पूर्व से पश्चिम की ओर जाती इंग चेह सड़क की चौड़ाई 80 मीटर से अधिक है और यह थाईय्वान को उत्तर व दक्षिण दो भागों में बांटती है। इस नवनिर्मित सड़क पर खड़े होकर चारों तरफ नजर दौड़ाने पर आप प्राचीनता व आधुनिकता के मेल को महसूस कर सकते हैं। शहर के पहली मई चौक पर गगनचुम्बी आधुनिक इमारतों की कतार खड़ी है तो उस के उत्तर-पश्चिमी भाग में लाल दीवारों व हरे खपरैलों वाला प्राचीन छुन यांग भवन भी ज्यों का त्यों अपनी जगह स्थित है। कोई हजार वर्ष पुराना यह भवन चीन के ताओ पंथ का एक मठ है। कई आंगनों वाला यह प्राचीन मठ चीन की विशेष वास्तुकला व उद्यान कला का नमूना माना जाता है। यहां पहुंचकर आप स्वयं को शोर-शराबे से दूर एक शांतिमय वातावरण में पाते हैं।
इंग चेह सड़क से पश्चिम की ओर आगे बढ़ने पर आप को प्राचीन शैली वाली सड़क देखने को मिलेगी। ल्यू श्यांग मार्ग नामक इस सड़क पर शहर की कई पुरानी प्रसिद्ध दुकानें ही नहीं हैं अनेक आधुनिक डिपार्टमेंट स्टोर भी खड़े हैं। यहां आप आधुनिक तरीके से बड़े आराम से खरीदारी कर सकते हैं और चाहें तो पुरानी दुकानों में शहर के विशेष पकवानों और खास मनोरंजक कार्यक्रमों का मजा भी ले सकते हैं। कहा जा सकता है कि थाईय्वान आने वाले हर किसी व्यक्ति को यहां का माहौल रोचक लगता है।
थाईय्वान की सड़कों पर घूमने में बड़ा मजा आता है। सड़कों के किनारे उगे हरेक पेड़ पर एक तख्ती लगी हुई है, जिस पर उस पेड़ की उम्र तक अंकित है। ऐसा मैं ने पहली बार यहीं देखा। शहर की छोटी गलियों में आधुनिक तरीके से सजी पुस्तकों की दुकानें भी हैं। इन दुकानों में संगीत की मधुर लय के बीच पुस्तक खरीदने पर मन खुश होता है। इतना ही नहीं, यहां के कई छोटे रेस्त्राओं में बहुत स्वादिष्ट खाना भी मिलता है।
थाईय्वान के इतिहास का शहर के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित चिन मंदिर से घनिष्ठ संबंध है। इस मंदिर का हर पेड़ इस शहर की प्राचीनता की याद दिलाता है। यहां खड़े कोई दो हजार वर्ष पुराने देवदार के पेड़ आज भी हरे-भरे दिखते हैं और थाईय्वान की प्रत्येक ऋतु के साक्षी रहे हैं। थांग राजवंशी सम्राट ली श मिन द्वारा सातवीं शताब्दी में लिखित शिलालेख यहां आज भी सुरक्षित है। इस में इस सम्राट के थाईय्वान में शक्तिशाली थांग राजवंश की स्थापना करने के बुलंद हौसले का विवरण मिलता है। सुंग राजवंश के सम्राट द्वारा कई हजार वर्ष पहले अपनी मां की याद में बनवाये गये मातृ भवन में स्थापित 44 सुंदरियों की मूर्तियां अब भी बड़ी सजीव लगती हैं।