भिक्षु सांगपो सीआरआई संवाददाता के साथ
खोर्चाक मठ में श्रद्धालुओं के दान और पर्यटकों के टिकट से आमदनी होती है। भिक्षुओं की यात्रा का खर्च भी मठ देता है। यात्रा के दौरान वे श्रद्धालुओं का दान भी स्वीकार कर सकते हैं। एक बार, सांगपो को कुछ धनी लोग मिले। यह पता लगने पर कि सांगपो तिब्बत में सुप्रसिद्ध खोर्चाक मठ का भिक्षु है, तो उन्होंने सांगपो को भीतरी इलाके के बड़े शहर में यात्रा करने का आमंत्रण किया। हालांकि सांगपो ने जाने से मना कर दिया। इसकी चर्चा में भिक्षु सांगपो ने कहा:"खोर्चाक मठ के भिक्षु मुख्यतः तिब्बती बौद्ध धर्म के साग्या संप्रदाय से जुड़े होते हैं, जिसमें कठोर शील-नियम शामिल हैं। भिक्षु को कठोर रूप में अहंकार, आतुरता और गुस्से पर अंकुश लगाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति भिक्षु की सहायता करना और तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रसार में मदद करना चाहता है, तो मैं आशा करता हूँ कि वे मठ को व्यवहारिक सहायता करें। उदाहरण के लिए वे किसी भिक्षु को अमीर बनाने के बजाए मठ की मरम्मत कर सकते हैं। वेबसाइट पर प्रसिद्ध होने वाले भिक्षुओं की तुलना में मैं प्रख्यात नहीं बनना चाहता। हमारे मठ में मुफ्त खाना मिलता है, फिर भत्ता दिया जाता है। मैं अपने भत्ते से मठ की मरम्मत करता हूं।"
हालांकि भिक्षु सांगपो की उम्र महज 24 साल है, और मठ में 8 साल से रहते हैं, फिर भी वह मठ के वित्तीय प्रबंधक है, जो दूसरे भिक्षु के साथ मठ के कैश बॉक्स को संभालते हैं। वे दोनों अलग-अलग तौर पर कैश बॉक्स की चाबी और पासवर्ड सुरक्षित रखते हैं। साथ ही सांगपो मठ में दूसरे कार्य भी संभालता है। ऐसे में सांगपो के पास सूत्र जपने का समय कम होता है। इसके बावजूद, सांगपो को आशा है कि वह बौद्ध धर्म-विज्ञान सीखने में ज्यादा उपलब्धियां हासिल कर सकेगा। भिक्षु सांगपो ने कहा:"पूले पर आसन हुए मौन ध्यान लगाना वाले और न करने वाले के बीच फ़र्क होता है। शिक्षक ने मुझे पूले पर आसन हुए मौन ध्यान लगाना सिखाया और अभी मैं पहले से ज्यादा सत्य और सिद्धांत समझता हूँ। फिर भी सूत्र जपने के चलते भिक्षु स्वयं अपने सूत्रों पर ध्यान रखते हैं, जो किसी से प्रभावित नहीं होते। मेरे परिवार में सदस्य अलग-अलग तिब्बती बौद्ध धर्म के संप्रदाय को मानते हैं, पर हमारे बीच कोई टकराव नहीं होता। मुझे और 2-3 साल के लिए पूले पर आसन हुए मौन ध्यान लगाना और सूत्र जपना चाहिए, ताकि मैं मठ में प्रोवोस्ट बन सकूं। प्रोवोस्ट मुख्यतः मठ के सूत्र भवन में आयोजित धार्मिक गतिविधियों को संभालता है। यह मेरा सपना है।"
भिक्षु सांगपो ने कहा, भिक्षु सिर्फ़ सूत्र जपना ही नहीं, बल्कि सरकारी धार्मिक अधिकारी द्वारा दिए जाने वाला धार्मिक वोकेशनल प्रमाण-पत्र हासिल करना चाहिए। इसका परिचय देते हुए सांगपो ने कहा:"हमारे मठ में कुल 13 लामा हैं, जिनमें 6 लामाओं को प्रमाण-पत्र हासिल हो गया है। प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के बौद्ध संस्थान में 2 से 3 महीने तक सीखने की जरुरत है। मैं भी गया था, पर जल्द ही सीखकर वापस लौटा हूं। अब मठ में लामाओं की संख्या कम है, जिनमें सबसे बुजुर्ग लामा की उम्र 50 हो गयी है। बाकि युवा हैं। हम आगे सीखे बिना उच्च स्तर के सूत्र पढ़ नहीं सकते।"
सूत्र सीखने की बात करें तो, मठ के जीवन से जुड़ी बात करने की तुलना में, सांगपो लामा को सूत्र सीखने में ज्यादा जोश है। वह लगातार साग्या संप्रदाय का सूत्र किस व्यवसथा में लिखा जाता है, यह बताता है। वह साग्या संप्रदाय के भिक्षुओं के लिए बुनियादी शील-नियम की चर्चा करता है, जैसे बुरे लोगों से दोस्ती नहीं कर सकता, किसी की जान नहीं ले सकता, शराब नहीं पी सकता और किसी से विवाह कर नहीं सकता। हालांकि मठ में गरीब जीवन गुजारा जाता हैं, फिर भी देखने में सांगपो अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट है। उसने कहा:"मैं मठ में मोइबाल का प्रयोग कर सकता हूँ, कभी-कभी इससे माता पिता और परिवार के दूसरे लोगों से बातचीत करता हूँ। खाली समय में मैं टीवी भी देखता हूँ। लेकिन मठ में प्रवेश होकर तपस्या करना मेरा विश्वास है, काम नहीं। मेरे शौक भी हैं जैसे गाना या मठ का काम करना, पर पूर्ण रूप से सूत्र जपना ही मेरा प्रमुख कार्य है। मेरे दोस्तों और सहपाठियों में कुछ लोग शिक्षा लेने भीतरी इलाके में दूसरे शहर गए, कुछ नौकरी करते हैं, फिर कुछ ने मोटर साइकिल खरीदी। मुझे हमारे के बीच कोई फ़र्क नहीं लगता। लगभग 4 सालों में मैंने 3 इतनी मोटी पुस्तक पढ़ी।" सांगपो ने दोनों हाथों से इशारा देते हुए बताया कि 3 सूत्र पुस्तकों की मोटाई 40 सेंटीमीटर है।