यह छोटा सा सुंदर शहर कोई चार सौ वर्ष पुरानी चारदीवारी के बीच खड़ा है। हम इस चारदीवारी के उत्तरी द्वार पर पहुंचे, तो म्याओ जाति की सजीधजी युवतियों ने पहाड़ी गीत गाकर हमारी अगवानी की। फंग ह्वांग शहर की आबादी तीन लाख से कुछ अधिक है, जिस का अधिकांश म्याओ और थुचा अल्पसंख्यक जातियों का है । इस शहर के हर कोने में जातीय पोशाक पहने म्याओ और थूचा जाति के लोग तो देखे ही जा सकते हैं, इन दोनों जातियों की वास्तुशैलियों में निर्मित झूलती इमारतें भी पायी जाती हैं।
फूंगह्वांग शहर का दौरा आधे घंटे में पूरा किया जा सकता है। इस शहर का पश्चिमी भाग में स्थित पुराना शहरी क्षेत्र सब से ध्यानाकर्षक है। 13वीं शताब्दी में निर्मित शहर की परम्परागत छवि व ऐतिहासिक पर्यावरण हवा व वर्षा के थपेड़ों की परवाह न करते हुए आज तक बरकरार है। शहर की कई संकरी गलियां, पुरानी दीवारें, प्राचीन भवन, घाट व मंदिर बड़े दर्शनीय हैं। हरेक गली-सड़क यहां पाये जाने वाले भूरे रंग के पत्थरों से बनी है। सड़क के किनारे लगभग सौ साल पुराने मकान सुव्यवस्थित रूप से खड़े हैं। रोचक बात यह है कि इन मकानों की वास्तुशैली एक सी नहीं है यों उन की छतों पर लगी काली खपरैलें और भूरी लकड़ियों की दीवारें एक ढंग की हैं। एक-दूसरे से सटे अपने ही ढंग के ये मकान एक असाधारण दृश्य बनाते हैं। शरद में यहां ढेरों पर्यटक आते हैं और चारों ओर बड़ी हलचल रहती है और बेशुमार मकानों वाली इन गलियों का वातावरण शांत रहता है।