2008-05-23 15:53:25

अपनी जान से विद्यार्थियों की रक्षा करने वाले अध्यापक

12 मई को चीन के स्छ्वान प्रांत की वनछ्वान कांउटी में जबरदस्त भूकंप आया, जिस से भारी हताहती हुई है। इसी दौरान विपदा ग्रस्त क्षेत्रों में नागरिकों को एक दूसरे को बचाने की कहानियां सुनायी दे रही हैं । आज के इस कार्यक्रम में मैं आप को सुनाऊंगी अपनी जान दे कर विद्यार्थियों की रक्षा करने वाले अध्यापकों की कहानियां ।

12 तारीख की दोपहर बाद 14 बजकर 28 मिनट पर स्छावन प्रांत की पेइछ्वान कांउटी के छ्वुशान कस्बे में स्थित हाईक्वांग गांव के हानलुंग आशा प्राइमरी स्कूल के 483 विद्यार्थी कक्षाओं में थे । एकाएक विनाशकारी भूकंप आया । आंशिक विद्यार्थी और अध्यापक कक्षा इमारतों से बाहर दौड़ कर मैदान में आ गए । लेकिन कुछ विद्यार्थी बाहर नहीं आ सके।

स्कूल के शिक्षा कार्य के प्रधान अध्यापक श्याओ श्याओछ्वान ने शीघ्र ही बाहर आए विद्यार्थियों व अन्य अध्यापकों को नज़दीक के पहाड़ की ओर दौड़ाया । मौजूदा विनाशकारी भूकंप से इस स्कूल के विद्यार्थियों में से किसी की भी मृत्यु नहीं हुई । इसी दिन तीसरे पहर विद्यार्थियों के परिवारजन अपने-अपने बच्चों को घर वापस ले गए । लेकिन शाम को पांच बजे तक बाकी 71 विद्यार्थियों के परिवारजन नहीं आए । स्कूल के अध्यापकों ने इन विद्यार्थियों की रात भर रक्षा की । उन की सुरक्षा के लिए अध्यापकों ने 71 विद्यार्थियों का नेतृत्व कर भूकंप क्षेत्र से सुरक्षित स्थल जाने का अभियान चलाया । स्कूल के एक अध्यापक का कहना है:

"रास्ते में पहाड़ के उपर से बड़े-बड़े पत्थर गिर रहे थे । वर्षा के कारण मिट्टी वाला रास्ता बहुत फिसलन भरा हो गया था और विवश होकर हमें रेंग कर आगे बढ़ना पड़ा ।"

इस तरह नौ अध्यापक और 71 विद्यार्थी पैदल सौ किलोमीटर का रास्ता तय कर पहाड़ी रास्तों से होकर अंत में राहत कर्मचारियों की सहायता से म्यानयांग पहुंचे । उन विद्यार्थियों में से सब से बड़े विद्यार्थी की उम्र 14 साल है, और सब से छोटे की उम्र सिर्फ़ पांच साल।

इन 71 विद्यार्थियों का नेतृत्व करने वाले नौ अध्यापकों में से चार अध्यापकों के परिजनों की भूकंप से मृत्यु हो गई । यहां तक कि एक अध्यापक के सात परिवारजनों की मौत हो गई । अनेक अध्यापकों का अपने परिजनों से साथ संबंध टूट गया । स्कूल के शिक्षा कार्य के प्रधान अध्यापक श्याओ श्याओछ्वान ने कहा:

"मेरे 81 साल के पिताजी की कोई खबर मुझे अब तक नहीं मिली है।"

इस प्रकार की प्रभावशाली कहानी तुच्यांगयान शहर के च्युय्वान मीडिल स्कूल में भी हुई । 12 मई को भूकंप आने के वक्त स्कूल के युवा अध्यापक फू पिन पहले की तरह विद्यार्थियों की कक्षा ले रहे थे। भूकंप आने के बाद अध्यापक फू पिन ने खुद बाहर भागने की बजाए विद्यार्थियों को भागने का निर्देश दिया । उन की कोशिश से क्लास के 76 विद्यार्थियों में से 56 बच गए । लेकिन अध्यापक फू खुद बाहर नहीं निकल सके। विद्यार्थियों की रक्षा के लिए 28 वर्ष के इस युवा अध्यापक ने अपनी जान अर्पित कर दी । जब राहत कर्मचारियों ने उन्हें इमारत के मलबे में से बाहर निकाला, तो अध्यापक फू के शरीर के नीचे कई विद्यार्थियों की लाशें भी मिलीं । राहत कर्मचारी ने कहा:

"संभवतः अध्यापक फू के दौड़ते समय इमारत ध्वस्त हो गयी । उस समय भी उन्हें विद्यार्थियों को बचाने का विचार आया होगा, इस लिए उन्होंने कई विद्यार्थियों को अपने शरीर के नीचे छुपा कर रक्षा करने की कोशिश की ।"

अध्यापक फू द्वारा बचाए गए विद्यार्थी ने रोते हुए कहा:

"अगर अध्यापक ने हमें नहीं बचाया होता, तो इस समय शायद मैं अस्पताल में होती या मर गई होती ।"

अध्यापक फू की पत्नि को इतना सदमा पहुंचा है कि उस की आंखों सेआंसू का एक भी कतरा नहीं निकला है । इस वर्ष की जनवरी में उन की शादी हुई थी।अभी तक उन के कोई संतान नहीं है । लेकिन अध्यापक फू की मां गौरवांवित महसूस करती हैं । उन्होंने अपने बेटे की कार्रवाई की प्रशंसा करते हुए कहा:

"हालांकि मेरे बेटे की मृत्यु हुई , पर फिर भी मुझ पछतावा नहीं है। क्योंकि उन्होंने 56 विद्यार्थियों को बचाया जिस से 56 माताओं को आशा और खुशी दी । मुझे अपने बेटे पर नाज है ।"

च्युय्वान कस्बे के इस मीडिल स्कूल में अनेकानेक प्रभावशाली कहानियां सुनाई पड़ रही हैं । भूकंप के आते ही अध्यापकों-अध्यापिकाओं ने विद्यार्थियों की रक्षा करने की हर संभव कोशिश की है।अध्यापक वांग चोच्युन ने कहा:

"अनेक अध्यापकों ने अपने विद्यार्थियों को बाहर दौड़ने को कहा, और वे खुद अंत में कक्षाओं से बाहर आए ।"

विद्यार्थी अध्यापकों के संरक्षण से अपनी जान बचा पाए । लेकिन पांच अध्यापकों ने अपनी जान अर्पित कर दी । इस प्रकार की कहानियां भूकंप ग्रस्त क्षेत्रों के स्कूलों में ज्यादा हैं ।

14 मई की सुबह 10 बजे भूकंप राहत कर्मचारियों ने भूकंप ग्रस्त क्षेत्र म्यानयांग स्थित नामपा प्राइमरी स्कूल में राहत कार्य करने के वक्त एक ऐसी अध्यापिका का पता लगाया, जिस इमारते के मलबे में मृत दबी पड़ी थी । लेकिन उन की गोद में पांच बच्चे थे । मरते-मरते भी उस अध्यापिका ने अंतिम क्षणों में विद्यार्थियों को बचाने के लिए मलबे का मुकाबला करते हुए अपने शरीर का प्रयोग किया । हालांकि उन की गोद में पड़े विद्यार्थी भी नहीं बच सके, फिर भी इस दृश्य को देखने वाले सभी व्यक्तियों की आंखों में आंसू भर आए ।

भूकंप आने के वक्त अध्यापकों और अध्यापिकाओं ने अपने साहस से विद्यार्थियों की रक्षा की । उन की भावना से विद्यार्थियों को जिंदगी भर लाभ मिलेगा ।