तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन में ऐसा क्षेत्र माना जाता है जहां पूर्ण रुप से लोक-संस्कृति का विकास हुआ है । पर तिब्बत की सामंतवादी भूदास व्यवस्था के युग में धार्मिक संस्कृति के नियंत्रण पर कुछ लोक-सांस्कृतिक का स्वरूप विलुप्त हो गया । सन 1950 के दशक से चीन सरकार ने तिब्बत में लोक-संस्कृति के संरक्षण पर जोर दिया है, और मौजूद लोक संस्कृति का कारगर संरक्षण किया गया है ।
इधर के बीस सालों में चीन सरकार ने तिब्बती लोक-संस्कृति के संरक्षण व विकास के लिए अधिक धनराशि प्रदान की है । स्वायत्त प्रदेश की सामाजिक अकादमी के जातीय प्रतिष्ठान के उप प्रधान श्री त्सीरिंग च्याबू ने कहा ,
सरकार ने गैर-भौगोलिक सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण को बहुत महत्व दिया है । महाकाव्य कसार समेत विरासतों की सुव्यवस्था , प्रकाशन और अनुसंधान के विषयों को सारे देश के सामाजिक अनुसंधान मुद्दों में शामिल किया गया है।
सन 1990 के दशक में चीन सरकार के संबंधित विभागों के समर्थन से तिब्बत के संस्कृति विभागों ने 14 सालों में लोक-कथा , लोक-गीत और लोक-गाथागीत तीन संग्रहों का प्रकाशन किया , जिन में 38 लाख चीनी शब्द हैं । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोक-कलाकारी संघ के अध्यक्ष श्री त्सीडान डोच्ये ने कहा ,उक्त तीन किताबों का प्रकाशन अभूतपूर्व है । इस कार्य के खर्च में सरकार ने दस बीस लाख य्वान की पूंजी डाली है । श्री त्सीडान डोच्ये ने कहा कि इतना भारी कार्य समाप्त करना पुराने युग में अकल्पनीय था। उन्हों ने कहा , हमारे लोक साहित्य के उक्त तीन संग्रहों के संपादन कार्यों में तिब्बती जाति, हान जाति , तिब्बत के , और पेइचिंग के कुल सौ से अधिक राष्ट्र स्तरीय विशेषज्ञों की भागीदारी हुई है ।
श्री त्सीडान डोच्ये के अनुसार सामंतवादी भूदास व्यवस्था के युग में लोक-संस्कृति का संरक्षण नहीं हो पाया , और लोक-कलाकारों का सामाजिक स्थान भी बहुत नीचे था , उन का कोई समादर नहीं किया जाता था ।
हम इतिहास की पुस्तकों में यह पढ़ते हैं कि सामंतवादी भूदास काल में कलाकारों को सब से निम्न आदमी माना जाता था , उन के साथ गैर-मानवतावादी व्यवहार किया जाता था । उन्हें जीवन जीने के लिए सड़कों पर गीत गा कर पैसे कमाने पड़ते थे । लोक-कलाकारों को शारीरिक स्वतंत्रता नहीं थी , और उन्हें लोक-कथा सुनाने का अधिकार भी नहीं था ।
सन 1950 के दशक से चीन सरकार ने लोक-कला को साहित्य और कला के मंच पर पहुंचाया। लोक-कलाकारों का सामाजिक स्थान भी उन्नत होने लगा ।
लोक-कलाकारों का स्थान बदला है , उन्हें मुक्त होकर अपने जीवन का मालिक बनाया गया है । आज कुछ लोक-कलाकारों में कुछ राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के सदस्य भी निर्वाचित किये गये हैं । हमारे बहुत से हमपेशों को भी सरकारी नौकरियों की तरह अकादमिक उपाधि दी गयी है। सरकार हमें राष्ट्री रत्न समझती है , हमारे जीवन में जो परिवर्तन हुआ है , वह कितना स्पष्ट है ।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोक-कलाकार संघ , जहां श्री त्सीडान डोच्ये कार्यरत हैं , तिब्बत की लोक-कला , साहित्य की तलाश , संरक्षण और अनुसंधान करने की जिम्मेदार संस्था है । संघ के भीतर लोक-कला के संरक्षण के संदर्भ में बहुत से विशेषज्ञ और उत्साही हैं । इन की चर्चा करते हुए श्री त्सीडान डोच्ये ने कहा ,
हमारे संघ में दो सौ सदस्य हैं । वे हर साल अपनी रचनाएं प्रस्तुत करते हैं , उन में हान भाषा भी है , तिब्बती भाषा की भी । हम लोक-साहित्य , शिल्पकला , लोक-कला और यहां तक तिब्बती अगरबत्ती , बर्तन और जातीय कपड़ों का अनुसंधान करते हैं ।
श्री त्सीडान डोच्ये के अनुसार केंद्र सरकार के समर्थन से स्वायत्त प्रदेश के लोक-कलाकार संघ ने परंपरागत संस्कृति के संरक्षण में बहुत से काम किये हैं । उन्हों ने अपने कामकाज़ से तिब्बती फूटपरस्तों की अफवाहों का खंडन किया है । उन्हों ने कहा , तिब्बत में सांस्कृतिक कार्यों का अभूतपूर्व विकास हुआ है । तिब्बती स्वाधीनता के लिए चंद फूट-परस्तों ने कहा कि तिब्बती संस्कृति विलुप्त होने वाली है । यह बिल्कुल अफवाह है। उन की बातें सुनकर हम बहुत क्रोधित हैं । क्योंकि तिब्बती संस्कृति का संरक्षण करने में जो प्राप्त उपलब्धियां हैं , वे सब हमारी कोशिशों का परिणाम है । पता चला है कि आजकल स्वायत्त प्रदेश का लोक-कलाकार संघ ' तिब्बत की विभिन्न कांऊटियों के लोक-कथा संग्रह ' तथा ' तिब्बती थांखा रिकार्ड ' का संशोधन करने में व्यस्त हैं । श्री त्सीडान डोच्ये ने कहा , हम अक्सर कहते हैं कि तिब्बत लोक गीत-संगीत , लोक कला और लोक-साहित्य का सागर है । इन सब को सुव्यवस्थित करने के लिए बहुत समय चाहिये । सरकार भी इस काम को महत्व देती है । उक्त किताबों के अलावा हम ने तिब्बती रीति-रिवाज़ और थांखा रिकार्ड संपादन कर रहे हैं। इन की समाप्ति पर हम तिब्बती वास्तु कला संग्रह का काम भी शुरू करेंगे । हमारे सामने काम ढ़ेर सारे हैं ।
तिब्बती स्वायत्त प्रदेश की गैर-भौगोलिक सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण दल के विशेषज्ञ श्री फूंगत्सोक नामग्या ने कहा कि केंद्र सरकार ने तिबब्ती संस्कृति के संरक्षण में अधिकाधिक शक्तियां डाली हैं । इस के चलते तिब्बत की जातीय परंपरा का बचाव , विकास और संरक्षण किया गया है । तिब्बती भाषा , तिब्बती संस्कृति की परंपरा तथा जातीय विशेषता का विकास किया जा रहा है । उन्हों ने कहा , इधर पचास सालों में केंद्रीय सरकार ने वैधानिक , आर्थिक और प्रशासनिक माध्यमों से तिब्बती संस्कृति के संरक्षण में भारी शक्ति डाली है । तिब्बती भाषा , नृत्य कला और लोक-कथा जैसे जातीय कला व संस्कृति का अच्छा विकास किया गया है । तिब्बती संस्कृति चीनी संस्कृति और विश्व संस्कृति में शानदार मोती की तरह चमकती रहेगी । (श्याओयांग)