"अब जो पुस्तक प्रकाशन का व्यापार मैं करता हूं, देखने में उसका मेरे फिल्म निर्देशक बनने के सपने से कोई संबंध नहीं है, लेकिन वास्तव में वे दोनों में कुछ समानताएं मौजूद हैं। पुस्तक बनाने के समय सृजन क्षमता की ज़रूरत होती है, जो फ़िल्म बनाने के ही बराबर है। किताब लिखना फ़िल्म बनाने जैसा ही है, जिसमें चरित्र चित्रण और आकर्षक विषय होने चाहिए, ऐसे में किताब बोरिंग नहीं होगी। फ़िल्म भी ऐसी है, हीरो और हीरोइन की मन स्थिति पूरी तरह दिखाने के बाद ही फ़िल्म दिलचस्प होगी।"
वांग शीछी को याद है कि बचपन में जब अध्यापक पूछते थे कि बड़े होने के बाद वे और उनके सहपाठी क्या बनना चाहते हैं, तो शिक्षक या वैज्ञानिक बनने के जवाबों में वांग शीछी की आवाज़ सबसे ऊंची होती थी। वे कहते थे कि वे फ़िल्म निर्देशक बनना चाहते हैं। आज तक यह उनका प्रारंभिक और अंतिम सपना ही है। इसे साकार करने के लिए वांग शीछी अपने तरीके से लगातार आगे बढ़ रहे हैं।
"मेरा सपना हमेशा यही रहेगा कि फ़िल्म बनाई जाएगी। मैं सोचता हूं कि फ़िल्म टाइम मशीन की तरह है, जिससे जीवन में बीती बहुत सी बातें दिखाई जा सकती हैं। अब जो काम मैं करता हूं, सब मेरे सपने की तैयारी के लिए है।"