2008-05-19 10:27:28

सिंच्यांग में रह रहे रसिया जातीय संगीतकार श्री चांग चिनफू

 42 वर्षीय संगीतकार श्री चांग चिनफू सिंच्यांग स्वायत्त प्रदेश के छांग-ची जातीय नृत्य मंडल में संगीत-रचियता का काम कर रहे हैं । वे अपने संगीत के जरिये चीन और रूस के बीच मैत्रीपूर्ण भावना की कहानी सुना रहे हैं । उन की माता जी रसिया जातीय की हैं , और पिता जी हान जाति के हैं । चांग चिनफू की दादी वर्ष 1930 के दशक में अपने चीनी पति के साथ रूस से चीन आयीं। श्री चांग चिनफू द्वारा लिखित हमेशा की याद , और लाल रंग वाला गाउन जैसे दसेक गीतों में साहस,सदयता,दयालुता और धैर्य से रसिया दादी का वर्णन किया गया है ।

वर्ष 1990 में संगीतकार बनने का स्वप्न साकार करने के लिए श्री चांग चिनफू पेइचिंग स्थित चीनी केंद्रीय संगीत अकादमी में पढ़ने गये । ट्यूएशन फीस कमाने के लिए श्री चांग चिनफू को होटल में ही नहीं , सड़कों के किनारे कुर्सियों पर भी सोना पड़ा और सब से सस्ते भोजन से अपना गुज़ारा करना पड़ा । लेकिन दुर्भाग्यवश जब उन्हें अकादमी से भरती का पत्र मिला , तब वे चोरी का शिकार बन गए। उन के पास बचे सभी तीस हजार य्वान चोरी हो गए। इससे भी अधिक और दुख की घटना उन के साथ यह घटी कि उन के पिता जी के बीमार होने की खबर उन तक पेइचिंग में पहुंच गई । विवश होकर चांग चिनफू को वापस लौटना पड़ा । पर जब वे घर पहुंचे , पिता जी कई दिन पहले ही चल बसे थे । घर का गुज़ारा चलाने के लिए चांग चिनफू को अपने शौक संगीत को एक तरफ रखना पड़ा।

घर का गुज़ारा चलाने के लिए चांग चिनफू इधर-उधर काम करने लगे । वर्ष 1996 में उन्हों ने काफी धन जमाकर एक घर-सेवा कंपनी खोली । कंपनी की स्थिति अच्छी रही , चांग चिनफू के पास धन-राशि बढ़ने लगी । अब चांग चिनफू अमीर बन गए , उन के दिल में अनेक सालों से सुप्त संगीत का स्वप्न एक बार फिर पंख फैलाने लगा ।

एक बार जब चांग चिनफू उत्तर पश्चिमी चीन के शिआन शहर में गए , तो रेल गाड़ी में सवार होते समय उन की आंखों में सुन्दर थिएन-शान पर्वत का दृश्य घूमने लगा । प्राकृतिक दृश्यों से प्रेरित होकर चांग चिनफू ने तुरंत ही कलम पकड़कर गीत लिखना शुरू कर दिया । दस मिनट बाद ही गीत अशली---मेरी प्यारी जन्मभूमि की रचना हो गई । कज्ज़ाक जाति की कहानी पर आधारित यह गीत आधुनिक तत्वों के संयोग से बहुत मनोहर और दिलकश बन गया है ।

गीत में यह उल्लिखित हैः थिएन-शान पर्वत की घाटी बहुत सुन्दर है , आकाश में उकाब पंख फैलाते नज़र आते हैं , हरित घासमैदान पर सफेद रंग के तम्बू गड़े हैं , वहां बचपन में देखा गया मेरा वह स्वप्न और सुखमय जन्मभूमि ही है ।

इस के बाद अशली का नाम भी इस गीत के साथ जगह-जगह फैलने लगा । इस गीत ने अज्ञात अशली को सिंच्यांग में एक मशहूर जगह बना दिया । बहुत से उद्यमी गीत सुनने के बाद अशली में व्यापार करने आए हैं । इससे भी अशली क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए मंच स्थापित किया गया है।

अशली के सफल होने के बाद चांग चिनफू ने टिंग-चाओ की चंद्रिमा , पचास साल हो गये , सैनिक किसानों का लांगल, मयूर नदी का प्यार , पुनर्जीवित लाओ-लान लड़की जैसे अनेक प्रभावशाली गीत लिखे हैं, और इन की मशहूर संगीतकारों ने भी खूब प्रशंसा की है ।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओयांग)