आज हम आप को दक्षिणी चीन के हाईनान प्रांत में रहने वाली ली जाति के बारे में कुछ सुना रहे हैं । ली जाति चीन में सब से पुरानी जातियों में से एक है । ली जाति की 13 लाख आबादी चीन के हाईनान द्वीप के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है । हजारों वर्षों के इतिहास में ली जातीय महिलाओं ने अपनी विशेष लीचिन नामक कपड़े बनाने की कला आविष्कृत की है ।
जब अतिथि बाहर से आते हैं , तब ली जातीय महिलाएं सुन्दर रेशम का लहंगा पहनकर मनोहर गीत-संगीत सुनाते हुए अतिथियों का स्वागत करती हैं । रंगीन आकृतियों से सजा लहंगा लीचिन नामक विशेष कपड़े से बनाया जाता है । क्योंकि लीचिन कपड़ा कपास से नहीं , हाईनान प्रांत में उगने वाले सइबा कपड़े के फूल के फाइबर से बनता है । इसलिए लीचिन कपड़े बनाने की तकनीक चीन के टैक्सटाइल इतिहास में जीवित जीवाश्म माना जाता है । ली जातीय महिला अपनी कताई की मशीनों से रंग-बिरंगे लीचिन कपड़े बनाती हैं ।
32 वर्षीया सुश्री वांग श्वेइ पींग हाईनान प्रांत के वू-चि-शान शहर के गा-ना गांव में रहती हैं । वे बचपन से ही लीचिन कपड़े बनाने वाली तकनीक सीख रही हैं , अब वे ली जाति में मशहूर लीचिन कताई मास्टर बन गयी हैं । सुश्री वांग श्वेइ पींग के मकान की सारी दीवार लीचिन कपड़ों के सजी हुई नज़र आती है । कमरे में तरह-तरह के रंगीन सूत और अभी तैयार होने वाले कपड़े पड़े हुए हैं । सुश्री वांग ने कहा कि वे बचपन से ही लीचिन कपड़े बनाने वाले कौशल से आकर्षित थीं । बड़े होने के बाद उस ने अपनी मां से यह कला सीखीं ।
उन्हों ने कहा , दस साल की उम्र में मैं ने दूसरों को कपड़े बनाते देखा , तब मुझे इस में बहुत दिलचस्पी पैदा हुई। फिर दूसरों ने मुझे सिखाना शुरू किया । दिलचस्पी पैदा होने की स्थिति में किसी चीज़ का सीखना आसान है । मुझे एक ही हफ्ते में यह कौशल प्राप्त हो गया था ।
लेकिन सुश्री वांग श्वेइ पींग जैसे श्रेष्ठ आदमी कम हैं । अधिकांश लोग एक महीने में लीचिन कपड़े की आरंभिक जानकारियां हीं प्राप्त कर सकते हैं । लीचिन कपड़ा बनाना कोई आसान काम नहीं है । क्योंकि मजदूर धरती पर बैठ कर ही करघा चलाते हैं । पर सुश्री वांग श्वेइ पींग ने कहा कि उन्हें ऐसा करने में विशेष दिलचस्पी है । कभी-कभी दिन भर काम करने के बाद भी थकावट नहीं हुई ।
उन्हों ने कहा , मैं जब भी सुन्दर-सुन्दर डिज़ानिंग देखती , तब काम करने में मुझे और मजा आता। काम करते हुए मुझे भूख और थकावट कभी महसूस नहीं हुई ।
सुश्री वांग ने संवाददाता को बताया कि वर्तमान में उन के गांव में पुराने मकानों का पुनः निर्माण किया जा रहा है । उन का मकान भी नव निर्मित है , कमरों की सजावट अभी तक नहीं की गयी है । पर खेतीबाड़ी से जब अवकाश मिलता है , तो वे लीचिन कपड़े बनाने काम में लग जाती है ।
सुश्री वांग श्वेइ पींग का जीवन दूसरी ली जातीय महिलाओं के जीवन का वर्णन ही है । वे खेती में काम करती हैं , पशुओं का पालन करती हैं , और जंगल में रबर पेड़ों की देखभाल करती हैं । और सभी कामकाज़ करने के बाद वे घर में लीचिन कपड़े बनाती हैं । लीचिन कपड़े बनाने में उन की दिलचस्पी है , और साथ ही उन्हें इस काम से आय भी होती है । महिलाएं आम तौर पर घर में बैठकर कंपनियों की डिज़ाइनिंग के मुताबिक कपड़े बनाती हैं , और कुछ महिलाएं कंपनी के कारखाने में भी काम करने जाती हैं । सुश्री वांग श्वेइ पींग ने भी प्रांत के जातीय लीचिन कपड़ा अनुसंधानशाला में काम किया है।
वहां विशेष तौर पर जातीय कलात्मक चीज़ों का अनुसंधान किया जाता है । इस में उत्पादित वस्तुएं अमेरिका और जापान आदि विदेशों में बेची जाती हैं । पहले मैं घर में लीचिन कपड़े बनाती थी , तब सौदागर घर में आकर हमारी चीज़ें खरीद लेते थे । वहां अनुसंधानशाला में हम ग्राहकों के डिज़ाइन के मुताबिक कपड़े बनाती थीं ।
सुश्री वांग श्वेइ पींग का कहना है कि वे एक माह में कई लहंगे बना सकती हैं और कई सौ य्वान कमा सकती हैं । लेकिन दूसरी महिलाएं व्यापारिक कंपनियों के सहारे सामूहिक तौर पर लीचिन कपड़े बनाती हैं । लीचिनफांग सांस्कृतिक विकास कंपनी उन में से एक है । कंपनी की अनेक शाखाएं हैं , जो महिलाओं को संगठितकर लीचिन कपड़ों का उत्पादन कर रही है । महिलाएं अपनी उत्पादित वस्तुओं की मात्रा के अनुसार वेतन लेती हैं । कंपनी में कार्यरत सुश्री लू श्याओ ह्वेई ने कहा कि गांववासी प्रति दिन चार घंटे काम कर एक माह में एक हजार य्वान कमा सकती हैं । और वे अपनी सभी चीज़ें पर्यटकों को नहीं , पर कंपनी को बेच सकती हैं , फिर कंपनी अपने सेवा जाल के जरिये उत्पादित वस्तुओं को देशभर के बाजारों में बेचती हैं।
अधिकांश लीचिन कपड़ों का परदेशों में विक्रय किया जा रहा है । और लीचिन कपड़े हाइनान प्रांत के विशेष उपहार माने जा सकते हैं । बाजारों में लीचिन कपड़ों का बहुत स्वागत होता है । कंपनी बिक्री की जिम्मेदारी उठाती है , और गांववासियों को सिर्फ कपड़े बनाने का काम बाकी रह जाता है।
सुश्री ली ईंग छ्वन भी कंपनी के कारखाने में काम करती हैं । उन की ड्यूटी सुबह साढ़े सात बजे से शाम को छह बजे तक होती है । उन्हों ने कहा कि उन्हें कारखाने में दूसरी बहनों के साथ काम करना पसंद है । क्योंकि घर में अकेले कपड़े बनाने से यह अच्छा है ।
हम ग्राहकों की मांग के अनुसार लीचिन कपड़े बनाती हैं । जैसा वे चाहते हैं , वैसा हम बनाती हैं । बहनों के साथ गीत गाते हुए काम करने में बड़ा मजा आता है ।
लेकिन आजकल लीचिन कपड़े बनाने के लिए आवश्यक विशेष करघे चलाने वाले कम होने के कारण लीचिन कला के विलुप्त होने का गंभीर खतरा मौजूद है । दो साल पहले हाइनान प्रांत के लीचिन कपड़े बनाने वाले कौशल को देश के राष्ट्रीय स्तरीय गैर-भौगोलिक सांस्कृतिक विरासतों में दाखिल कराया गया । इस के बाद लीचिन कला के प्रसारण को अधिकाधिक महत्व दिया गया है । वू-चि-शान पर्वत पर अस्सी वर्ष के बुजुर्ग से छह साल की लड़की तक बहुत सी महिलाएं लीचिन कला से आकर्षित हैं।
लीचिन कपड़े बनाने वाले कौशल के प्रसार को गांवों में गरीबी उन्मूलन के काम के साथ जोड़ा गया है । वू-चि-शान शहर के गरीबी उन्मूलन कार्यालय की प्रधान सुश्री ह्वांग श्वेइ मेई ने कहा ,
लीचिन कला के प्रसार से न सिर्फ जातीय परंपरा का विकास किया गया है , बल्कि किसानों को भी उत्पादन से अधिक आय प्राप्त हुई है । उन्हें इस मुद्दे से आर्थिक लाभ मिला है । उन्हों ने कहा कि स्थानीय सरकार ने विशेषज्ञों को संगठित कर बाजारों
की जांच करने और परंपरागत कौशल का विकास करने की योजना बनायी है । ली जातीय महिलायों की तीव्र उम्मीद है कि लीचिन कला का पीढ़ी दर पीढ़ी उत्तराधिकार और विकास किया जाएगा । वू-चि-शान पर्वत में रहने वाली सुश्री ह्वांग चिन ल्यैन ने कहा ,
मेरी आशा है कि ली जातीय संस्कृति का अच्छी तरह संरक्षण किया जाएगा , और अधिक लोग लीचिन कपड़े की कला सीखने के लिए आगे आएंगे , ताकि हमारी यह सांस्कृतिक विरासत खो न जाए। (श्याओयांग)