सिंच्यांग के ई-ली शहर की झा कांऊटी के लोक गीत-नृत्य मंडल में श्री हू क्वांग छींग जाने माने अभिनेता हैं , जो सामन गीत-संगीत की आवाज में सामन नाचते हैं । अभिनय करते समय उन की आंखों और हरकतें में इतने प्राचीन तत्व हैं कि लोग उन्हें एक सामन ही समझते हैं ।
सामन नृत्य में इस के अनुकूल कपड़े , टोपी आदि पहननी चाहिये , साथ ही उन की कमर के इर्दगिर्द छोटी घंटियों की सजावट भी होती है , और हाथ में ढोल और लकड़ी भी होती है । नर्तक सामन संगीत के साथ ढोल भी बजाते हैं ।
सामन गीत-संगीत का अनुसंधान करना शीपो जाति की संस्कृति और कला के विकास इतिहास का सारांश करने के लिए महत्वपूर्ण है । आज श्री हू क्वांग छींग समेत बहुत से कलाकारों ने सामन संगीत का विकास कर प्राचीन सामन संगीत को नया कलात्मक रुप दिया है ।
इधर चीन में शीपो जाति के बारे में कुछ जानकारियां प्रस्तुत हैं ।
शीपो जाति की जनसंख्या दो लाख है , जो मुख्य तौर पर पश्चिमी चीन के सिंच्यांग और पूर्वोत्तर चीन के ल्याओनींग और चिलीन प्रांतों में बिखरी हुई है। एक छोटी जाति के लोगों के देश के अलग-अलग भागों में रहने का कारण यह है कि प्राचीन काल के छींग राजवंश ने सीमवर्ती क्षेत्रों की रक्षा के लिए पूर्वोत्तर से शीपो के पांच हजार लोगों को पश्चिमी चीन के सिंच्यांग तक स्थानांतरित किया था । आज पूर्वोत्तर चीन में रह रहे शीपो जाति के लोगों की अपनी विशेष बोली और हस्तलिपि नहीं है । और उन के रीति-रिवाज़ भी दूसरी जातियों से मिलते- जुलते हैं । पर सिंच्यांग में रहे शीपो जाति के लोगों की आज तक अपनी विशेष ज़ुबान सुरक्षित है । शीपो जाति के लोग प्राचीन काल में शिकारी , मछुआगिरी और कृषि में लगे हुए थे , आज उन की आधुनिक समाज में भागीदारी होने लगी है ।
सिंच्यांग के शीपो जाति के लोगों के पूर्वज दो सौ साल पहले महाराजा के आदेश से पूर्वोत्तर चीन से स्थानांतरित किए गये थे । उन्हें इस बात का गौरव है कि इधर दो सौ सालों में उन में एक भी वापस नहीं भागा । सिंच्यांग में उन की जड़ें बिखरी हुईं हैं । शीपो जाति का एशिया के उत्तर में रह रही प्राचीन जातियों के साथ जैसे थूंग-कू-सी जाति के साथ घनिष्ठ संबंध है । शीपो जाति की बोली चीनी हान जाति की भाषा से मिलती जुलती है , और शीपो जाति के लोग आम तौर पर हान भाषा समेत अनेक भाषाएं बोल सकते हैं । शीपो जाति के पूर्वज शिकारी और मछुआगिरी करते थे , आज भी उन में कभी-कभी श्रेष्ठ तीरंदाज़ उभर रहे हैं । लेकिन आज बहुत से शीपो जाति के युवकों ने वाणिज्य , शिल्प-कला और सरकारी नौकरी का काम चुना है । शीपो जाति के लोग दूसरों की ही तरह आटा,चावल,चाय,घी और विभिन्न पशुओं का मांस भी खाते हैं । उन के रहन-सहन के रिवाज़ भी युग के परिवर्तन से मेल खाते हैं ।
शीपो जाति के लोग चीनी परंपरागत पंचांग के मुताबिक प्रति वर्ष चौथे माह की 18वीं तारीख को स्थानांतरण दिवस मनाते हैं , क्योंकि दो सौ साल पहले इसी दिन छींग राजवंश के महाराजा ने शीपो जाति के पूर्वजों को देश की पश्चिमी सीमा की रक्षा के लिए वहां पहुंचने का आदेश दिया था। शीपो जाति के लोग बुद्धिमान साबित हुए हैं । सिंच्यांग के शीपो जाति के लोग अपनी ज़ुबान बोलने के अलावा हान , वेवुर और हाजिकस्तानी आदि भाषाएं भी बोल सकते हैं । और उन में कुछ को विलुप्त हो चुकीं भाषाएं भी आती हैं । पेइचिंग के कुकूंग महल में हान भाषा में लिखित फाइलों के अनुसंधानकर्ताओं में कुछ शीपो जाति के भी हैं । (श्याओयांग)