2008-04-29 10:05:28

रेशम मार्ग पर ऐतिहासिक तथ्य तलाशने वाला अन्वेषक

सिंच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश में अभी तक कुल 28 पुरानी भाषाओं का पता लगाया गया है । लेकिन प्राचीन काल में इस्तेमाल की जाने वालीं ये भाषाएं अधिकांशतः विलुप्त हो चुकी हैं । सन 1970 के दशक से ही सिंच्यांग में फैले रेशम मार्ग का अनुसंधान करने वाले चीनी विद्वान श्री ली काई ने प्राचीन काल के रेशम मार्ग के हरेक कोने में जाकर इन पुरानी भाषाओं की तलाश कर गहराई में अनुसंधान किया है । इस के अतिरिक्त उन्हों ने सिंच्यांग में रास्ता खोने के 750 दिन , और रेशम मार्ग की खोजयात्रा आदि दस किताबें भी प्रकाशित की हैं ।

74 वर्षीय श्री ली काई देखने में पतले और काले हैं । शराब इस बुजुर्ग आदमी की प्रेमिका है। अब भी वे रोज़ एक बोतल शराब पीते हैं , और शराब के साथ वे अकेले रेतीली-जगहों में दिन भर घूमते रहते हैं । श्री ली काई मिलनसार आदमी हैं , जगह-जगह उन की हंसी की आवाज़ सुनाई देती रहती है । एक बार उन्होंने हाथ में लाठी लेकर कुछ युवकों के साथ रेतीले स्थानों का दौरा भी किया। उन्हों ने अपने को एक उपनाम भी दिया है—ऊंट ली ।

इधर के वर्षों में श्री ली काई ने सिंच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के इतिहास में मौजूद रहे पुराने राज यू-थो का गहराई से अनुसंधान किया , और इस पुरानी राज सभ्यता के बहुत से गुप्त अध्याय खोज निकाले । पुराने यू-थो राज की जानकारियां पाने के लिए श्री ली काई दसेक बार रेतीले-स्थानों का दौरा कर चुके हैं ।

तीस साल पहले श्री ली काई ने, जब वे सिंच्यांग के काशी क्षेत्र के सांस्कृतिक अवशेष प्रबंधन शाला में काम करते थे प्रथम बार रेतीले स्थान का दौरा किया था । रेतीले स्थान में उन्हें मिट्टी से बनी दिवारों के बहुत से अवशेष तथा रेत में फैली बर्तनों की ठिकरियां मिलीं। तब उन के दिमाग में उलझन पैदा हुई कि यहां क्यों इतने अवशेष छिपे हैं ? और इतने बर्तन ठिकरियां किस के लिए हैं ?

कुछ समय बाद श्री ली काई ने स्थानीय लोगों से यह जानकारी पायी कि कुछ लोगों ने इस रेतीले स्थान पर सोने,जवाहरात से भरे एक बड़े मिट्टी-बर्तन के लिए खुदाई की थी । यह बात सुनकर श्री ली काई की आंखों में चमक आ गई । उन्हों ने सोचा कि इसी मिट्टी बर्तन के जरिये महान पुरावशेषों का पता लगाया जाएगा । अथक प्रयासों के जरिये उन्हों ने इस मिट्टी बर्तन की खुदाई करने वाले एक किसान का पता लगा ही लिया ।

श्री ली काई ने याद करते हुए बताया कि एक दिन एक पदाधिकारी ने मुझ से पूछा , थूमूझोक कस्बे में सोने से भरे एक मिट्टी बर्तन की खुदाई की गयी थी , किसान सब काम छोड़कर उसे देखने गये । यह कहानी सुनते ही मेरे मन में विचार आया कि पुरातत्व-विज्ञान की दृष्टि से यह जरुर मूल्यवान होगा । इसलिए मैं एक गधा-गाड़ी से वहां गया ।

पहेली बुझाने के लिए श्री ली काई और उन के नेतृत्व में कुछ विद्वान रेतीले स्थान के लिए रवाना हुए । ब्रेड और फल उन का खाना रहा , और कई दिन रास्ता नापने के बाद आश्चर्यजनक दृश्य सामने आये ।

हमारी आंखों के सामने दर्जनों बड़े मिट्टी के बर्तन ,जिन का आधा भाग ज़मीन की सतह के ऊपर उभरा हुआ था , और आधा मिट्टी के नीचे छिपा हुआ था,दिखाई दिए । ये वहीं चीज़ें हैं , जिन की मैं ने बार-बार तलाश की थी , पर बार-बार असफल रहा था । मेरा अनुमान है कि इस सब को रेत के नीचे छिपाया गया था । पर हवा की वजह से वे एक बार फिर मिट्टी से ऊपर उभर आए ।

उस समय ली काई का दिल धक-धक करने लगा । अपनी भावना को दबाकर उन्हों ने रेत में छिपे इन बर्तनों की खुदाई करना शुरू किया । अंत में उन्हों ने कुल 24 बड़े बर्तनों को जमीन में से बाहर निकाल लिया । उन में एक बर्तन का व्यास पचास सेंटीमीटर चौड़ा था , जिस में सौ किलोग्राम से अधिक पानी भरा जा सकता था । इस बर्तन के बाहर काले रंग की सजावट भी थी , और इस का आकार गोल था । लेकिन मिट्टी में एक हजार वर्ष छिपकर बाहर निकलने के कुछ ही मिनट बाद, यह बर्तन अचानक फट गया । यह देखकर श्री ली काई के दिल को बहुत ठेस पहुंची,और अवशेषों के साथ भी ऐसा न हो इसलिए उन्हों ने दूसरे बर्तनों को मिट्टी में दबा ही छोड़ दिया । फिर वे इस रेत के भीतर रास्ता नापने लगे । और कुछ समय बाद उन्हों ने कथित 'चूंग-थि-मू' का पता लगाया । वेवुर जातीय भाषा में 'थि-मू' का मतलब है स्तूप , जबकि 'चूंग-थि-मू' प्राचीन काल में रेशम मार्ग पर राजदूतों , सैनिकों , अधिकारियों और भिक्षुओं का सत्कार करने का स्थल है । इस रेत में कुल पांच 'थि-मू' का पता लगाया गया है । खबर प्रकाशित होने के तुरंत बाद रेशम मार्ग के अनुसंधानकर्ताओं का ध्यान इस आश्चर्यजनक जगह की ओर गया ।

इधर के वर्षों में श्री ली काई ने रेत का अनेक बार दौरा किया है। उन्होंने खुद पता लगाए अवशेषों को थूमूझोक संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखा । साल दर साल अथक अनुसंधान करके उन्होंने यह प्रमाणित किया कि ये अवशेष यहां प्राचीन काल में मौजूद पुराने यू-थो राज के हैं । इस बात की चर्चा करते हुए सिंच्यांग के शी-ह-ची विश्वविद्यालय के सिंच्यांग अनुसंधानशाला के एसोशिएट प्रोफेसर ह-हान-मिन ने कहा , उन्हें इतिहास शास्त्र पसंद है । ऐतिहासिक तथ्यों की खोज में लगने के कारण उन्हें अनेक ताज़ी सामग्रियां प्राप्त हुई हैं । इतिहास के प्रति श्री ली काई की अपनी अकेली समझ है । मेरा ख्याल है कि बहुत से सवालों पर उन की समझ सही है , और बहुत मूल्यवान भी।

रेशम मार्ग का अनुसंधान करने के लिए इससे जुड़ी भाषाओं का ही अनुसंधान करना चाहिए । पर श्री ली काई को सब से अधिक खेद इस बात का है कि सिंच्यांग स्वायत्त प्रदेश की बीसियों किस्म की भाषाएं लुप्त हो गई हैं । आज कोई भी आदमी इन पुराने शब्दों का अनुवाद भी नहीं कर सकता है । श्री ली काई ने इस संदर्भ में अथक प्रयास किया , उन्हों ने अवशेषों से प्राप्त इन पुराने शब्दों का गहरा अनुसंधान किया । अपने काम के बारे में श्री ली काई ने कहा , रिटायर होने के बाद मैं सिंच्यांग की पुरानी भाषाओं का अनुसंधान करूंगा , और इस अनुसंधान के आधार पर कानसू और शानशी प्रांत में पता लगाई पुरातत्व सामग्री के आधार पर एक किताब लिखूंगा , जिस का शीर्षक होगाः प्राचीन काल में शी-छिआंग की संस्कृति का अनुसंधान ।

क्योंकि प्राचीन काल में पश्चिमी चीन के शानशी , कानसू , छींगहाई तथा थिएनशान पर्वत से , मध्य एशिया के अफगानिस्तान तक छिआंग जाति हमेशा बहुत क्रियाशील रही थी । इस जाति का अनुसंधान करने के जरिये पश्चिमी चीन , रेशम मार्ग तथा इस विशाल क्षेत्र में विभिन्न जातियों के सम्मिलित होने का इतिहास साफ होगा । (श्याओयांग)