2008-01-14 14:01:44

ऐशोआराम के शिक्के का दूसरा पहलू

चीन आज भी एक विकासशील देश है और प्रति व्यक्ति के लिए वार्षिक जी डी पी के आधार पर इसकी जी डी पी केवल 1970 डालर है, जिससे आर्थिक विकास के आधार पर दुनिया में चीन का स्थान 112 है।

लेकिन फिर भी ऐशोआराम के सामान खरीदने और उनका उपभोक्ता करना और पैसे खर्च करने से लोग जरा भी संकोच नहीं करते। अब सेल या मोबाईल फोन को ही ले लीजिए।

गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चीन में चार सौ मिलियन मोबाईल दूरसंचार सब्सक्राईबर या उपभोगी है और औसत दर पर प्रति दो वर्ष लोग अपना मोबाईल बदलते हैं।

ये आंकड़ें कितने सच हैं कहना जरा मुशकिल है, ये आंकड़ें एक बात की गवाही है की प्रति चार पांच वर्षों में करोड़ों और अरबों के तादाद पर कई सारे मोबाईल कूड़े दान में या कूड़े इकट्ठे औऱ जमा करने वालों के बोरे में चले जाता है।

इसके साथ अगर हम इस बात को भी ध्यान में लेते हैं की हर एक मोबाईल की चोरी के साथ साथ उसके एडेप्टर औऱ बैटरी का भी उपयोग नहीं किया जा सकता और ये भी कूड़ा के रुप में तफ्दील हो जाते हैं।

एक सेल फोन का मूल उपयोग फोन के जरिये कही पर और कभी भी अपने लोगों और दोस्तों के साथ सम्पर्क बनाये रखना है या फीर एस एम एस यानि छोटे मैसेज भेजना है लेकिन लोग आज एक मोबाईल फोन के ऐसे मूल उपयोगों के पूरे होने से संतोष नहीं है।

आज के तेज रफ्तार वाले और फ़ैशन के जमाने में लोग लगातार नये वस्तुओं और चीजों के ओर आकर्षित रहते हैं। इस मायने में लोग , खास कर नौजवान और प्राइवेट कंपनियों में मध्य स्थर और ऊँचे स्थर पर मैनेजरों को सेल फोन बदलने का बहुत शौक है और सेल कंपनियाँ इस वर्ग के लोगों को अपना निशाना बनाते हुए भिविन्न प्रकार के नये तक्नोलोजी से लेप सैल फ़ोन का उत्पादन करते हैं।

नये मोबाइल फोन को खरीदने के तक्नीकी और वाणिज्यिक कारण भी हैं। कई फोन तो ऐसे होते है जिनका खरीदने के तीन साल बाद उपयोग नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह है की तीन साल बाद मोबाईल के खराब होने पर उसके पूर्जों को बदलना असंभव हो जाता है क्यों की ऐसे पूर्जे बाजार में नहीं बेचे जाते।

मोबाईल फोन के अलावा दूसरे एलोक्ट्रोनिक वस्तुएँ भी हैं, जैसे, रेफ़्रीजरेटर, टी वी, कंप्यूटर, इत्यादि। ऐसे वस्तुओं को बदलने का शौक का कारण मानव के भ्रष्ट दिमाग और बुद्ध समझते हैं तो यह जात गलत है क्यों की यह तो मानव की प्रकृति है की वो सदा से बदलाव की ओर खिंचा चला आ रहा है।

शताब्दियों से विज्ञन में हो रही प्रगति से हमें यह एहसास होने लगा है की विज्ञान और तक्नालोजि का कोई जवाब नहीं है। लेकिन इसमें हम इतना ज्यादा लिप्त हो गये है की हम सब और एक मूल तथ्य को भुला बैठे है।

यह तथ्य है पर्यावरण को साफ और शुद्ध रखने का।हम सभी को अपने आप से यह सवाल करना चाहिए की क्या हमें भविष्य के पीडि़यों से उनका हक छीनने का अधिकार है।

जी हां, आज हम अपने ऐशो आराम के चक्कर में जिस रफ्तार से प्रदूषण फैला रहे हैं, क्या भविष्य में हमारे बच्चे एक अच्छा जीवन बिता सकते हैं।