2008-02-19 11:00:59

चीन के सिन्चांग की फिल्म निर्देशक सुश्री छाओ सुह्वा

वर्ष 2003 में सुश्री छाओ सुह्वा ने कुछ नाटक लेखकों के साथ मिल कर नए वर्ष के अवसर पर दिखाने के लिए फिल्म यह पैसे का मामला नहीं है फिल्माने की योजना बनायी , यह एक अच्छी कहानी थी , पेइचिंग की एक मीडिया कंपनी ने इस के लिए पूंजी डालने का इरादा भी प्रकट किया था , लेकिन पूंजी के प्रबंध में गड़बड़ी होने के कारण यह फिल्म फिल्माने का बेहतर मौका हाथ से धोया । अपनी और साथियों की मेहनत पर पानी फिरने पर सुश्री छाओ सुह्वा को बड़ी दुख हुई । इस पर उन्हों ने कहाः इस बात के कारण मैं ने अपने पति के सामने खुल कर आंसू बहायी , बहुत दुखी हुई थी । फिर मुझे ख्याल हुआ था कि सी सी टी वी के फिल्म चैनल को मेरे इस फिल्म का पटकथा पसंद है , क्यों ने उस के साथ अनुबंध बनाया । मैं ने तीन भागों के नाटक को छोटा कर एक भाग की फिल्म के अनुरूप बनाया और सी सी टी वी फिल्म चैनल के हवाले कर दिया । इस से मुझे थोड़ी वित्तीय क्षति हुई थी , लेकिन मेरा काम बेकार नहीं हुआ ।

फिल्म निर्माण के रास्ते पर सुश्री मुश्किल से अविचल आगे बढ़ती जा रही है , उम्र में वह दूसरों से बड़ी है , किन्तु इन कठिनाइयों के सामने वह कभी नहीं झूकी । जब उन के काम में ज्यादा कठिनाई पैदा हुई थी , उस वक्त उन के मां बाप भी दुनिया से चल बसे , सच ही सिर पर पाला के बाद ओला गिरा हो कि उन के मनोभाव को बड़ा आघात पहुंचा था । परन्तु वे मौन से इन दुखों को झेलती रही और अपनी दुख को शक्ति के रूप में परिणत कर लगन से फिल्म बनाने में जुट गयी । छाओ सुह्वा की पुरानी सहेली सुश्री तु यङमी ने कहाः मां बाप के प्रति उन का प्यार और अंतरंग बहुत गहरा है , मां बाप के देहांत के बाद उन की मानस्थिति निम्नतम बिंदु तक खराब हो गयी । लेकिन सिन्चांग के प्रति उन का प्यार भी अत्यन्त गहरा है , उन की जड़ सिन्चांग की भूमि में है , उन का कला करियर सिन्चांग में विकसित होना है । क्योंकि यहां उन के रिश्तेदार हैं , परिचित लोग हैं , वे इस भूमि से परिपूर्ण ज्ञात है और उस के प्रति उन का असीम प्यार है ।

खुद सुश्री छाओ सु ह्वा ने कहा है कि जन्मभूमि के प्रति उन का बड़ा लगाव है । यही कारण है कि पेइचिंग फिल्म कालेज से स्नातक होने के बाद अपनी पहली फिल्म की कहानी और शुटिंग के लिए उन्हों ने सिन्चांग चुना। इस के बारे में उन्हों ने कहाः सिन्चांग का रंगढंग तेल चित्र की भांति है , उस का सफेद रंग एकदम सफेद और लाल रंग एकदम लाल होता है । यहां हरेक अल्पसंख्यक जाति की अपनी अपनी अलग रीति रिवाज है , उन की अभिव्यक्ति भिन्न भिन्न होती है । मुझे लगता है कि विशाल रेगिस्तान , ऊंचे पहाड़ और घने जंगल ने कुछ ऐसे व्यक्ति मांज कर तैयार किए हैं ,जो खुली और उदार भावना रखे हुए हैं । सिन्चांग की प्रत्येक चीज उसे भावोद्वेलित कर देती है । इसी भूमि की याद करते ही मेरे दिलोदिमाग में आवेश उत्पन्न होगा और कुछ रच कर दिखाने का उमंग उभरेगा । मेरी सृष्टि का स्रोत इसी भूमि में होता है ।

सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के एक फिल्म लेखक श्री ली शिश्युन ने कहा कि उसे सुश्री छाओ सुह्वा की फिल्म बहुत पसंद है और वह उन का उच्च मूल्यांकन करता है । उस ने कहाः सिन्चांग के प्राकृतिक परिदृश्य और रीति रिवाज विविधतापूर्ण होते हैं, संस्कृति बहुतत्वीय और रंगबिरंगी होती है । सिन्चांग में रहने वाले हम लोग बहुत सौभाग्य है कि हम इस विविधतापूर्ण और समृद्ध भूमि पर रहते हैं , जिस से हमारा दृष्टिकोण विस्तृत और बहु आयामी हो गया है । सुश्री छाओ सुह्वा के चरित्र स्वभाव में इसी प्रकार की जीवन की विविधता और प्रचुरता प्रतिबिंबित हुई है । हाल में उन्हों ने मुक्केबाजी खिलाड़ी की एक कहानी लिखी है , फिल्म के लिए यह कहानी बहुत दिलचस्प लगती है , पढ़ने पर एक प्रकार की चौंका देने की अनुभूति महसूस हुई है । जीवन और विभिन्न विकल्प के सामने हरेक लोग का अंतरंगी संघर्ष होता है , चिंतन का मंथन होता है और भावना का उगार होता है । मुझे लगा कि उन की यह कहानी बहुत अच्छी है और दर्शकों को अवश्य ही पसंद होगी ।