जी हां, बहुत से पर्यटक क्वेलिन का दौरा करते समय इस शहर के परम्परागत स्याही चित्र जैसे विशाल प्राकृतिक दृश्यों का पुल सा बांध लेते हैं। यहां की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इस नदी के आसपास जितने भी छोटे-बड़े पर्वत खड़े हैं, सब के सब साल भर हरे-भरे और स्पष्ट दिखते हैं। इतना ही नहीं यहां नदी, पर्वतों और शहर के बीच कोई सीमा भी नहीं नजर आती। यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि हम शहर के भीतर खड़े हैं या पर्वतों के बीच। पर्यटक को यहां किसी विशेष पर्यटन स्थल पर जाने की जरूरत नहीं रह जाती क्योंकि शहर के किसी भी कोने में ली च्यांग नदी का अद्भुत सौंदर्य महसूस किया जा सकता है। वास्तव में यहां का मानवीय व प्राकृतिक दृश्य बड़े अजीब ढंग से सामंजस्य लिये हुए है।
ली च्यांग नदी के किनारे खड़ा हाथी-सूंड़ पर्वत क्वेलिन का प्रतीक माना जाता है। यह देखने में एक ऐसा भीमकाय हाथी जान पड़ता है, जो अपनी सूंड़ से नदी का पानी पी रहा हो। इस भीमकाय हाथी की सूंड़ व शरीर के बीच एक बड़ी गोलाकार गुफा है। लीच्यांग का पानी इसी गुफा से होकर आगे बहता है। पूर्णिमा की रात यदि आप दूर से श्यांगपी शान यानी हाथी-सूंड़ पर्वत को देखें, तो इस बड़ी गोलाकार गुफा की परछांई नदी के पानी में साफ-साफ देख सकेंगे और यह आभास कर पायेंगे मानो आकाश व पानी पर एक नहीं, कई सुंदर चांद एक साथ चमक रहे हों। यह दृश्य क्वेलिनवासियों के बीच हाथी-सूंड़ पर्वत जल, और चांद के अनोखे दृश्य के रूप में चर्चित है।
कहते हैं कि बहुत समय पहले हाथी देवताओं का एक झुंड स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर पहुंचा। भटकते- भटकते वह क्वेलिन शहर में प्रविष्ट हुआ और यहां के अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य से इतना प्रभावित हुआ कि यहां से वापस लौटने का नाम ही नहीं लिया। स्वर्ग के राजा ने उसे वापस बुलाने के लिए कई आदेश जारी किये, तो अंत में इस झुंड के एक हाथी को छोड़कर अन्य सभी हाथी स्वर्ग वापस चले गये। यह हाथी क्वेलिन के अद्भुत प्राकृतिक दृश्य से वाकई मोहित हो गया था। स्वर्ग के राजा ने जब यह बात सुनी, तो वह आग बबूला हो उठे और उन्होंने एक तेज तलवार से इस हाथी की पीठ पर वार कर उसे मार डाला और हमेशा के लिए ली च्यांग के पास खड़ा कर दिया।