2007-12-24 10:18:10

तिब्बत के शिकाजे का यातयात सुविधाजनक है

प्रसिद्ध शिकाजे शहर पश्चिम ल्हासा शहर से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यदि कोई भी पर्यटक ल्हासा शहर से कार पर सवार होकर शिकाजे जाना चाहता है , तो उसे ल्हासा शहर के पास आगे बहती जाने वाली ल्हासा नदी और फिर यालुचांगपू नदी के तटों का अनुसरण करते हुए जाना पड़ता है । क्योंकि यह स्थल समुद्र की सतह से काफी अधिक ऊंचाई पर अवस्थित है , इसलिये इस से नदी घाटियों में मानसून का प्रवेश होना बाधित हो गया है और नदी के दोनों तटों पर बहुत कम पेड़ देखने को मिलते हैं , सिर्फ ढेर घास भूस और रेत व पत्थर दिखाई देते हैं । पहाड़ी पगडंडी पर चलने से लोग बहुत चिन्तित हो जाते हैं कि कहीं छोटे बड़े पत्थर ऊंचे पर्वत से न गिर जाये । कभी कभार पर्वतों की तलहटियों या ढलानों पर झुंट के झुंट भेड़ बकरियां और सुलगायं भी देख जा सकते हैं ।

प्रिय दोस्तो , आज के इस भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के दूसरे बड़े शहर शिकाजे के दौरे पर ले चलते हैं ।

तिब्बत के बारे में एक बहुत लोकप्रिय गीत है , उस का बोल इस प्रकार है , मेरी जन्मभूमि शिकाजे से गुजरने वाली सुंदर नदी के तट पर , अम्मा कहती है ढलानों पर नजर झुंटों के गायं भेड़ बकरे भगवान की मेहरबानी से , नीले आस्मान पर मंडराते हुए सफेद बादल स्वच्छ नदी में झिलमिला रहे हैं , बहादुर बाज यहां होकर छोड़ते हैं मर्मस्पर्शी गीत ।

प्रसिद्ध शिकाजे शहर पश्चिम ल्हासा शहर से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यदि कोई भी पर्यटक ल्हासा शहर से कार पर सवार होकर शिकाजे जाना चाहता है , तो उसे ल्हासा शहर के पास आगे बहती जाने वाली ल्हासा नदी और फिर यालुचांगपू नदी के तटों का अनुसरण करते हुए जाना पड़ता है । क्योंकि यह स्थल समुद्र की सतह से काफी अधिक ऊंचाई पर अवस्थित है , इसलिये इस से नदी घाटियों में मानसून का प्रवेश होना बाधित हो गया है और नदी के दोनों तटों पर बहुत कम पेड़ देखने को मिलते हैं , सिर्फ ढेर घास भूस और रेत व पत्थर दिखाई देते हैं । पहाड़ी पगडंडी पर चलने से लोग बहुत चिन्तित हो जाते हैं कि कहीं छोटे बड़े पत्थर ऊंचे पर्वत से न गिर जाये । कभी कभार पर्वतों की तलहटियों या ढलानों पर झुंट के झुंट भेड़ बकरियां और सुलगायं भी देख जा सकते हैं ।

ऊंचे पर्वतों को पार कर शिकाजे शहर पहुंच सकता है । शिकाजे का मौसम सुहावना होता है और धूप भी पर्याप्त है , अतः यहां फसलों की शानदार पैदावारों से तिब्बत के अनाज भंडारों में एक माना जाता है । विशेषकर वर्तमान में शिकाजे शहर व उस के आसपास के क्षेत्रों में जमीन आस्मान का परिवर्तन आया है , राजमार्ग जालों की तरह फैले हुए हैं । पर्यटक शिकाजे से अली क्षेत्र , चुमलांगमा चोटी प्राकृतिक परिरक्षित क्षेत्र और नेपाल जैसे क्षेत्र सुविधाजनक रुप से जा सकते हैं । शिकाजे क्षेत्र के पर्यटन ब्यूरो के उप प्रधान श्री क्वो संग पाओ ने हमारे संवाददाता से कहा कि शिकाजे के दौरे पर आने के बाद पर्यटक चुमलांगमा चोटी प्राकृतिक परिरक्षित क्षेत्र जाना ज्यादा पसंद करते हैं , इस के अलावा नेपाल से लगे चीनी सीमांत चौकी चांगमू जाकर नेपाल की अलग पहचान जानने में भी रुचि लेते हैं । शिकाजे क्षेत्र में 8 हजार मीटर ऊंची चोटियों की संख्या पांच है , ये गगनचुम्बी चोटियां पर्यटकों को अपनी ओर खिंच लेती हैं । साथ ही शिकाजे क्षेत्र में प्रसिद्ध चाशलुम्बू मठ , च्यांग ची देशभक्तिपूर्ण शिक्षा अड्डा और अच्छी तरह सुरक्षित पारा खानदानी फार्म भी बराबर पर्यटकों को आकर्षित कर लेता है ।

इतिहास पर शिकाजे क्षेत्र पिछवाड़ा तिब्बत कहा जाता है , ताकि तिब्बत के केंद्र ल्हासा यानी अगले तिब्बत व शिकाजे क्षेत्र के बीच का फर्क पड़ सके । प्राचीन काल से ही शिकाजे शहर अपने क्षेत्र की राजधानी ही नहीं , बल्कि इसी क्षेत्र का राजनीतिक , आर्थिक , सांस्कृतिक , धार्मिक केंद्र भी रहा है , पांच सौ वर्ष पुराना यह शिकाजे क्षेत्र पीढ़ी दर पीढ़ी के पचन लामाओं का निवास स्थान के नाम से जाना जाता है । 1986 में चीनी राज्य परिषद ने इसे राष्ट्रीय ऐतिहासिक शहरों की नामसूची में शामिल कर लिया । सन 1447 में निर्मित चाशलुम्बू मठ का तिब्बती भाषा में अर्थ मंगल है और वह तिब्बती बौद्ध धर्म की कालू शाखा के चार बड़ी मठों में से एक है और वह शिकाजे क्षेत्र में एक विख्यात पर्यटन स्थल भी है ।

चाशलुम्बू मठ का क्षेत्रफल कोई एक लाख 50 हजार वर्गमीटर विशाल है पर्वत के बल से निर्मित चार दीवारों की लम्बाई तीन हजार से अधिक है । मठ में कुल 57 सूत्र भवन व तीन हजार 6 सौ से अधिक कमरे पाये जाते हैं । पर्वत के बल से निर्मित मठ का द्वार दक्षिण ओर खुला हुआ है । महा सूत्र भवन यानी त्सो चिन बृहत भवन चाशलुम्बू मठ का सब से पुराना निर्माण है और वह पचन द्वारा लामाओं को सूत्र सुनाये जाने व भिक्षुओं के बीच सूत्रों की बहस मबाहिसा किये जाने का स्थल भी रहा है । चाशलुम्बू मठ के पश्चिम भाग में एक छांगपा यानी मैत्रय बुद्ध भवन खड़ा हुआ है , भवन में रखी हुई मैत्रय बुद्ध की मूर्ति बहुत दर्शनीय है । छांगपा बुद्ध की मूर्ति 3.8 मीटर ऊंचे कमलासन पर बैठी हुई है , दक्षिण की और बैठी हुई यह मूर्ति इस भव्यदार मठ को देखते हुए दिखायी देती है । मूर्ति की लम्बाई 26.7 मीटर है , जबकि इस बुद्ध मूर्ति के दोनों कान 2.2 मीटर लम्बे हैं और वह विश्व में सब से ऊंची व बड़ी कांस्य बुद्ध मूर्ति मानी जाती है ।