2008-06-30 14:58:37

सिंच्यांग में महाकाव्य जांगर और इस की संस्कृति

उत्तर पश्चिमी चीन के सिंच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के ख़बूकसैल घासमैदान पर, चीन की दूसरी अल्पसंख्यक जाति मंगोलियाई जाति के बहुत से प्रवासी रहते हैं । उन में एक जाना-माना महाकाव्य जांगर पुराने समय से अभी तक सुनाIया जा रहा है । महाकाव्य जांगर कब अस्तित्व में आया,यह अज्ञात है,पर मंगोलिया समाज में मौखिक तौर पर पुराने समय से आज तक यह जिंदा है ।

बुजुर्ग कलाकार श्री गा-जूने देश में एक मात्र मंगोलिया कलाकार हैं , जो आज तक पूर्ण रूप से महाकाव्य जांगर गा सकते हैं । श्री गा-जूने का पोता, 11 वर्षीय कानूलू भी अपने दादा से जांगर गाना सीखता रहा है । उस ने हमें बताया कि उस ने 6 साल की उम्र से ही जांगर सीखना शुरू कर दिया था । और आज वह बहुत कुछ गा सकता है ।

महाकाव्य जांगर में मंगोलियाई जाति के इतिहास में एक महावीर जांगर की कहानी कही गई है । जांगर ने अपनी बुद्धिमत्ता, साहस और प्रतिभा से मंगोलियाई लोगों का सम्मान जीता था , और अतुल्य उपलब्धियों के कारण उन्हें जातीय लोगों ने महावीर के रूप में मान्यता दी। सिंच्यांग के ख़बूकसैल संग्रहालय में कार्यरत कर्मचारी , मंगोलियाई जाति के ऊलानछी ने हमें यह बताया,

जांगर इतिहास में एक राजा था । महाकाव्य जांगर उस की कहानी पर आधारित है । राजा जांगर ने 12वीं शताब्दी के अंत से 13वीं शताब्दी की शुरूआत तक ख़बूकसैल घासमैदान तथा आलडाई पर्वत के विशाल क्षेत्र में अपना खान राजवंश स्थापित किया था । मंगोलियाई जाति की दन्तकथा में जांगर राज्य ऐसा सुनहर स्थल था , जहां मर्ज , विपदा और युद्ध नहीं था , और सब लोग सुखी थे । राजा जांगर की भावना का मंगोलियाई जातीय लोगों में पीढ़ी दर पीढ़ी प्रसार होता रहा है , और महाकाव्य जांगर भी मौखिक तौर पर आज तक जीवित है ।

लेकिन मंगोलिया राज्य विशाल इलाकों में फैला था , पर महाकाव्य जांगर क्यों केवल ख़बूकसैल घासमैदान में ही प्रचलित है ? और जांगर गाने वाले कलाकार इतने कम क्यों हैं ? सिंच्यांग की ख़बूकसैल मंगोलियाई जाति स्वायत्त कांऊटी के सर्वोच्च नेता श्री चांग वन छिआन ने संवाददाता के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा , वर्ष 2005 में ख़बूकसैल मंगोलियाई जाति स्वायत्त कांऊटी में अंतर्राष्ट्रीय जांगर सांस्कृतिक पर्व का आयोजन हुआ । चीन और दूसरे 16 देशों के संस्कृति अनुसंधानक्रताओं ने हमारी काँऊटी में आकर जांगर संस्कृति का सुनियोजित तौर पर अनुसंधान किया । अंततः उन्होंने निष्कर्ष निकला कि महाकाव्य जांगर और जांगर संस्कृति पैदा होने का स्रोत सिंच्यांग का ख़बूकसैल ही है ।

पर महाकाव्य जांगर में कई लाख अक्षर हैं । लेकिन प्राचीन काल में इसे केवल मौखिक रूप से ही गाया जाता था । आज चीन में केवल बुजुर्ग श्री गा-जूने महाकाव्य जांगर के सभी 45 भाग गा सकते हैं । श्री गा-जूने तीन साल की उम्र से ही जांगर गाना सीखने लगे थे। सात साल तक वे जांगर के पहले दस भाग गा सकते थे , यानि कि कुल एक लाख अक्षर।

श्री गा-जूने ने कहा , मैं जिन्दगी भर ख़बूकसैल घासमैदान पर चरवाहागिरि का काम करता रहा हूं । और मैं बचपन से ही महाकाव्य जांगर गाना गा रहा हूं । मुझे जांगर बहुत पसंद है । मुझे महाकाव्य में वर्णित सभी वीर पसंद हैं । क्योंकि वे सब अपने राज्य और जनता की रक्षा करने के लिए कठोर संघर्ष कर रहे थे । हमारी मंगोलियाई जाति पीढ़ी दर पीढ़ी घोड़े और ऊंट की पीठ पर जीती रही है। हम मेहनती , साहसी और कृपापूर्ण जाति के हैं ,यह सब महाकाव्य जांगर में उल्लिखित है । मैं अपनी शक्ति भर जांगर कहानी का प्रसार करता रहूंगा ।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओयांग)