2008-02-18 09:27:32

सिन्चांग की महिला फिल्म निर्देशक सुश्री छाओ सुह्वा

चीन की अल्पसंख्यक जाति कार्यक्रम सुनने के लिए आप का हार्दिक स्वागत। आज के इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सिन्चांग का दौरा कड़ी में हम आप को सिन्चांग की महिला फिल्म निर्देशक सुश्री छाओ सुह्वी , जो पहले एक अंग्रजी भाषा अध्यापिका थी , अब फिल्म निर्देशक बन गयी है , की कहानी सुनाएंगे ।

वर्ष 1958 में सुश्री छाओ सुह्वा का सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश के एक दूरदराज गांव में जन्म हुआ । बालावस्था में वह लड़के की भांति बहुत नटखट और होशियार थी । जब वह आठ साल की थी, उस साल एक सिन्चांग की एक नृत्यगान मंडली गांववासियों की सेवा में कला प्रदर्शन के लिए आयी , उस के कलाकारों के सुन्दर और मनोहक जातीय कार्यक्रमों ने छोटी छाओ सु ह्वा को बरबस आकृष्ट कर लिया और उस के मानसपटल पर अमिट छाप छोड़ी । तभी उस ने बड़े होने पर कला के क्षेत्र में केरियर का विकास करने की ठान ली । इस की याद करते हुए उन्हों ने कहाः

वे कलाकार रंगमंच पर नाच रहे थे , मैं भी उन का अनुकरण करते हुए मंच के नीचे नाच रही थी । बाद में मैं ने निश्चय किया कि मैं भी नृत्य गान का काम करूंगी , इस काम में संगीत हो , वाद्य यंत्र हो और नाच हो , बड़ा मजा आएगा । जुनियर मीडिल स्कूल पढ़ने के समय मैं ने पूर्व में लालिमा छायी नामक फिल्म देखी , इस के बाद मैं ने क्लास रूम के सहपाठियों को गोलबंद कर इस फिल्म की नकल पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम बनाया और मैं ने इस का निर्देशन किया । मेरा यह काम बहुत अच्छा साबित हुआ , इसलिए नृत्या गान मंडली ने मुझे अपना नौसिखिया बनाया ।

लेकिन कला मंडली में सुश्री छाओ सुह्वा अधिक समय नहीं ठहरी , मांबाप के कंधे पर पड़े घर का भारी बोझ हल्का करने के लिए सुश्री छाओ सुह्वा ने सिन्चांग के नार्मल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी पढ़ने का फैसला किया । वहां से स्नातक होने के बाद वह ऊरूमुची के एक मीडिल स्कूल में अंग्रेजी अध्यापिका बन गयी । इस तरह वह स्कूल में दसेक सालों तक काम करती रही । इस के दौरान सुश्री छाओ सुह्वा के परिवार का जीवन लगातार खुशहाल हो गया । तब जा कर उन के दिल में बचपन समय का अपना पुराना सपना फिर अंकुरित होने लगा ।

वर्ष 1997 में चालीस वर्षीय छाओ सुह्वा ने दूसरों के लिए एक अप्रत्याशित विकल्प ले लिया , वह पेइचिंग फिल्म कालेज में फिल्म निर्देशक का ज्ञान सीखने चली गयी । उस समय वह पेइचिंग फिल्म कालेज में सब से बड़ी उम्र का छात्र थी । युवा छात्रों की तुलना में उस की अनेक कमजोरियां थी , लेकिन कालेज में वह हमेशा सर्वश्रेष्ठ छात्रों की सूची में आयी ।

पेइचिंग फिल्म कालेज से स्नातक होने के बाद सुश्री छाओ सुह्वा ने अपनी पहली फिल्म बनायी , जो रेगिस्तान का प्रेम नाम से मशहूर थी। इस फिल्म में सिन्चांग के सैनिक जवानों की प्रेम कहानी बतायी गयी है । फिल्म में रात्रि अलाव समारोह की शुटिंग भी थी , उस समय सिन्चांग में कड़ाके की सर्दियों का मौसम था , रात बहुत ठंडी थी , सभी लोग थरथर कांपते थे । अस्थाई अभिनेता के रूप में एक सैनिक अफसर ने छाओ सुह्वा के पास जा कर शिकायत की कि एक दृश्य के लिए बार बार शुटिंग हो रही है, क्या हड्डी चुभोने वाली ठंड झेलने वाले जवानों की हालत का ख्याल नहीं करेंगी । इस बात की याद में सुश्री छाओसुह्वा ने कहाः उस समय शुटिंग दल के सभी लोगों की नजर मुझ पर केन्द्रित हुई , मैं समझती थी कि शुटिंग में शामिल लोगों को गर्मी की जरूरत है , मैं ने तुरंत अपना ऊनी आवर कोट उतार कर शुटिंग कर रहे एक जवान को पहनवाया , मेरी देखा देखी हमारे दल के अन्य कुछ लोगों ने भी अपने ऊनी आवर कोट उतार कर जवानों को थमा दिया , इस से द्रवित हो कर वह सैनिक अफसर रो पड़ा ।

सुश्री छाओ सुह्वा और उन के शुटिंग दल की अथक कोशिशों का बेहतर नदीजा निकला । फिल्म रेगिस्तान का प्रेम उस साल चीनी केन्द्रीय टी वी चैनल में उच्चतम दर्जे के पाईह नामक पुरस्कार के लिए चुनी गयी ।