2008-09-09 15:45:34

संगीतकार च्यो जी

चीन के शिन च्यांग वेवुर स्वायत प्रदेश के संगीत जगत में एक आदरणीय संगीतकार हैं, जिन का नाम है च्यो जी। उन्होंने चीन के शिनच्यांग वेवुर स्वायत प्रदेश की मुखामू कला को मनुष्य की मौखिक व गैरभौगोलिक धरोहरों की नामसूची में शामिल करने के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया है।

वर्ष 2008 की पांच मई के तड़के, हृदय की धड़रन रुक जाने से 66 वर्षीय वेवुर मुखामू कला के विशेषज्ञ च्यो जी का निधन पेइचिंग में हुआ। यह सौभाग्य की बात है कि मैंने वेवुर मुखामू कला को जाना। जब मेरा देहांत हो, तो मेरे विचार में आप लोग मुखामू से मुझे बिदा दें। यह एक महीने पहले श्री च्यो जी ने कहा था। उन के लिए मुकामू कला सब से महत्वपूर्ण थी।

मुखामू का अनुसंधान करना न केवल वेवुर संगीतकार की जिम्मेवारी है, बल्कि शिनच्यांग में काम करने वाले सभी हान जाति के संगीतकर्त्ताओं का कर्त्तव्य है।

वर्ष 1959 में अभी-अभी मीडिल स्कूल से स्नातक होने वाले च्यो जी शिनच्यांग वेवुर स्वायत प्रदेश के नृत्य गीत मंडल द्वारा भरती किये गये।उन्होंने अन्य वेवुर जाति के संगीतकारों के साथ शिनच्यांग में प्रथम बार एक पेइचिंग ऑपेरा को वेवुर जाति का ऑपेरा बनाया और भारी सफलता प्राप्त की। अभी तक, यह ऑपेरा मुखामू संगीत के मंच पर आने की सफल मिसाल है। श्री च्यो जी ने संवाददाता को बताया , मुखामू एक या दो आदमी नहीं है और केवल वेवुर जाति के लोगों के विचार का निचोड़ भी नहीं है। वह पूर्वी व पश्चिमी संगीत के आदान-प्रदान का परिणाम है। उस ने पूर्वी व पश्चिमी जनता की बुद्धिमता को एकत्र किया है, इसलिए, मेरा विचार है कि मुखामू का संशोधन करना जीवन भर की बात है। मैं मुखामू को अपने आजीवन संघर्ष का एक लक्ष्य मानता हूं।मुखामू कला की सामग्री को इकट्ठा करने के लिए श्री च्यो जी अक्सर खाद्य पदार्थ और पानी बर्तन लेकर रेगिस्तान में चले जाते , ख्वनल्वन पहाड़ पर चढ़ते और गांवों में स्थानीय कलाकारों से मुखामू संगीत कला सीखते।

वर्ष 2003 में चीन के शिनच्यांग वेवुर स्वायत प्रदेश ने वेवुर मुखामू कला के मनुष्य की मौखिक व गैरभौगोलिक धरोहरों की नामसूची में शामिल करने का काम शुरु किया। श्री च्यो जी ने शिनच्यांग के दायरे में मुखामू कला की जांच, एकत्र, प्रबंध और युनेस्को को आवेदन पत्र देने के काम की जिम्मेदारी उठायी। युनेस्को को आवेदन पत्र देने के लिए श्री च्यो जी ने कला अनुसंधान संस्था के साथ शूटिंग दल की स्थापना की और शिनच्यांग के काशी, मेगेईथी, तुरूफैन और हामी आदि स्थलों का निरीक्षण दौरा किया और 30 हजार शब्दों वाला आवेदन पत्र लिखा।

शिनच्यांग एइय्वेई मंडल के उपाध्यक्ष श्री अबूदुरहमन अयोपू ने श्री च्यो जी की प्रशंसा की कि उन्होंने शिनच्यांग के जातीय संगीत कार्य के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया है।

जातीय संगीत के प्रति उन की समझ बहुत गहरी है। न केवल संगीत के क्षेत्र में उन्होंने वेवुर जाति की भाषा व संस्कृति का अच्छी तरह अनुसंधान किया है । वे जातीय संगीत व मुखामू के अनुसंधान में लगे रहे हैं।

श्री च्यो जी के लिए सब से गौरव की बात है कि उन्होंने अपने सहकर्मियों के साथ अथक प्रयास से सफलतापूर्वक शिनच्यांग की वेवुर जाति की मुखामू कला को युनेस्को की मौखिक व गैरभौगोलिक धरोहरों की नामसूची में शामिल करवाया और मुखामू कला को एक विश्व स्तरीय सांस्कृतिक धरोहर में परिवर्तित किया। मुखामू के भविष्य के बारे में श्री च्यो जी का अपना विचार है।

हम ने पांच माध्यमों से मुखामू का संरक्षण व प्रसार किया है, यानी मौखिक प्रसार, विशेष प्रसार, शैक्षिक प्रसार, लिखित प्रसार और मीडिया प्रसार। हम परम्परा के प्रति आम नागरिकों की भावना को प्रेरित करना चाहते हैं। मुझे विश्वास है कि जान-माल की गारंटी होने से ही इस कार्य में भारी परिवर्तन आयेगा।

लेकिन, श्री च्यो जी का सपना पूरा न होने से पहले वे मुखामू कला के अनुसंधान के रास्ते में ही वे चले गये। उन के देहांत से पहले, वे शिनच्यांग वेवुर स्वायत प्रदेश के नृत्य-गान कला अनुसंधान , शिनच्यांग में गैरभौगोलिक सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण और चीन के शिनच्यांग वेवुर स्वायत प्रदेश की मुखामू कला के डिजीटल डेटा आदि तीन राष्ट्रीय व प्रांतीय अनुसंधान कार्य में व्यस्त थे।शिनच्यांग के मशहूर संगीतकार श्री च्याओ स अन ने बताया, श्री च्यो जी आजीवन शिनच्यांग के जातीय संगीत व संस्कृति के अनुसंधान में लगे रहे। उन्होंने रचना व अनुसंधान के आधार पर मुखामू का प्रसार किया।शिनच्यांग अल्पसंख्यक जातियों की श्रेष्ठ सांस्कृतिक धरोहर को देश व दुनिया में फैलाने में श्री च्यो जी ने भारी योगदान किया है।(श्याओयांग)