इधर सालों में तिब्बत के पर्यटन कार्य के विकास और छिंगहाई तिब्बत रेल मार्ग पर यातायात शुरू होने की वजह से विश्व के विभिन्न देशों से बड़ी तादाद में पर्यटक तिब्बत जाते हैं और ये पर्यटक ल्हासा में बड़ी चुमलाखांड के दर्शन करने अवश्य ही जाते हैं । ऐसी स्थिति में बड़ी चुमलाखांड पर पड़े भारी दबाव को कम करने और इस मठ के रख रखाव के लिये मठ की प्रबंधन कमेटी के कर्मचारियों ने अनेक प्रयास किये है।
दोस्तो, इधर सालों में तिब्बत के पर्यटन कार्य के विकास और छिंगहाई तिब्बत रेल मार्ग पर यातायात शुरू होने की वजह से विश्व के विभिन्न देशों से बड़ी तादाद में पर्यटक तिब्बत जाते हैं और ये पर्यटक ल्हासा में बड़ी चुमलाखांड के दर्शन करने अवश्य ही जाते हैं । ऐसी स्थिति में बड़ी चुमलाखांड पर पड़े भारी दबाव को कम करने और इस मठ के रख रखाव के लिये मठ की प्रबंधन कमेटी के कर्मचारियों ने अनेक प्रयास किये है , ताकि और अधिक देशी विदेशी पर्यटक इस पवित्र मठ के दर्शन कर सके । मठ की प्रबंधन कमेटी के कर्मचारी ने हमारे संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि बड़ी चुमलाखांड मठ के संरक्षण और बौद्ध अनुयाइयों व पर्यटकों की जरूरतों को ध्यान में रखकर हम ने गत पहली जुलाई को नया निश्चय किया है , इस निश्चय के अनुसार यह मठ सुबह आठ से 12 बजे लामा बौद्ध धार्मिक अनुयाइयों के लिये खुलती है , जब कि शाम को पर्यटकों के लिये खुला है ।
इस मठ में हमारे संवाददाताओं ने बहुत से विदेशी पर्यटकों को देखा है , वे बड़ी चुमलाखांड व तिब्बत के संरक्षण पर अपना अपना मत रखते हैं । ब्रिटेन से आयी लड़की फ्रेस ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि मैं पेइचिंग से होकर यहां आयी हूं , पेइचिंग व शांगहाई की तुलना में यहां का आस्मान बहुत नीला है , पर्यावरण भी बेहद अच्छा है । यहां के पर्यावरण के संरक्षण के लिये हम अलग किस्मों वाले कूड़े कचरे को सही सही कूडेदान में छोड़ सकते हैं ।
ल्हासा शहर में और एक रमणीय स्थल यानी विख्यात चह पुंग मठ देखने लायक भी है । यह मठ तिब्बती लामा बौद्ध धर्म की कलू शाखा का है और वह कान तान मठ व सला मठ के साथ ल्हासा शहर के तीन बड़े मठ माना जाता है । चह पुंग मठ ल्हासा शहर का सब से बड़ा मंदिर ही नहीं , पीढी दर पीढ़ी के लामाओं का अध्ययन करने का स्थल भी रहा है । यह मठ ल्हासा शहर के पश्चिमी उपनगर के ऊज पर्वत के सहारे खड़ी हुई है , उस का प्रमुख रंग सफेद है , दूर से देखा जाये , सफेद चावलों के ढेर जैसा है । तिब्बती भाषा में चावल के ढेर का उच्चारण चह पंग ही है , इसलिये इस मठ का नाम चह पुंग रखा गया ।
इस चह पुंग मठ की सब से बड़ी विशेषता है कि तिब्बती पंचांग के अनुसार हर वर्ष में तीस जून को इस मठ में श्वय तून उत्सव मनाया जाता है । यह उत्सव ल्हासा शहर में एक अलग ढंग का दिवस माना जाता है । उत्सव के दिन भिक्षु चह पुंग मठ में सुरक्षित बड़े आकार वाले थागं का नामक मूल्यवान चित्र बड़ी सावधानी से तड़के धूप के प्रथम किरण में बाहर निकाल कर ऊज पर्वत पर लटकाते हैं । पर्वत की तलहटी से ऊपर की चोटी तक लटके सुंदर थांगका चित्र हवा में फहरते नजर आते हैं और यह दृश्य देखकर बौद्ध धार्मिक अनुयायी बुद्ध की शौभा महसूस कर पाते हैं ।
असल में चह पुंग मठ के निर्माण के शुरू में इतना बड़ा नहीं था । 17 वीं शताब्दी में पांचवीं पीढ़ी के दलाई लामा इसी मठ में रहते थे और उस ने भिक्षुओं को इस मठ का विस्तार करने का आदेश दिया । चोछिन महा भवन इस मठ का केंद्र है और वह भिक्षुओं का सूत्र सुनाने , बहस मुबाहिसा करने और धार्मिक रस्म आयोजित करने का स्थल भी है । उस का क्षेत्रफल कोई चार हजार पांच सौ मीटर है और सात हजार लोगों को समा सकता है । जब हमारे संवाददाता इस महा भवन में प्रविष्ट हुए , तो इस मठ में बसे भिक्षु सूत्र पर बहस मुबाहिसा कर रहे थे ।
छिंगहाई में रहने वाले इस मठ के भिक्षु नावांग ने हमारे संवाददाताओं को परिचय देते कहा कि छुट्टि के दिन को छोड़कर प्रतिदिन के शाम को भिक्षु यहां इकट्ठे होकर सूत्र पर बहस मुबाहिसा करते हैं . ताकि बौद्ध धार्मिक सच्चाई की खोज की जा सके , कुछ ज्ञानी भिक्षु रात को लगातार कई घंटों तक बहस मुबाहिसे में लग जाते हैं ।
चह पुंग मठ की तीसरी मंजिल पर सुप्रसिद्ध मैत्रय बुद्ध की मूर्ति रखी हुई है , मूर्ति के सामने एक सफेद शंघ भी रखा हुआ है । कहा जाता है कि यह शंघ बुद्ध शाक्यमुनि द्वारा छोड़ी गयी वस्तु है और वह इस मठ की धरोहर भी है । जब हमारे संवाददाता यहां आ पहुंचे , तो मठ के आचार्य ने इस शंघ से पवित्र जल उन्हें पिलाया , ताकि सभी लोग सही सलामत व सुखचैन रहे ।