चीन विश्व में मुक्केबाज़ी की ताकत माना जाता है । चीनी मुक्केबाजों ने महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अनेक स्वर्ण-पदक बटोरे हैं । चीन के श्रेष्ठ मुक्केबाज़ों में बहुत से सिंच्यांग स्वायत्त प्रदेश के हैं , मिसाल के लिए इस वर्ष के पेइचिंग ऑलंपियाड में शरीक चीनी मुक्केबाज़ मंडल में तीन खिलाड़ी सिंच्यांग से आये हैं । उन के निर्देशक वेवुर जातीय श्री अबलेकिम हैं , जिन्हों ने अपनी टीम का नेतृत्व कर एशियाई चैंपियनशिप , चीनी राष्ट्रीय खेल समारोह , चीनी राष्ट्रीय मुक्केबाज़ी चैंपियनशिप आदि महत्वपूर्ण प्रतियोगितायों में चालीस से अधिक खिताब जीते हैं ।
सन 1994 में सिंच्यांग मुक्केबाज़ी टीम ने श्री अबलेकिम को टीम का प्रमुख निर्देशक नियुक्त किया ,इस शर्त पर कि अबलेकिम स्वायत्त प्रदेश के खेल प्रबंधन ब्यूरो को चीनी राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता की मुक्केबाज़ी स्पर्द्धा का खिताब जीतने का वचन दें । श्री अबलेकिम ने अपना वायदा निभाया और इस के बाद के हर राष्ट्रीय खेल समारोह में चैंपियनशिप जीती ।
अपनी पुरानी विजय का सिंहावलोकन करते हुए श्री अबलेकिम ने कहा , हमारी सिंच्यांग टीम ने प्रति साल स्वर्ण पदक जीता है । राष्ट्रीय खेल समारोह के अतिरिक्त एशिया चैंपियनशिप और विश्व प्रतिस्पर्द्धा आदि में हम ने चैंपियनशिप के अलावा दूसरा और तीसरा स्थान भी प्राप्त किया है । पेइचिंग ऑलंपियाड हमारे लिए इतना मूल्यवान मौका है जो चीन में सौ वर्षों में एक बार आया है । इसलिए हम अवश्य ही इस खेल में अतिप्रयास करेंगे और अपनी विजय से राष्ट्रीय ध्वज़ को बुलंदी पर फहराने का लक्ष्य साकार करेंगे , जिससे हमें गौरव महसूस होगा ।
पर विजय कठोर अभ्यास और वैज्ञानिक प्रशिक्षण पर आधारित होती है । श्री अबलेकिम ने अपना विशेष प्रशिक्षण कोर्स बनाया है। उन्हों ने स्लेज़ हेमर शीर्षक अभ्यास कोर्स का आविष्कार किया , जिस के मुताबिक मुक्केबाज़ों को एक मीटर विशाल रबर टायर के जरिये अपनी शक्ति को बढ़ाने का अभ्यास करना पड़ता है । इस उपाय से मुक्केबाज़ न सिर्फ शक्ति को बढ़ाते हैं , बल्कि शरीर को अधिक लचीला भी बना सकते हैं ।
हमारे इस अभ्यास के तरीके में अधिक शक्ति की ज़रूरत है । मुक्केबाज़ों को ज्यादा शक्ति जरूर चाहिये , पर उन्हें अधिक लचीलापन भी चाहिये । अगर उन में वह लचक नहीं है , तो वह दूसरे को नहीं हरा सकता । इसलिए मुक्केबाज़ी का अभ्यास करने में लचीलापन और शक्ति का जुड़ाव होना चाहिये। मेरे अभ्यास के तरीके में कोई संस्कृति नहीं है , पर अपनी विशेषता मौजूद है।
अथक प्रयास के जरिये श्री अबलेकिम ने अपनी विशेषता वाले अभ्यास का तरीका खोज निकाला। इस में दूसरे मुक्केबाज़ों के अभ्यास की तरह रस्सी कूदने का कोर्स नहीं है , पर श्री अबलेकिम की टीम में यही तरीका है । और उन्हें ढेंहली का अभ्यास भी करना पड़ता है । मुक्केबाज़ों के लिए यह सभी खतरनाक है , पर श्री अबलेकिम अपने खिलाड़ियों को ऐसा करने के लिए मजबूत करते हैं ।
ढेंहली करवाने से मुक्केबाज़ों को शरीर पर नियंत्रण करने की संतुलन शक्ति प्राप्त हो सकती है। साथ ही इस अभ्यास से अधिक शक्ति पायी जा सकती है । मुक्केबाज़ी में खिलाड़ी मुक्के से एक दूसरे को मारते हैं । मारपीट करने पर खिलाड़ी को अपने शरीर को तुरंत ही नियंत्रित करना पड़ता है , यही कुंजीभूत तत्व है ।
श्री अबलेकिम ने अपने वैज्ञानिक अभ्यास के तरीके से सिंच्यांग मुक्केबाज़ी टीम का बहुत सुधार किया है।
इधर के दर्जनों सालों का सिंहावलोकन करते समय श्री अबलेकिम ने कहा कि मुझे भी हारने का अनुभव हुआ है , पर मेरी टीम हमेशा सही दिशा की ओर आगे बढ़ रही है । और उन्हों ने पेइचिंग ऑलंपियाड में अपने खिलाड़ियों से अच्छे अंक प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की ।
सिंच्यांग के मुक्केबाज़ों के लिए ऑलंपिक प्रतियोगिताओं में भागीदारी मूल्यवान मौका है । मैं अपनी कोशिशों के परिणाम पर संतुष्ट हूं । मुझे बहुत खुशी है ।
ऑलंपियाड में भाग लेने से पहले श्री अबलेकिम ने अपने खिलाड़ियों को यथासंभवतः प्रतियोगिता के मौके के लिए तैयार किया । उन्हों ने विश्व स्तरीय मुक्केबाज़ों के साथ स्पर्द्धा में अनुभव प्राप्त किये हैं ।
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओयांग)