छठा, बच्चों की बुराई करते रहना
शायद सामान्य जीवन में ऐसा देखने को बहुत मिलता है, जब मां-बाप हमेशा दूसरों के सामने अपने बच्चों की बुराई करते हैं। उदाहरण के लिये अगर किसी ने कहा कि आपका बच्चा बहुत बुद्धिमान है, भविष्य में वह ज़रूर किसी मशहूर विश्वविद्यालय में दाखिला ले सकता है, तो उसी समय मां-बाप ये कहते हैं कि क्या बुद्धिमान है?वह तो एकदम नलायक है। आपका बच्चा ज्यादा बुद्धिमान है। हालांकि वयस्कों में सभी समझ होती हैं, लेकिन बच्चों की उम्र बहुत कम होती है, तो वे नहीं जानते कि बातों के पीछे क्या सही मतलब क्या है। वे केवल समझते हैं कि मां-बाप के ख्याल में वह बहुत नलायक है। अगर वे हमेशा ऐसी बातें सुनते हैं, तो उनके दिल में एक बात घर कर जाती है कि वह तो बेवकूफ है। इसलिये मां-बाप को सामान्य जीवन में बच्चों के प्रति सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करना चाहिये, ताकि उन्हें प्रोत्साहन मिल सके।
सातवां, प्रारंभिक अध्ययन पर सही ध्यान नहीं देना
अब ज्यादा से ज्यादा मां-बाप बच्चों के प्रारंभिक अध्ययन पर ध्यान देते हैं। बच्चों के जन्म के बाद से ही उन्हें शिक्षा देनी शुरू कर देते हैं। लेकिन प्रारंभिक अध्ययन पर कुछ मां-बाप का तरीका ठीक-ठाक नहीं होता है। ऐसे करके शिक्षा का अच्छा परिणाम नहीं मिल पाता है।
इस पक्ष में मां-बाप को अपने बच्चे की स्थिति के अनुसार लक्ष्य निश्चित करना चाहिये। ज्यादा ऊँचा लक्ष्य नहीं बनाना चाहिये। ताकि बच्चे इस लक्ष्य को पूरा करके विश्वास प्राप्त कर सकें।
आठवां, डांट-फटकारते रहना
कभी कभार मां-बाप बच्चों के रोने पर बहुत नाराज़ हो जाते हैं, खासतौर पर सार्वजनिक स्थल पर। उस समय वे बच्चों को डांट-फटकारते हैं। हालांकि बच्चे ने डर के मारे रोना बंद कर दिया हो, लेकिन बच्चे के दिल से कड़वाहट नहीं निकल पाती है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिये लाभदायक नहीं होता। लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहने से बच्चे किस तरह से बुद्धिमान बन सकते हैं।
इसलिये बच्चों के शरीर व मन के स्वास्थ्य और उनके सुन्दर भविष्य के लिये मां-बाप को अपने बुरे प्रभाव व बुरी कार्रवाई पर संयम रखना चाहिये, और बच्चों के विकास के लिये एक सकारात्मक व स्वस्थ वातावरण तैयार करना चाहिये।