2007-12-24 11:07:03

सिन्चांग की महिला वैज्ञानिक वांग ना

चीनी विज्ञान अकादमी के सिन्चांग खगोल वेधशाले की महिला प्रधान सुश्री वांग ना आम लोगों में नामी नहीं है , लेकिन अन्तरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान के पल्सर तारा अनुसंधान क्षेत्र में वे बहुत ही मशहूर हैं । चीनी अल्पसंख्यक जाति के अन्तर्गत प्रस्तुत उन की कहानी ।

सिन्चांग की राजधानी ऊरूमुची के दक्षिण में खड़े समुद्र सतह से दो हजार मीटर ऊंचे पर्वत पर नानशान नाम का एक बड़ा वेधशाला है । वर्ष 1987 से सुश्री वांग ना ने इसी वेधशाले में पल्सर तारे के सर्वेक्षण का काम शुरू किया । पल्सर तारे की खोज सब से पहले विश्वविख्यात खगोल विद , ब्रिटेन के मिल्टनकेन्स युनिवर्सिटी के प्रोफेसर सुश्री बेल ने वर्ष 1967 में की थी , इस तार से लगातार चुंबक पल्सर तरंग निकलने के कारण उसे पल्सर तारा का नाम दिया गया । पल्सर तारे पर अनुसंधान के दौरान सुश्री वांग ना ने इस का पता चला है कि पल्सर तारे के अपनी धुरी पर वेग गति से घूमने के दौरान जो तरंग कुलांच की स्थिति पैदा होती है , वह आधुनिक हवाई मार्ग निर्देशन तकनीक में पल्सर के इस्तेमाल के लिए कुंजीभूत कड़ी है । इस पर सुश्री वांग ना ने कहाः

पल्सर तारा मंडल में समय तय करने का श्रेष्ठतक साधन है , इस में हर साल केवल एक बटे अरब सैकंड की धीमी आती है , इसलिए पल्सर तारे की सटीक फ्रिक्वंसी दर मानवीय जीवन से मजबूती से जुड़ी हुई है । पल्सर तारे के अनुसंधान के लिए विश्व के प्रमुख विकसित देशों ने भारी पूंजी लगायी है , वे चाहते हैं कि पल्सर तारे के अपनी धुरी पर घूमने के नियम का पता चले और इस से आधुनिक हवाई मार्ग निर्देशन की तकनीक का आविष्कार करने के लिए मदद मिल जाए । चीनी वैज्ञानिक भी अल्प समय के भीतर पल्सर के इस गुलझटी को सुलझाना चाहते हैं ।

इस लक्ष्य को पूरा करने के काम के लिए वैज्ञानिकों को कड़ी मेहनत और एकांतता झेलना पड़ता है । सुश्री वांग ना दसियों सालों से इस काम में जुटी रही और ऊरूमुची के नानशान वेधशाले में अकसर दिन रात एक करके काम करती रही । नानशान वेधशाले में एक 25 मीटर विशाल रेडियो तेलीस्कॉप स्थापित हुआ है , जो हमेशा आकाश की ओर मुख करते हुए धीमी गति से घूमता है , इस तेलीस्काप से जो पल्सर तारे से प्रेषित माइक्रो वेव जुटाए गये हैं , वे वेधशाले में लगाये गए कम्प्युटर स्क्रीनों पर लाल रंग के आंकड़ों में दिखाई देते हैं । वहां कार्यरत वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ता बराबर गौर से इस आंकड़ों के परिवतन का अध्ययन करते हैं । पल्सर तारे के माइक्रो वेव का सर्वेक्षण करने वाले इस कम्प्युटर प्रोग्रामिंग सोफ्टवेर का आविष्कार सुश्री वांग ना ने किया है । इस के अलावा सुश्री वांग ना ने वेधशाले के अनेकों अनुसंधानकर्ताओं को भी प्रशिक्षित किया है । प्रैक्टिस अनुसंधानकर्ता श्री ल्यू ची यङ ने इस की चर्चा में कहाः

मैं विश्वविद्यलय के भौतिक शास्त्र विभाग से स्नातक हुआ , अध्यापिका वांग ना के निर्देशन में मैं ने पल्सर तारे के सर्वे अनुसंधान की तकनीकों पर महारत हासिल की है । मास्टर डिग्री पाने के बाद मैं वेधशाले में पल्सर तारे के सर्वेक्षण तथा यहां की सर्वे व्यवस्था व सोफ्टवेर के रखरखाव के लिए नियुक्त हुआ । अध्यापिका वांग ना मुझे लगन से सिखाती हैं । अवकाश समय में भी वे अकसर वेधशाले में काम करने आती है और कभी कभी छुट्टी भी नहीं मनाती है ।

लम्बे समय के सर्वेक्षण से सुश्री वांग ना ने युवा पल्सर तारे के नियमित कुलांच के अनुसंधान में समृद्ध अनुभव इक्ट्ठे किए हैं और पल्सर तारे के तरंग के कुलांच के बारे में बहुत से अहम आंकड़े जुटाए हैं , इस उपलब्धि को देश विदेश के इसी क्षेत्र के वैज्ञानिकों से उच्च मूल्यांकन प्राप्त हुआ है । सुश्री वांग ना ने कहाः

चीन के खगोल विज्ञान के विकास और अन्तरराष्ट्रीय स्तर के बीच अभी भी कुछ दूरी मौजूद है , इस का मुख्य कारण यह है कि चीन के पास इस क्षेत्र में डाली गयी पूंजी पर्याप्त नहीं है और वैज्ञानिक अनुसंधान के साज सामानों का नवीनीकरण पिछड़ा है । वेधशाले के साज सामान वास्तव में आंखों को दू दूर पहुंचाने के साधन के बराबर है । चीन के खगोल साज सामानों के विकसित देश की बराबरी पर पहुंचने में समय और कोशिशों की आवश्यकता है । लेकिन जब एक बार इस क्षेत्र में पर्याप्त निवेश किया गया , तो चीन के वैज्ञानिक अनुसंधान का स्तर जरूर और अधिक उन्नत होगा और इस में शानदार उपलब्धियां प्राप्त होंगी ।

रोज बड़ी मात्रा में प्राप्त पल्सर तारे के ढेरे सारे सर्वे आंकड़ों के सामने सुश्री वांग ना को कभी ऊब महसूस नहीं हुआ । इस के विपरीत उन्हें इस बेजान आंकडों से बड़ा आनंद भी मिला । उन्हों ने बड़ी खुशी के साथ संवाददाता को बताया कि इसलिए इतने ज्यादा लोगों में पल्सर तारे के बारे में बड़ी रूचि पैदा हुई है , क्योंकि उस के अपनी धुरी पर घूमने की गति कड़ी नियमानुवर्ती होती है , यदि इस के कुलांच के गूढ़ को सुलझाने में कामयाबी हासिल हुई , तो भविष्य में हवाई मार्ग निर्देशन के काम में उपग्रह की जगह पल्सर तारे का इस्तेमाल किया जा सकेगा और पल्सर तारा ऐसा मार्ग निर्देशक ग्रह बनेगा , जिस की जगह फिर किसी द्वारा नहीं ले ली जा सकती है । इसी कारण है कि पल्सर तारे के तरंग कुलांच के गूढ को सुलझाना सुश्री वांग ना का आजीवन लक्ष्य बन गया है । इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

पल्सर तारे के तरंग में उछाल और परिवर्तन आने के कारण का पता लगाना विश्व के वैज्ञानिकों का लक्ष्य है , लेकिन यह एक बहुत कठिन काम है । मेरा भी यह लक्षय है , जिसे पूरा करने के लिए मैं रोज दस से ज्यादा घंटे तक काम करती हूं । इस समस्या को सुलझाने के लिए मैं किसी भी तरह के परिश्रम से नहीं डरूंगी । सर्वेक्षण में जब कभी प्रगति प्राप्त हुई, तो मुझे अपार खुशी महसूस हुई है । मान लें कि एक बार पल्सर तारे के इस गूढ़ को हल किया गया , तो हमें पल्सर तारे की संरचना का पता चलेगा और हमारे वैज्ञानिक अनुसंधान का लक्ष्य साकार करने में मददगार भी होगा ।

वर्तमान में सुश्री वांग ना ने पल्सर तारे का सर्वेक्षण व अनुसंधान करने में नयी प्रगति प्राप्त की है । हर साल उन के अनेक निबंध अधिकारी अन्तरराष्ट्रीय खगोल विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित किए जाते हैं । उन के अनुसंधान में प्राप्त उपलब्धियां अब अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में पल्सर तारे पर अनुसंधान के लिए अहम मानदंड मानी जाती हैं । ऊरूमुची के नानशान वेधशाले के इंजीनियर जनरल श्री आइली .युसुफ ने कहाः

मैं वर्ष 1986 में यहां आया था , सुश्री वांग ना के साथ सर्वेक्षण का काम करते हुए अब बीस से ज्यादा साल हो चुके हैं । उन के प्रति मुझे यह गहरा अनुभव हुआ है कि वे सर्वेक्षण काम में लगन और संजिदगी बरतती हैं और किसी भी काम को पूरा करने की वे अद्मय भावना के साथ कोशिश करती हैं । यों तो नेतृत्व के पद पर अन्य कामकाज में बहुत समय खर्च होता है , फिर भी वे हमेशा अपने सर्वेक्षण का काम पूरा करने का भरसक प्रयास करती हैं । मैं ने पाया कि वे अकसर आधी रात तक काम करती रहती हैं ।

सुश्री वांग ना और नानशान वेधशाले के अन्य कर्मचारियों के पिछले 20 सालों के अथक प्रयासों के फलस्वरूप अब वेधशाले में अन्तरराष्ट्रीय स्तर की पल्सर तारा सर्वेक्षण व्यवस्था और शक्तिशाली अनुसंधान कार्यकर्ता पंक्ति कायम की जा चुकी है । अब यह वेधशाला चीन और विश्व के बीच सहयोग के रूप में एक पल्सर तारा सर्वेक्षण का केन्द्र बन गया और यहां सर्वेक्षण व्यवस्था का स्तर विश्व के समुन्नत स्तर पर पहुंचा है ।