तीसरा, पढ़ाई-लिखाई नहीं करना
सभी लोग यह जानते हैं कि पुस्तक पढ़ना मानव के लिये विचार करने की क्षमता को उन्नत करने का सबसे अच्छा तरीका है। क्योंकि पढ़ने के दौरान लोग हमेशा विचार करने की स्थिति में होते हैं। अगर कोई शख्स अकसर विचार करता है, तो उसका दिमाग ज़रूर सक्रिय रहता है।
लेकिन सामान्य जीवन में बहुत से मां-बाप केवल अपने बच्चों से किताब पढ़ने को कहते रहते हैं, और खुद वे अपने बच्चों के सामने मोबाइल फ़ोन पर गेम्स खेलते हैं। शायद उनका मानना है कि उनका ऐसा करने से उनके बच्चों पर कोई प्रभाव नहीं पडेगा, लेकिन यह सरासर गलत हैं। वास्तव में मां-बाप के ऐसा करने से उनके बच्चों पर गहरा असर पड़ता है। एक परिवार का वातावरण सीधे-सीधे बच्चे के चरित्र का निर्माण करता है।
अगर मां-बाप हमेशा बच्चों के सामने किताब या अख़बार पढ़ते हैं, और घर में भी किताबें आसानी से मिलती हैं। तो ऐसे परिवार में बच्चों में पढ़ने का बड़ा शौक होता है। पर इसके विपरीत अगर मां-बाप को किताब पढ़ने और ज्ञान सीखने की आदत नहीं होती है, तो परिवार में पढ़ाई का वातावरण भी नहीं होता है। ऐसे परिवार में बच्चों में पढ़ाई-लिखाई का कोई शौक नहीं होता।
अगर बच्चों में किताब पढ़ने और ज्ञान सीखने का शौक नहीं होता, और लंबे समय तक दिमाग का प्रयोग नहीं करते, तो दिमाग बहुत तेजी से कमजोर हो जाता है। हालांकि जन्म के बाद बच्चे शायद बहुत बुद्धिमान होते होंगे, लेकिन ऐसे वातावरण में वे धीरे धीरे मंदबुद्धि हो जाते हैं।
चौथा, बच्चों को डराना और धमकाना
बच्चे अकसर गलती करते हैं, यह एक सामान्य की बात है। क्योंकि हर गलती उनके विकास में एक महत्वपूर्ण चरण होती है। लेकिन मां-बाप हमेशा ऐसा नहीं सोचते। वे हमेशा वयस्कों के नैतिक मूल्य द्वारा बच्चों को समझाते रहते हैं। जब बच्चे गलती करते हैं, तो वे गंभीरता से उनकी आलोचना करते हैं, यहां तक कि बच्चों की पिटाई भी कर देते हैं।
बेशक आपका डर और चिल्लाना उस समय बच्चों को डरा सकते हैं, और बच्चे शांत भी हो जाते हैं। लेकिन ऐसे करने का परिणाम यह होता है कि बच्चे अच्छी तरह से अपनी गलती नहीं समझ पाते हैं, साथ ही वे आसानी से डिप्रेशन व निराशा की गिरफ्त में आ जाते हैं।
उनके अलावा अमेरिकी सज़ा व पारिवारिक हिंसा के विशेषज्ञों ने 1510 बच्चों पर, जिनकी उम्र 2 से 9 वर्ष की है, चार सालों तक अध्ययन किया। उनमें 806 बच्चों, जिनकी उम्र 2 से 4 वर्ष की है, को कोई शारीरिक सज़ा नहीं मिली। उन बच्चों की औसत बुद्धि सामान्य बच्चों से पाँच अंक अधिक रही। दूसरे ग्रूप के 704 बच्चों, जिनकी उम्र 5 से 9 वर्ष की है, को शारीरिक सज़ा नहीं मिली, उनकी बुद्धि सामान्य स्तर से 2.8 अंक अधिक है। इससे जाहिर होता है कि शारीरिक सज़ा बच्चों की बुद्धि को कम कर देती है।
पांचवां, खेलने को बेकार समझना
खेलना शायद सभी मां-बाप के लिए एक संवेदनशील शब्द है। क्योंकि मां-बाप का मानना है कि खेलने से बच्चों का समय बर्बाद होता है। वे केवल बच्चों को किताब पढ़ने या होमवर्क करते हुए देखकर खुश होते हैं। लेकिन पढ़ाई-लिखाई के साथ खेलकूद भी अति महत्वपूर्ण है। अगर वे केवल किताब ही पढ़ते हैं, और अन्य बात कुछ नहीं जानते, तो ऐसे बच्चों को बड़े होकर समाज में बहुत-सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वे लोगों से अच्छी तरह से आदान-प्रदान नहीं कर पाते हैं। पर अगर बच्चे दिन भर केवल खेलते हैं, और कुछ बाकि कुछ भी नहीं सीखते, तो वे भी बेकार हो जाएंगे।
इसलिये मां-बाप को अपने बच्चों को खेलने व पढ़ाई के बीच एक संतुलन मार्ग ढूंढ़ने में मदद देनी चाहिये, और बच्चों के साथ एक समय सारिणी निश्चित करनी चाहिये। ताकि वे जानते हैं कि कब पढ़ना चाहिये, और कब खेलना चाहिये।