2008-03-17 15:14:48

वेवूर भाषा में अनुवाद कार्य में लगे चीनी विद्वान चांग होंग छाओ

चीन की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम सुनने के लिए आप का हार्दिक स्वागत । सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में वेवूर भाषा में अनुवाद का काम करने वाले चीनी विद्वान श्री चांग होंग छाओ काफी मशहूर हैं । ज्यादा से ज्यादा लोगों को वेवूर साहित्य से अवगत कराने के लिए वे जिन्दगी भर वेवूर भाषा में अनुवाद का काम करते रहें । उन्हों ने जातीय सांस्कृतिक आदान प्रदान में असाधारण योगदान किया । श्री चांग हों छाओ सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान संघ के पूर्व उपाध्यक्ष है , जिन्हों ने पिछली आधी शताब्दी के समय में करोड़ शब्दों की वेवूर भाषी साहित्य रचनाओं और लेखों का हान भाषा में अनुवाद किया और चीन की अन्य जातियों के लोगों को वेवूर साहित्य का विस्तृत परिचय किया । चीन की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम के अन्तर्गत सिन्चांग का दौरा श्रृंखला में आज आप सुनेंगे श्री चांग होंग छाओ की कहानी ।

वर्ष 2001 में श्री चांग होंगछाओ रिटायर हो गये । फिर भी वे रोज दफ्तर जाया करते हैं , क्योंकि दफ्तर में ऐसे बहुत से अनुवाद के काम शेष रहे हैं , जिन्हें पूरा करने के लिए उन का इंतजार हो रहा है । श्री चांग होंगछाओ को अनुवाद के काम में असीम लगाव है , उन से अनुवाद का काम कभी नहीं रूका । 2001 में रिटायर होने के बाद अब तक वे बीस लाख शब्दों की वेवूर साहित्य रचनाओं का अनुवाद कर चुके हैं।

फिलहाल श्री चांग होंग छाओ का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है , वे बहुत पतले दुबले बन गए और चेहरे का रंग पीला पड़ गया। वास्तव में वे गंभीर एट्रॉफिक अर्थरिटिस् रोग से पिड़ित हैं और इस साल लगातार छै सात महीनों तक खाने का एक कौर करने तक भी असमर्थ थे और शरीर का वजन भी 69 किलोग्राम से घट कर 52 किलो रह गया और इस दौरान उन का जीवन दुध के सेवन पर आश्रित रहा था । लेकिन बीमारी पड़ने के दौरान जब कभी उन्हें शरीर में थोड़ी शक्ति आयी महसूस हुई , तो वे अवश्य पलंग से उठ कर मेज के पास बैठ कर वेवूर साहित्य का अनुवाद करने में जुट जाते थे। बीमारी से वे कभी नहीं झूकते।

श्री चांग होंगछाओ का जन्म वर्ष 1939 में उत्तर पश्चिम चीन के श्यानसी प्रांत की शांग आन काऊंटी में हुआ । बचपन में ही वे घर के कामकाज में मां बाप की मदद करते रहे , कठोर जीवन से उन में कड़ी मेहनत करने तथा कठिनाइयों से जूझने का अद्मय चरित्र संपन्न हुआ। उन के स्वभाव में दृढ़ संकल्प और अभेद्य इच्छा शक्ति निहित है । इस की चर्चा करते हुए श्री चांग होंगछाओ ने कहाः सर्दियों की सुबह बहुत ठंडी है , लोग गर्म बिस्तर में से नहीं उठना चाहते हैं । लेकिन इस तरह की कठोरता से जूझने के परिणामस्वरूप मानव के स्वाभाव में दृढ़ता उत्पन्न हो सकती है । आप गर्म बिस्तर में अड़े रहे अथवा तुरंत उठ कर ठंडे मौसम का सामना करे , देखने में यह गौण बात है , वास्तव में वह किसी की इच्छा शक्ति बढ़ाने या घटाने का महत्वपूर्ण मौका है । हमें किसी भी कठिनाई से नहीं झूकना चाहिए और कठिनाई पर विजय पाने की यथासंभव कोशिश करना चाहिए । कभी कभी छोटी सी बात से मानव की दृढ़ संकल्प शक्ति पक्की की जा सकती है ।

वर्ष 1958 में श्री चांग होंग छाओ को उत्तर पश्चिम जातीय कालेज के वेवूर भाषा विभाग में दाखिला मिला । वेवूर भाषा का अध्ययन करना उन के लिए बिलकुल अनजान काम था , वे मध्य चीन में पले बढ़े थे और मध्य चीन में रह रहे थे , वे कभी सिन्चांग नहीं गए और न ही वेवूर भाषा जानते , और तो और उन्हें वेवूर भाषा में रूचि भी नहीं थी, इसलिए वे वहां जाने के लिए झिझकते थे । किन्तु उन के पिता जी ने उन का कमर ठोकते हुए कहा कि जो काम तय हुआ है , उसे करने के लिए नहीं झिझकना चाहिए , साहस के साथ कठिनाइयों का मुकाबला करो, उपाय हमेशा कठिनाइयों से ज्यादा होता है । पिता जी की ये बातें श्री चांग होंग छाओ के दिमाग में जीवन भर याद रहीं । उन्हों ने कहाः

उत्तर पश्चिम जातीय कालेज में पढ़ने की अवधि में मैं कड़ी मेहनत औप बड़े लगन से पढ़ता था और हर समय का लाभ उठा कर वेवूर भाषा का अध्ययन करता था । छात्र होने के समय ही मैं ने यह संकल्प लिया था कि आगे मैं एक श्रेष्ठ अनुवादक बन जाऊंगा । अपने इस सपने को साकार करने के लिए मैं ने असामान्य परिश्रम किया , खाना खाने का समय छोड़ कर मैं हर समय वेवूर शब्दों को रट कर यादा करने की कोशिश करता था , रास्ता चलते समय या रात को पलंग पर लेटने के समय मैं शबदों को याद करता रहा । इस तरह भावी काम के लिए मजबूत आधार तैयार हो गया । विश्वविद्यालय में तीसरा वर्ष तक पढ़ते वक्त मैं ने वेवूर भाषा की लम्बी कविता पोल्हाती –सीलिन का हान भाषा में अनुवाद करने की कोशिश की , अध्यापकों से मदद लेने पर शब्दकोष के सहारे ढेर सारी कठिनाइयों को दूर कर मैं ने इस लम्बी कविता का अनुवाद करने का काम सफलतापूर्वक पूरा कर लिया ।

वर्ष 1960 में कालेज के बंदोबस्त पर श्री चांग होंग छाओ और सहपाठी सिन्चांग की ईनिन काऊंटी में किसानों के घर जा कर प्रैक्टिस करने लगे । श्री चांग होंग छाओ वेवूर दादा कुल्बान के घर में रहते थे । दादा कुल्बान इस हान जाति के छात्र की मंजी हुई वेवूर भाषा पर बहुत ताज्जुब हुआ और वे उसे अपना बच्चा समझते थे । श्री चांग होंग छाओ भी कुल्बान के पांच बच्चों की तरह कुल्बान दंपति को बाप और मां कह कर संबोधित करते हैं ।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।

(श्याओयांग)