययन करने के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं ।