2008-05-12 13:57:32

विकलांग चित्रकार त्साई छी-छिंग की कहानी

 आज के इस कार्यक्रम में हम आप को सिंच्यांग के एक विशेष चित्रकार श्री त्साई छी-छिंग,जिन का सिर्फ एक बायं हाथ सुरक्षित है , की कहानी सुना रहे हैं । उन की रचना 'हजार ड्रैगन' को वर्ष 2007 शांघाई बृहत मनोरंजन पार्क द्वारा सौंपा गया विशेष चिनिस पुरस्कार मिला है।

श्री त्साई का चित्र 'हजार ड्रैगन' 56 मीnटर लम्बा और एक मीटर चौड़ा है । इस पर प्राचीन काल के 2008 पुराने चीनी शब्द लिखे हुए हैं । ये दो हजार शब्द अलग-अलग हैं , पर उन का एक ही अर्थ है --- ड्रैगन । यह चित्र श्री त्साई छी-छींग ने साढ़े तीन साल के भीतर अपने बांए हाथ से बनाया है । 2008 शब्द लिखने का मतलब है पेइचिंग वर्ष 2008 ऑलंपियाड और 56 मीटर लम्बाई चीन की 56 जातियों की प्रतीक है ।

48 वर्षीय श्री त्साई छी-छींग सिर्फ 70 सेंटीमीटर लम्बे और 20 किलो वजन के हैं । उन की दो टांगें भी अपाहिज़ हैं , दायीं बांह बाएं हाथ के आधे भाग के बराबर है , और उन का दाईं बाहं भी गंभीरता से सिकुड़ी हुई है । वह जन्म से ही इस तरह की अपाहिज़ बीमारी के शिकार हैं । श्री त्साई छी-छींग के बड़े भाई ने कहा, त्साई छी-छींग की बीमारी बहुत छुटपन से ही शुरू हो गई थी ।

त्साई छी-छींग के सभी बांहें, टांगें जन्म से ही साधारण नहीं थीं । बचपन से ही वे बहुत कमजोर थे । उन का बचपन विपत्तियों में ही बीता । और किसी भी छोटी सी चोट से ही उन की हड्डियां टूटने का खतरा रहता था । एक बार जब मेरा एक सहपाठी पलंग पर बैठा ,तो असवाधानी से पलंग पर बैठे हुए मेरे भाई पर ही बैठ गया, । मेरे भाई की घुटने की हड्डी एकदम टूट गई ।

श्री त्साई छी-छींग का मर्ज़ सिंच्यांग में बहुत कम दिखाई पड़ता है । कुछ लोगों ने उन के मां-बाप को यह समझाया कि इस विकलांग शिशु को न पालें । पर मां-पाप ने यह जाना कि लड़के का शरीर ही तो अपाहिज है, दिमाग नहीं । इसलिए हमें अवश्य इस की जान की सुरक्षा करनी चाहिए । जब वह छोटा था तो सहारा ले कर खड़ा हो जाता था, फिर समय बीतने के साथ-साथ दिन ब दिन उस की हालत बिगड़ती गई । श्री त्साई छी-छींग ने अपनी दुखभरी आपबीती का सिंहावलोकन करते हुए कहा ,

जब मैं बहुत छोटा था , तब मैं बड़े भाई की पीठ पर सवार होकर बाहर जाता था , तब मेरे कानों में कुछ तानों की आवाज़ें सुनाई पड़ती थीं । कुछ ने यह बात भी कही कि मेरे जैसे विकलांग कुछ भी नहीं कर सकते , सिर्फ परिवार पर बोझ हैं । ऐसी बातें सुनने के बाद मेरा दिल कितना दुखी होता था,मैं बता नहीं सकता । घर वापस आने के बाद किसी के साथ बातचीत न कर मैं कोने में खामोश बैठ जाता । मां पूछती , तुम कैसे हो , कोई तकलीफ है? मैं चुप रहता , आंखों से आंसू बहने लगते। उस दिन को मैं जिंदगी भर याद रखूंगा ।

बीमारी के कारण त्साई छी-छींग स्कूल नहीं जा सका । जब वह देखता कि भाई-बहन बैग लेकर स्कूल जा रहे हैं , तब त्साई छी-छींग का दिल ईर्ष्या और दुख से भर जाता । मां-बाप ने त्साई छी-छींग का इलाज करने के लिए उसे जगह-जगह के बड़े अस्पतालों में दिखाया, और बार-बार उसे यम के हाथों से वापस छीना ।

एक दिन बड़े भाई ने त्साई छी-छींग को एक रूसी उपन्यास 'इस्पात की कैसी बनावट'दिया । उपन्यास में विकलांग वीर की कहानी पढ़कर त्साई छी-छींग को बहुत प्रेरणा मिली । उस ने सोचा कि एक दिन मैं भी एक वीर आदमी बनूंगा । मां-बाप ने भी त्साई छी-छींग का हौंसला बढ़ाना जारी रखा ।

श्री त्साई छी-छींग ने कहा , उस समय माता-पिता ने मुझे घर में आत्म-शिक्षा लेने को प्रेरित किया । उन्हों ने मेरे लिए बहुत सी पाठ्य पुस्तकें और चित्र खरीद कर दिए । पिता जी ने मुझे जीवन का तत्व-ज्ञान बताया ।

पिता जी के शिक्षण और प्रोत्साहन से त्साई छी-छींग में जीने का साहस उत्पन्न हुआ । फिर उसने बहुत मेहनत से चित्रकला सीखना शुरू किया ।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े। (श्याओयांग)