प्रिय मित्रो , मूतू कस्बे का दौरा करने से पहले मुझे लगता है इस के नाम के पीछे छिपी कहानी जानना जरूरी है। कहते हैं, कोई दो हजार वर्ष पहले यहां ऊ व य्वे नाम के दो राज्य थे। एक बार दोनों के बीच लड़ाई हुई। इसमें ऊ ने य्वे राज्य को परास्त कर दिया। य्वे राज्य के राजा ने शीश नाम की सुंदरी ऊ राज्य के राजा को भेंट की। यह सुंदरी ऊ राज्य के राजमहल में कई सालों तक जासूसी करती रही। ऊ राज्य के राजा को शीश की असलियत का पता नहीं था। उसे इस सुंदरी से बहुत लगाव था। इसलिए राजा ने उसके लिए लिंग येन शान पर्वत पर विशेष तौर पर क्वान वा कूंग नामक विश्राम महल भी बनवाया। ऊ राज्य के राजा ने सुंदरी शीश को खुश करने के लिए यह आदेश भी जारी किया कि क्वान वा कूंग विश्राम महल के निर्माण में जितनी भी लकड़ी की जरूरत होगी , वह सब य्वे राज्य से खरीदी जायेगी। इससे लिंग येन शान की तलहटी से निकलने वाली कांगतू नदी में इतनी लकड़ियां एकत्र की गईं कि उनसे नदी का पानी तीन सालों तक रुक गया। लकड़ियों से नदी का पानी रोके जाने से ही इस का नाम मूतू पड़ा।
शीश क्वानवाकूंग विश्राम महल में अपनी दासियों के साथ मुंह धोने व नहाने के लिए जिस पानी का प्रयोग करती थी, वह भी लिंग येन शान पर्वत से निकलने वाली एक छोटी नाली में विलीन हो कर बहता था। अतः समय बीतते-बीतते इस नाली का पानी महकने लगा और स्थानीय लोग इसे महकदार या श्यांगशी पुकारने लगे। धीरे-धीरे यह महकदार नाली मूतू कस्बे का उपनाम बन गयी। महकदार नाली के अतिरिक्त कस्बे में चीन की प्रथम मानवकृत नहर शू च्यांग भी है। मूतू के प्रधान वांग वू मिन ने बताया कि कस्बे में हरेक नदी और पुल के पीछे एक सुंदर किम्वदंती छिपी हुई है।