चीन एक बड़ा कृषि-प्रधान देश है । लम्बे समय में देश और सरकार कृषि, गांव और किसान को महत्व देते हैं । जमीन कृषि और गांव के विकास व उत्पादन में प्रमुख महत्वपूर्ण तत्व है । जबकि खेती का कार्य करने वाले सुयोग्य व्यक्ति कृषि, गांव और किसान के सवाल में सब से सक्रिय व सब से कूंजीभूत तत्व है । इधर के वर्षों में चीन ने कृषि समर्थन के लिए सिलसिलेवार उदार नीतियां बनायीं हैं और चीनी कृषि का जोरदार विकास हो रहा है । इस तरह जमीन अब एक बार फिर अनेक सुयोग्य तकनीकी व्यक्तियों को आकर्षित कर रही है । आज के इस लेख में आप को परिचय दिया जाएगा एक विश्वविद्यालय के विद्यार्थी की कहानी का । वे सुखी शहरी जीवन से विदा ले कर गांव में वापस लौट कर आत्म सृजन कर रहे हैं और स्थानीय किसानों को समृद्धि के रास्ते पर ले जाने में उन्हें मदद दे रहे हैं । उन का नाम है मङ श्यानल्यांग ।
38 वर्षीय मङ श्यानल्यांग ने कभी नहीं सोचा था कि विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद वे एक बार फिर जन्म स्थान वापस लौट कर गांव में एक सुअर पालने वाला किसान बनेंगे । बाल्यावस्था में उन की जन्मभूमि में बहुत पिछड़ापन था, यातायात की सुविधा नहीं थी और किसानों का जीवन गरीबी से भरा था । उस समय तीस से ज्यादा उम्र वाले युवाओं के लिए किसी लड़की के साथ शादी करना भी मुश्किल बात थी । युवावस्था की चर्चा में श्री मङ श्यानल्यांग ने भाव विभोर होकर कहा:
"उस समय हमारे गांव का यातायात बहुत खराब था और गरीबी भी थी। यहां तक कि किसी लड़की के साथ शादी करना भी मुश्किल था । मेरे माता-पिता ने मुझे अच्छी तरह पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि एक किसान बन कर मैं जीवन को बदल सकूं ।"
गरीबी से भरे गांव से विदा ले कर और शहर में जीवन बिताने के लक्ष्य को मूर्त रूप देने के लिए मङ श्यानल्यांग को बड़ी मेहनत से पढ़ना पड़ा। वर्ष 1988 में उन्होंने शानतुंग प्रांत की राजधानी ची नान के विश्वविद्यालय से प्रमाण-पत्र प्राप्त किया और बाद में वे इस विश्वविद्यालय में दाखिल हो गए । मङ श्यानल्यांग गांव के इतिहास में विश्वविद्यालय में विद्यार्थी बनने वाले दूसरे व्यक्ति थे। वे शीघ्र ही प्रांत की राजधानी चिनान पहुंच कर अपना शहरी जीवन बिताने लगे । इस की चर्चा में श्री मङ श्यानल्यांग ने कहा:
"गांव में रहने वाले बच्चे सभी विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के इच्छुक होते हैं । वे गांव छोड़ कर शहर जाना चाहते हैं । पिछले कई वर्षों में मेरे माता-पिता ने मेहनत से काम करते हुए मेरी पढ़ाई के लिए पैसे जमा किए। उन की भी आशा थी कि मैं शहर में जाकर जीवन बिताऊंगा । जब मैंने विश्वविद्यालय का दाखिला-पत्र प्राप्त किया तो मैं बहुत उत्तेजित हो उठा और मुझे बड़ी खुशी हुई ।"
चिनान शहर के विश्वविद्यालय में चार वर्षों का जीवन जल्दी ही गुज़र गया । वर्ष 1992 में विश्वश्विद्यालय से स्नातक होने के बाद श्री मङ श्यानल्यांग शानतुंग प्रांत के वेइफ़ांग शहर के एक मिट्टी बर्तन कारोबार में एक तकनीकी मज़दूर बन गए । तभी उन का शहरी जीवन औपचारिक तौर पर शुरू हुआ । उन्होंने अपने कार्यजीवन में प्रथम माह के वेतन को जन्मभूमि में अपने माता-पिता को भेज दिया और उन्होंने इस से खाने की खूब चीज़ें खरीदीं । इसे देख कर गांव के अन्य गाववासियों ने अपने-अपने बच्चों को प्रोत्साहन देकर मङ श्यानल्यांग से सीखने को कहा । श्री मङ श्यानल्यांग का कहना है:
"यह वर्ष 1992 की बात थी । उस समय मेरा वेतन सिर्फ़ एक हज़ार चीनी य्वान था । लेकिन ये पैसे हमारे गांव वासियों की आधे साल की आय के बराबर थे । उस समय मैं बहुत संतुष्ट था ।"
शहर में काम करने के कई साल बाद मङ श्यानल्यांग को आशा है कि वे और ज्यादा योगदान कर सकेंगे । चीन में सुधार और खुलेपन के गहन होने और कृषि, किसान और गांव के सवाल पर देश का ज्यादा ध्यान केंद्रित होने के चलते मङ श्यानल्यांग को पता चला है कि गांव में विशाल मौके मौजूद हैं । इस तरह वे वेइफ़ान शहर के मिट्टी बर्तन कारोबार को छोड़कर एक चारा खारखाने में काम करने लगे । तभी से उन का और पशु पालक किसानों के साथ संपर्क शुरू हुआ ।
गत शताब्दी के नब्बे वाले दशक के अंत में चीन ने किसानों को पशु पालने के लिए प्रोत्साहित किया । संजीदगी के साथ सोचविचार करने और विस्तृत जांच पड़ताल व अनुसंधान करने के बाद मङ श्यानल्यांग ने जन्मभूमि में वापस लौट कर सुअर पालने का फैसला किया । इस निर्णय का उन के रिश्तेदारों ने कड़ा विरोध किया । यहां तक कि कुछ लोग उन का मज़ाक उड़ाने लगे। लेकिन मङ श्यानल्यांग अपने विचार पर डटे रहे, वे दृढ़ता के साथ जन्मभूमि अपने गांव वापस लौटे और सूअर पालने वाले किसान बन गए । इस की चर्चा में मङ श्यानल्यांग ने कहा:
"वापस लौटने के बाद लोगों की समझ में नहीं आया और कुछ लोगों ने मेरा मज़ाक उड़ाया, उन्हें लगता था कि सूअर पालने वाला व्यक्ति असफल ही होगा । लेकिन मुझे मालूम था कि कुछ किसानों ने सूअर पाल कर अच्छी आय प्राप्त की थी । मेरा विचार है कि मैं ने विश्वविद्यालय में चार साल पढ़ा और मुझे तकनीक का पता है । कोशिशों के जरिए मैं अवश्य ही उन से बेहतर करुंगा । उस समय स्थानीय सरकार और गांव के नेताओं ने मुझे जमीन दी और मेरा समर्थन किया ।"
कृषि और समुन्नत वैज्ञानिक ज्ञान को जोड़ कर देश व सरकार के समर्थन से मङ श्यानल्यांग ने सूअर पालने में बड़ी सफलता प्राप्त की । चारा बनाना, सूअर का स्वास्थ्य, संबंधित रोग विरोधी आदि क्षेत्रों को मङ श्यानल्यांग ने सुनिश्चित किया । एक ही साल में उन के पास दो हज़ार सूअर हो गए, जिन से उन्होंने दस लाख य्वान की आय हासिल की । धीर-धीरे गांव के आसपास के सूअर पालने वाले किसान उन से सीखने आने लगे। पहले उन का मज़ाक करने वाले लोग भी उन का सम्मान करने लगे । गांव वासियों ने अपने बच्चों को मङ श्यानल्यांग से सीखने को कहा ।
समृद्ध हो रहे मङ श्यानल्यांग जन्मभूमि के गांववासियों को नहीं भूले। वे स्थानीय किसानों का नेतृत्व कर सामूहिक समृद्धि के रास्ते की खोज में लगे हुए हैं । कुछ माह पूर्व चीन में《किसान पेशावर सहयोग सोसाइटी कानून》लागू किया गया । इस से मङ श्यानल्यांग को नया विचार सूझा। उन्होंने किसान सूअर पालन सोसाइटी की स्थापना की और स्थानीय 160 किसानों का नेतृत्व कर पारिस्थितिकी सूअर पालन का काम शुरु किया। श्री मङ श्यानल्यान का कहना है कि वर्तमान में सरकार पशु-पालन कारोबार के समर्थन में जोर देते हुए सूअर पालने वाले किसानों को भत्ता देती है । एक सूअर पालने से पचास य्वान प्राप्त होते हैं । इस के अलावा स्थानीय सरकार ने सूअर फार्म के सुधार व विस्तार के लिए उन्हें दो लाख य्वान की धनराशि प्रदान की । मङ श्यानल्यांग ने कहा कि अब देश की नीति अच्छी से अच्छी हो रही है ।
"फिलहाल हमारे यहां के पशुपालन विभाग ने मेरे पशु उत्पादों को ग्रीन उत्पादन का प्रमाण-पत्र दिया है। इस के बाद मेरे फ़ार्म के सूअर का दाम बढ़ गए । अब सूअर फार्म वाली भूमि से पैदा हुआ मुनाफ़ा साल ब साल बढ़ रहा है ।"
श्री मङ श्यानल्यांग का विचार है कि अपनी जन्मस्थल की भूमि बहुत विशाल है । यहां विकास के अनेक मौके मौजूद हैं । भूमि पर निर्भर रहकर एक वास्तविक किसान बनना उन का अविचल विकल्प है ।